गुजरात: हरनी झील त्रासदी मामले में निगमायुक्त को ‘बचाने’ पर कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाई

वडोदरा की हरनी झील में बीते 19 जनवरी को एक नाव पलटने से 12 बच्चों सहित 14 लोगों की जान चली गई थी. अदालत ने इस मामले में वडोदरा नगर निगम के तत्कालीन आयुक्त की भूमिका की जांच का आदेश दिया था क्योंकि इस झील के संचालन और इसे विकसित करने के लिए दिए गए ठेके में गड़बड़ी की बात सामने आई थी.

गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: गुजरात हाईकोर्ट ने गुरुवार (27 जून) को वडोदरा हरनी झील त्रासदी को लेकर राज्य सरकार की जांच रिपोर्ट पर नाराज़गी व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार द्वारा तत्कालीन नगर आयुक्त को बचाने का प्रयास किया गया है.

रिपोर्ट के मुताबिक, हरनी झील में 19 जनवरी को एक नाव पलटने से 12 बच्चों सहित 14 लोगों की जान चली गई थी. इस दुर्घटना पर स्वत: संज्ञान लेते हुए गुजरात हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस प्रणव त्रिवेदी की खंडपीठ मामले पर सुनवाई कर रही है.

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने जांच समिति की रिपोर्ट की सत्यनिष्ठा पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह वडोदरा नगर निगम (वीएमसी) के तत्कालीन नगर निगम आयुक्त को बचाने और तकनीकी टीम और ठेकेदार पर दोष मढ़ने का एक प्रयास था.

मालूम हो कि अदालत ने इस मामले में नगर निगम आयुक्त की भूमिका की जांच का आदेश दिया था, क्योंकि प्रथम दृष्टया कोर्ट ने पाया था कि नगर निगम आयुक्त ने झील के संचालन और उसे विकसित करने के लिए मेसर्स कोटिया प्रोजेक्ट्स को ‘अवैध रूप से’ ठेका दिया था.

गुरुवार को राज्य सरकार ने सीलबंद लिफाफे में इस मामले की जांच रिपोर्ट पीठ को सौंप दी थी, जिसमें नगर विकास विभाग के प्रधान सचिव की अध्यक्षता वाली समिति ने आयुक्त के कार्यों में कोई दोष नहीं पाया था.

इंडियन एक्सप्रेस ने चीफ जस्टिस अग्रवाल के हवाले से लिखा है, ‘यह एक तरह की रिपोर्ट है जिसमें नगर निगम आयुक्त को बचाने का प्रयास किया गया है… समिति गलती ढूंढती है और फिर नगर निगम आयुक्त की भूमिका को दरकिनार कर देती है. समिति का कहना है कि नगर निगम आयुक्त आमतौर पर तकनीकी अधिकारी की रिपोर्ट पर विश्वास करते हैं और उन्हें (आयुक्त को) ऐसे ठेके देने में अधिक सावधानी बरतनी चाहिए थी.’

अदालत ने जांच रिपोर्ट पर असंतोष जताया

चीफ जस्टिस अग्रवाल ने आगे कहा, ‘यहां शहरी विकास विभाग के प्रमुख सचिव समिति के अध्यक्ष हैं. तो इस तरह की रिपोर्ट का क्या करें? उन्होंने बस इतना कहा है कि नगर आयुक्त ने कुछ भी गलत नहीं किया है. उन्होंने बस तकनीकी मूल्यांकनकर्ताओं की रिपोर्ट पर भरोसा किया है… ‘समीक्षा, निरस्तीकरण’ का सवाल कहां है? यह एक निर्णय है. निर्णय लेने से पहले, क्या नगर आयुक्त अपनी आंखें और कान बंद रखेंगे? वह उस फ़ाइल को नहीं देखेंगे जहां वह अंतिम हस्ताक्षर कर रहे हैं?’

अदालत ने रिपोर्ट पर असंतोष जताते हुए कहा, ‘रिपोर्ट कहती है कि एक बार जब नगर आयुक्त को एक तकनीकी रिपोर्ट सौंपी गई, तो वह असहाय थे, उन्होंने अपने सामने फ़ाइल पर हस्ताक्षर करके कोई गलती नहीं की और अगर उन्होंने हस्ताक्षर किए, तो यह सद्भावना में था. वह अधिक सावधान हो सकते थे… अदालत के दिमाग में एक बात घूम रही है, अगर यह दृष्टिकोण है, तो हम मुश्किल में हैं.’

कोर्ट ने महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी से सवाल किया कि क्या उन्हें ये रिपोर्ट स्वीकार करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से प्रमुख सचिव के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं.

इस पर महाधिवक्ता ने रिपोर्ट की समीक्षा के लिए समय का अनुरोध किया, जिसे अदालत ने मंजूर करते हुए 4 जुलाई को इस मामले की विस्तृत सुनवाई की तारीख तय कर दी.