कर्नाटक: हाईकोर्ट ने वन्यजीव संस्था का लाइसेंस रद्द करने के गृह मंत्रालय के आदेश को खारिज़ किया

वन्यजीव अध्ययन और संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए 1990 में सेंटर फॉर वाइल्डलाइफ स्टडीज को पंजीकृत करवाया गया था. गृह मंत्रालय ने 5 मार्च 2021 को एफसीआरए के तहत इसका रजिस्ट्रेशन निलंबित किया और सितंबर, 2023 को इसे रद्द कर दिया गया.

कर्नाटक हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: कर्नाटक हाईकोर्ट ने विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) के तहत सेंटर फॉर वाइल्डलाइफ स्टडीज (सीडब्ल्यूएस) के पंजीकरण को रद्द करने के केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश को रद्द कर दिया है.

रिपोर्ट के मुताबिक, बीते मंगलवार (25 जून) को पारित ये आदेश जस्टिस एम. नागाप्रसन्ना की पीठ द्वारा सुनाया गया.

मालूम हो कि सीडब्ल्यूएस ने एफसीआरए लाइसेंस रद्दीकरण को इस आधार पर चुनौती दी थी कि इसमें औचित्य का अभाव है और एफसीआरए की धारा 14(2) के तहत अनिवार्य व्यक्तिगत सुनवाई की अनुमति नहीं दी गई थी.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, इस संबंध में गृह मंत्रालय ने तर्क दिया था कि पंजीकरण रद्द करने से पहले व्यक्तिगत सुनवाई की जरूरत नहीं है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित दिवंगत उपन्यासकार के. शिवराम कारंत के पुत्र वैज्ञानिक के उल्लास कारंत ने वन्यजीव अध्ययन और संरक्षण आदि को बढ़ावा देने के लिए 1990 में सेंटर फॉर वाइल्डलाइफ स्टडीज को पंजीकृत करवाया था.

साल 2021 में संस्थान ने बैंक खाते में बदलाव के लिए आवेदन किया था, जिसके बाद उसे विदेशी योगदान प्राप्त हुआ था. उसी साल केंद्र सरकार ने ट्रस्ट के पंजीकरण और एक प्रश्नावली पर छह महीने का निलंबन जारी कर दिया था, जिसे सीडब्ल्यूएस के वकील ने कहा कि उन्हें  प्राप्त नहीं हुआ था.

5 मार्च, 2021  को संस्थान पंजीकरण निलंबन के बाद उसी साल दिसंबर को सीडब्ल्यूएस को कारण बताओ नोटिस मिला था. वहीं, ट्रस्ट का एफसीआरए लाइसेंस 4 सितंबर, 2023 को रद्द कर दिया गया था.

अपना फैसला सुनाते हुए जस्टिस नागप्रसन्ना ने कहा, ‘अधिनियम में उल्लिखित शब्द ‘सुनवाई का उचित अवसर’ को केवल कारण बताओ नोटिस जारी करने तक सीमित नहीं किया जा सकता, बल्कि अधिनियम की धारा 14 की उपधारा (3)  के कारण मामले के विशिष्ट तथ्यों पर व्यक्तिगत सुनवाई याचिकाकर्ता को जरूर प्रदान की जानी चाहिए.’

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को व्यक्तिगत सुनवाई का मौका न देने से यह आदेश निष्प्रभावी हो गया है.

जस्टिस नागप्रसन्ना ने आगे कहा, ‘इसमें कोई भ्रम नहीं होना चाहिए कि सुनवाई और व्यक्तिगत सुनवाई के बीच हमेशा एक संयोजन हो सकता है.’