पूर्वांचल में इन दिनों मतदान हो रहा है, लेकिन विकास का मुद्दा वहां से पूरी तरह गायब है.
‘जनेश्वर मिश्र कहते थे कि उत्तर प्रदेश को बादशाहत की बीमारी लग गई है. वह अपने बारे में नहीं सिर्फ़ देश के बारे में और प्रधानमंत्री बनाने के बारे में सोचता है. यही बात मैं पूर्वांचल के बारे में कहना चाहूंगा. यहां पर विकास न हो पाने का कारण यही है. पहले धार्मिक बादशाहत का रोग था. बाद में राजनीतिक बादशाहत का रोग लग गया है. यहां के लोग इसी बात से खुश रहते हैं कि वे देश का प्रधानमंत्री चुनते हैं.’ ये बातें वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी ने कही.
उत्तर प्रदेश सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2011-12 में पूर्वांचल के 28 जिलों की सालाना प्रति व्यक्ति आय मात्र 13,058 रुपये थी. यह उत्तर प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 18,249 रुपये की तीन-चौथाई व देश की प्रति व्यक्ति आय 38,048 रुपये की लगभग एक-तिहाई है.
प्रदेश के दस सर्वाधिक गरीब जिलों में पूर्वांचल के नौ जिले शामिल हैं. साक्षरता के लिहाज़ से प्रदेश का सबसे पिछड़ा जिला श्रावस्ती अब भी सूबे का सबसे गरीब जिला बना हुआ है.
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रिपोर्ट के अनुसार, 2011-12 में श्रावस्ती जिले की प्रति व्यक्ति आय मात्र 8,473 रुपये सालाना थी. बहराइच, अमेठी, देवरिया, जौनपुर, सिद्धार्थनगर, महराजगंज, कुशीनगर, प्रतापगढ़ व आज़मगढ़ की प्रति व्यक्ति आय भी 11 हजार रुपये सालाना से कम थी. वाराणसी जिले की प्रति व्यक्ति आय मात्र 16,960 रुपये सालाना थी.
लखनऊ विश्वविद्यालय के पत्रकारिता व जनसंचार विभाग में एसोशिएट प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष मुकुल श्रीवास्तव कहते हैं,‘पूर्वांचल में इंडस्ट्री नहीं है. यहां इंफ्रास्ट्रक्चर सबसे खराब है. राज्य में सबसे ख़राब सड़कें आपकों पूर्वांचल में देखने को मिल जाएगी. बिजली आती नहीं है. पूरे पूर्वांचल में कल्पनाथ राय के बाद कोई ऐसा नेता नहीं उभरा जो अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिए कुछ करना चाह रहा हो. इसके अलावा शिक्षा का हाल ये है कि पूर्वांचल के जितने बाहुबली हैं सबके पास डिग्री कॉलेज है. जहां डिग्रियां खरीदी जा रही हैं. अब यहां पर दिखता है कि पढ़ाई हो रही है लोग पढ़ रहे हैं, पास हो रहे हैं लेकिन वास्तव में यह बिना गुणवत्ता की पढ़ाई है. यहां पर न तो ज़मीनी स्तर पर शिक्षक हैं न ही आधारभूत ढांचे हैं.’
पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शैक्षणिक चरित्र में अंतर का ज़िक्र शालिनी शर्मा और गुंजन भटनागर की किताब डायनमिक्स आॅफ अंडरडेवलपमेंट आॅफ उत्तर प्रदेश में भी किया गया है.
उन्होंने लिखा है, ‘हालांकि पूर्वी उत्तर प्रदेश में बीएचयू, लखनऊ विश्वविद्यालय और इलाहाबाद विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थान हैं फिर भी वह मानव संसाधन में पश्चिमी उत्तर प्रदेश से पीछे हैं. उत्तर प्रदेश टेक्निकल यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के अनुसार इसके पास 635 तकनीकी और प्रोफशनल कॉलेज हैं. इसमें से 57.95 फीसदी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हैं. इनके ज़्यादातर कॉलेज निजी प्रबंधन द्वारा चलाए जाते हैं. जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश अपने संस्थानों की फंडिंग के लिए सरकारों पर निर्भर रहते हैं.’
इस पर अरुण त्रिपाठी कहते हैं, ‘निजीकरण का प्रभाव पूर्वांचल में काफी कम है. आज भी ज़्यादातर अच्छे अस्पताल, अच्छे स्कूल और अच्छे औद्योगिक संस्थान सरकारी हैं. इसकी तुलना में पश्चिम उत्तर में अच्छे निजी स्कूल, निजी इंजीनियरिंग कॉलेज, निजी अस्पताल और निजी इंडस्ट्री ने विकास में अच्छी भूमिका निभाई.’
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दूसरी ओर समाजवादी पार्टी का दावा है कि उनकी समाजवादी पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे योजना से इस इलाके की काया पलट हो जाएगी. हालांकि पांच साल समाजवादी सरकार रहने के बाद अब भी इस पर काम चल ही रहा है.
जौनपुर के पूर्वांचल विश्वविद्यालय में बिजनेस इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर आशुतोष सिंह कहते हैं, ‘अगर सोनभद्र को छोड़ दिया जाए तो पूरा पूर्वांचल औद्योगिक रूप से बंजर है. इसके कारण यहां इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास नहीं हुआ है. सड़कें नहीं हैं. बिजली की व्यवस्था ठीक नहीं है. इस कारण लोगों को रोजगार नहीं मिल पाया. यही कारण की यह इलाका पिछड़ता चला गया. यहां बड़े पैमाने पर छोटे उद्योग थे. इसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत पड़ती है. इस पूरे इलाके में ऐसा माहौल ही नहीं है कि यहां पर व्यापार किया जा सके. सरकार इस पर ध्यान ही नहीं दे रही है. लोगों के उद्योग धंधे तबाह हो रहे हैं तो वह पलायन की राह पकड़ रहे हैं.’
पूर्वांचल के बारे में एक रोचक बात है. विकास में देश के सबसे पिछड़े इलाके में शामिल होने के बावजूद यहां पर लोग आत्महत्या नहीं करते हैं. शायद यही कारण है कि पूर्वांचल का पिछड़ापन कभी मुद्दा नहीं बनता है. हालांकि यहां से पलायन करने की दर बहुत ज़्यादा है.
वरिष्ठ पत्रकार शीतला सिंह इसके लिए पूर्वांचल की जनता को ज़िम्मेदार बताते हैं. वे कहते हैं, ‘सबसे ज्यादा ज़िम्मेदार यहां के लोग हैं. हमारे यहां मेहनत कोई नहीं करना चाहता है. यहां के लोग सरकार के भरोसे बैठे रहते हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विकास में सरकार से ज्यादा वहां के लोगों का योगदान रहा है. यहां के लोग दिल्ली-बंबई जाकर कमाई कर लेंगे, लेकिन यहां पर अपना व्यापार नहीं करेंगे. रही सही कसर हमारी सरकारों ने भी पूरा कर दिया है. अब न यहां पर काम करने लायक इंफ्रास्ट्रक्चर बचा है और न ही माहौल ऐसा है कि आप कुछ बेहतर कर सकें.’
फिलहाल अरुण कुमार त्रिपाठी पूर्वांचल के पिछड़ेपन के कुछ और कारण बताते हैं. वे कहते हैं, ‘आज के कुछ दशक पहले तो पूर्वांचल बाढ़ की चपेट में रहता था. एक दो दशक हर साल किसी न किसी पत्रिका में आपको पढ़ने को मिल जाता था कि बाढ़ ने पूर्वांचल को तबाह कर दिया. एक ऐतिहासिक कारण भी समझ में आता है पूर्वांचल देश की आजादी और उसके बाद भी हर आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल रहा है. यह देखा जा सकता है कि देश के जो भी इलाके रिवोलूशनरी रहे हैं वहां विकास कम हुआ है. पूर्वांचल के साथ भी यही हुआ है.’
वे आगे कहते हैं, ‘पूर्वांचल की क्रांतिकारिता, आबादी का घनत्व, दो दशक पहले तक आने वाली बाढ़, कृषि पर निर्भरता, भूमि वितरण का सही तरीके से न होना, सरकारी संसाधनों पर निर्भरता और निजीकरण का प्रभाव न होना इसके पिछड़ेपन का कारण है.’