विधि आयोग को दरकिनार कर ग़ैर-पेशेवर लोगों ने तैयार किए हैं नए आपराधिक क़ानून: पी. चिदंबरम

पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने नए आपराधिक क़ानूनों के 'हिंदी में नाम’ से लेकर यूएपीए के होते हुए नए आतंकवाद विरोधी क़ानून लाने जैसे कई पहलुओं की आलोचना की है.

पी. चिदंबरम. (फोटो साभार: पीआईबी)

नई दिल्ली: देशभर में एक जुलाई से लागू हुए नए आपराधिक कानून- भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को लेकर विपक्ष सरकार पर हमलावर है. इन कानूनों के ‘हिंदी में नाम’ से लेकर यूएपीए के अस्तित्व में रहते नए आतंकवाद विरोधी कानून लाने समेत इसके तमाम विरोधाभास और चुनौतियों पर पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने सरकार की आलोचना की है.

इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक साक्षात्कार में चिदंबरम ने कहा कि इन कानूनों के हिंदी में नाम होने पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन इसके अंग्रेजी संस्करण के लिए अंग्रेजी नाम होना चाहिए. क्योंकि ये अदालत की भाषा है. हिंदी का सभी भाषाओं में अनुवाद करना भी मुश्किल होगा.

चिदंबरम के मुताबिक, नए कानूनों में सरकार को केवल वही बदलाव करने चाहिए थे, जो जरूरी हों. क्योंकि कानून में स्थिरता होनी चाहिए… जिसका मतलब न केवल कानून का सार है, बल्कि संसद द्वारा इसे दुनिया के सामने पेश करने का तरीका भी है.

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, ‘1973 में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) को नए तरीके से फिर से लिखा गया था. लेकिन आज 50 साल बाद सरकार ने इन कानूनों को दोबारा नए तरीके से लिखने के बजाय आईपीसी और सीआरपीसी की नकल कर ली है. इसे कॉपी किया गया है और मैं यह साबित करने के लिए किसी को भी चुनौती देने को तैयार हूं.’

‘नए कानून में देशद्रोह और मौत की सज़ा को हटाया जा सकता था’

इन नए कानूनों में चिदंबरम के अनुसार कई परिवर्तन किए जा सकते थे जैसे, देशद्रोह को ख़त्म करना, मौत की सज़ा हटाना आदि. लेकिन सरकार ने ऐसा न करके इसके उलट एक और असाधारण सज़ा- एकान्त कारावास (Solitary Confinement) को शामिल किया है. इन नए कानून में सरकार ने सामुदायिक सेवा को भी परिभाषित नहीं किया है, जिसे हर जज अपने विवेक के आधार पर देखता है.

चिदंबरम की मानें, तो इन नए कानूनों को लेकर सबसे बुनियादी सवाल यही है कि इसके कौन से हिस्से संभावित रूप से लागू होंगे और कौन से हिस्से पूर्वव्यापी रूप से लागू होंगे? इस पर फिलहाल कोई जवाब या स्पष्टता नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘कानून का सामान्य सिद्धांत यह है कि मूल कानूनों का संभावित प्रभाव होता है, जबकि प्रक्रियात्मक कानून लंबित मामलों पर लागू होते हैं. जैसे आईपीसी एक मूल कानून था, लेकिन सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम मूल के साथ-साथ प्रक्रियात्मक भी थे.’

चिदंबरम ने आगे कहा कि आईपीसी में दो अलग-अलग धाराएं हैं, एक अपराधों से संबंधित है और दूसरी अपराध की गंभीरता से. संगठित अपराध गंभीर अपराध है. इसलिए, उसके लिए एक विशेष धारा, विशेष परिभाषा और बढ़ी हुई सजा में कोई बुराई नहीं है. लेकिन जब आतंकवाद पर पहले से ही यूएपीए एक विशेष कानून है, तब एक नए कानून को लाकर सिर्फ भ्रम पैदा करने का काम किया गया है.

‘नए कानून में सुधार से जुड़ा कुछ खास नहीं ‘

पूर्व गृहमंत्री ने ये भी कहा कि इन कानूनों में सुधार से जुड़ा कुछ खास नहीं है.जबकि मनमाने ढंग से की गई गिरफ्तारियों को लेकर भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने हाल ही में एक फैसले में कहा था कि गिरफ्तार करने की शक्ति का मतलब गिरफ्तार करने की जरूरत नहीं है.

चिदंबरम ने कहा कि प्रतिबंधात्मक जमानत व्यवस्था का एक इतिहास रहा है. मनी लॉन्ड्रिंग (रोकथाम) अधिनियम (पीएमएलए) 2002 में पारित किया गया था, तब सत्ता में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार थी. इसे 17 जनवरी 2003 को राष्ट्रपति की सहमति मिली थी. हालांकि, इसे कांग्रेस सरकार में अधिसूचित किया गया.

इसके पीछे की कहानी बताते हुए चिदंबरम कहते हैं, ‘फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) 2002-2003 से ही कांग्रेस को परेशान कर रही थी. एफएटीएफ ने धमकी दी थी कि यदि इस कानून को अधिसूचित नहीं किया गया, तो आपको बाहर कर दिया जाएगा. इसलिए हमारे पास इसे अधिसूचित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था और हमने सत्ता में आने के एक साल बाद 1 जुलाई 2005 को इसे अधिसूचित किया.’

‘नए कानून विधि आयोग के निर्देशों पर तैयार होने चाहिए थे’

चिदंबरम ने नए कानूनों को लेकर कहा कि इसमें खामियां इसलिए हैं, क्योंकि इसका मसौदा गैर-पेशेवर लोगों ने तैयार किया है. इसे विधि आयोग के निर्देशों द्वारा गुजरना चाहिए था क्योंकि विधि आयोग के पास विभिन्न स्तरों पर अनुभवी लोग हैं. देश के सभी प्रमुख कानून विधि आयोग के निर्देश  द्वारा ही तैयार किए जाते हैं.

चिदंबरम ने सरकार के इस तर्क को भी खोखला बताया कि नए कानूनों को लाने के पीछे सरकार का मकसद उपनिवेशवाद को ख़त्म करना था.

उनका कहना है, ‘आपने थॉमस बबिंगटन मैकाले (आईपीसी के लेखक) और सर जेम्स फिट्जजेम्स स्टीफन (साक्ष्य अधिनियम के लेखक) की भाषा का औसतन 95% हिस्सा बरकरार रखा है. तो आपने किस औपनिवेशिक कानून को उखाड़ फेंका है? आपने मरणोपरांत उनमें से अधिकांश को बरकरार रखकर औपनिवेशिक लेखकों को श्रद्धांजलि अर्पित की है.’