नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (8 जुलाई) को अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि अदालतें आरोपियों के लोकेशन को ट्रैक करने के लिए उनके गूगल मैप का पिन साझा करने को नहीं कह सकती हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, शीर्ष अदालत ने गूगल लोकेशन साझा करने के एक मामले में दिल्ली हाईकोर्ट की लगाई जमानत की शर्त को खारिज कर दिया.
बार और बेंच के मुताबिक, जस्टिस अभय एस. ओका और उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि जमानत की कोई शर्त जमानत के मूल उद्देश्य को ही खत्म नहीं कर सकती. गूगल पिन जमानत की शर्त नहीं हो सकती. जमानत की ऐसी कोई शर्त नहीं हो सकती, जिससे पुलिस लगातार आरोपी की हरकतों पर नजर रख सके. जांच एजेंसी को मनमाने ढंग से शर्तें लगाकर जमानत पर छूटे आरोपी के निजी जीवन में लगातार ताक-झांक करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.
इससे पहले सुनवाई के दौरान कोर्ट ने गूगल इंडिया को यह बताने का निर्देश दिया था कि गूगल मैप्स पर पिन शेयरिंग फीचर कैसे काम करता है.
बार और बेंच के अनुसार, 29 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए अदालत ने टिप्पणी की थी कि ऐसी स्थिति निजता के अधिकार को प्रभावित करती है, जिसकी गारंटी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दी गई है.
अदालत ने गूगल पिन शेयरिंग को अनावश्यक बताया
अदालत ने जमानत के लिए एक सुविधा के रूप में गूगल पिन शेयरिंग को अनावश्यक बताया. कोर्ट ने कहा कि ये सिस्टम वास्तविक समय की ट्रैकिंग भी नहीं है.
अदालत ने कहा, ‘जमानत के लिए गूगल पिन साझा करने की शर्त हटाई जानी चाहिए. कुछ मामलों में इस न्यायालय ने इसी तरह की शर्त लगाई हो सकती है. लेकिन उन मामलों में इस अदालत को इसके प्रभाव और वैधता के मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए नहीं कहा गया था.’
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला ड्रग्स मामले में आरोपी नाइजीरियाई नागरिक फ्रैंक विटस की अंतरिम जमानत देने के आदेश में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई कुछ शर्तों के खिलाफ अपील पर आया है, जिसमें उन्हें गूगल मैप पिन को साझा करने को कहा गया था.