नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांग जन अधिनियम (डिसेबिलिटी कानून) के प्रावधानों को लागू न करने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की है.
रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने लंबित रिक्तियों के तहत सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले ग्यारह शत-प्रतिशत दृष्टिबाधित (Visually Impaired) अभ्यर्थियों को तीन महीने के भीतर नियुक्ति देने का आदेश भी दिया है.
जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने मंगलवार (8 जुलाई) को सौ प्रतिशत दृष्टिबाधित पंकज श्रीवास्तव से जुड़े मामले में केंद्र सरकार की अपील पर ये आदेश जारी किया. पंकज ने सिविल सेवा परीक्षा 2008 पास की थी, लेकिन उन्हें सरकार द्वारा नियुक्ति देने से इनकार कर दिया गया था.
मालूम हो कि डिसेबिलिटी कानून, 1995 के तहत सरकार में कुछ पद और सेवाएं शारीरिक तौर पर अक्षम व्यक्तियों के लिए आरक्षित हैं.
शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार ने 1996 से 2009 तक इस अधिनियम के तहत ‘आरक्षण ‘को प्रभावी नहीं किया, जिसके चलते नियुक्तियों का बैकलॉग हो गया.
ज्ञात हो कि पंकज श्रीवास्तव ने शारीरिक तौर पर अक्षम लोगों के लिए खाली पड़ी रिक्तियों पर अपनी नियुक्ति न होने को चुनौती दी थी.
इस मामले में 2012 में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने एक निर्देश जारी कर कहा था कि जो दृष्टिबाधित लोग परीक्षा की मेरिट सूची में जगह नहीं बना पाते, उन्हें आरक्षित पदों के लिए विचार किया जाएगा. वहीं, सूची में जगह बनाने वाले शारीरिक तौर पर अक्षम लोगों को अनारक्षित पदों पर नियुक्त किया जाएगा.
सरकार ने इस निर्देश को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, जहां 2013 में इस फैसले को बरकरार रखा गया. इसके बाद सरकार ने इस फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी.
इस संबंध में मंगलवार को जस्टिस ओका और मित्तल ने कहा कि पंकज श्रीवास्तव की नियुक्ति पर विचार किया जा सकता था, खासकर तब, जब 1995 के अधिनियम के प्रावधानों को तुरंत लागू करने में सरकार की ओर से गंभीर चूक हुई हो.’
अदालत ने पंकज के साथ ही दस अन्य दृष्टिबाधित उम्मीदवारों पर भी इसे लागू करने का निर्देश दिया, जिन्होंने 2008 की सिविल सेवा परीक्षा में श्रीवास्तव से बेहतर अंक प्राप्त किए थे.
न्यायाधीशों ने केंद्र सरकार के बारे में कहा, ‘दुर्भाग्य से अपीलकर्ता ने इस मामले में सभी चरणों में ऐसा रुख अपनाया जो ऐसे व्यक्तियों के लाभ के लिए कानून बनाने के मूल उद्देश्य को ही विफल करता है.’
कोर्ट ने आगे कहा, ‘यदि अपीलकर्ता ने दिव्यांग जन (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 को उसके वास्तविक अर्थों में लागू किया होता तो दृष्टिबाधित अभ्यर्थी को न्याय के लिए दर-दर नहीं भटकना पड़ता.’
अदालत ने अनुच्छेद 142 के तहत मिली अपनी विशेष शक्ति, जो उसे अपने समक्ष किसी मामले में ‘पूर्ण न्याय करने’ के लिए कोई भी आदेश पारित करने की अनुमति देती है, का उपयोग करते हुए सरकार को इन ग्यारह उम्मीदवारों को सिविल सेवाओं में बैकलॉग डिसेबल रिक्तियों के तौर पर नियुक्त करने पर विचार करने का निर्देश दिया.
उन्होंने कहा, ‘नियुक्तियां देने की आवश्यक कार्रवाई तीन महीने की अवधि के भीतर की जाएगी. उम्मीदवार अपनी नियुक्ति में देरी से बढ़ने वाले बकाया या वरिष्ठता का भुगतान करने के हकदार नहीं होंगे. लेकिन उनके सेवानिवृत्ति लाभों के लिए उनकी सेवाओं की गणना उस तारीख से की जाएगी, जिस दिन सीएसई-2008 में दृष्टिबाधित श्रेणी के अंतिम उम्मीदवार को नियुक्ति दी गई थी.’
गौरतलब है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म और विजुअल मीडिया में शारीरिक तौर पर अक्षम/विशेष तौर पर सक्षम व्यक्तियों के चित्रण पर निर्माताओं को सख्त निर्देश जारी किया है. कोर्ट ने कहा है कि सभी को ऐसी किसी अक्षमता पर अपमानजनक टिप्पणी या व्यंग्य करने से बचा जाना चाहिए, फिल्मों आदि में ऐसी किसी स्थिति से जूझ रहे व्यक्ति का तिरस्कार नहीं किया जाना चाहिए बल्कि उनकी उपलब्धियों का प्रदर्शन किया जाना चाहिए.