नई दिल्ली: गुजरात के एक निचली अदालत के पूर्व जज अंबालाल आर. पटेल को सरकार द्वारा राज्य का अभियोजन निदेशक (Prosecution Director) नियुक्त किया गया है. पटेल करीब सालभर पहले ही सेवानिवृत्त हुए थे.
रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2022 में जस्टिस अंबालाल पटेल 2008 में हुए अहमदाबाद बम विस्फोट मामले में 38 लोगों को एक साथ मौत की सज़ा सुनाने के बाद सुर्खियों में थे.
मालूम हो कि अंबालाल आर. पटेल ने सेशन जज रहते हुए 2023 में एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड की उस याचिका को भी खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने 2002 के गोधरा दंगों से संबंधित अपने खिलाफ झूठे सबूत गढ़ने के मामले को बंद करने की मांग की थी.
जस्टिस पटेल ने अपनी सेवा के दौरान राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक आरबी श्रीकुमार और पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट के खिलाफ शुरू किए गए आपराधिक मुकदमे की भी अध्यक्षता की थी. श्रीकुमार और भट्ट दोनों पर तीस्ता सीतलवाड के साथ मिलकर 2002 के गुजरात दंगों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य को फंसाने की ‘साजिश’ रचने का आरोप है.
इस मामले में तीस्ता सीतलवाड को सुप्रीम कोर्ट ने और श्रीकुमार को गुजरात हाईकोर्ट ने जमानत दे दी है, जबकि संजीव भट्ट एक अन्य मामले में 20 साल की जेल की सज़ा समेत कई आरोपों के तहत न्यायिक हिरासत में हैं.
ज्ञात हो कि 2008 के अहमदाबाद सिलसिलेवार विस्फोट मामले में मौत की सज़ा पाए लोगों की अपील और उनकी मौत की सज़ा की पुष्टि के लिए गुजरात सरकार के आवेदन राज्य उच्च न्यायालय में लंबित हैं.
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 366 के तहत किसी को मौत की सज़ा तब तक नहीं दी जा सकती, जब तक कि किसी सेशन कोर्ट द्वारा दी गई सज़ा की पुष्टि हाईकोर्ट न कर दे.’
इसके साथ ही भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 368 के मुताबिक, उच्च न्यायालय सज़ा की पुष्टि तब तक नहीं कर सकता है जब तक सज़ा पाए व्यक्ति के अपील करने की समय सीमा समाप्त न हो जाए या उसकी अपील का निपटारा न हो जाए.
जस्टिस पटेल ने तब इस मामले में 11 अन्य लोगों को आजीवन कारावास की सज़ा भी सुनाई थी.
सेवानिवृत्त जस्टिस पटेल, अब राज्य के अभियोजन निदेशक के रूप में इस मामले में हस्तक्षेप कर सकते हैं, इसकी कार्यवाही में तेजी ला सकते हैं और अपील दायर करने के बारे में अपनी राय भी दे सकते हैं.
गौरतलब है कि गुजरात में अभियोजन निदेशक का पद बीते कुछ वर्षों से निष्क्रिय पड़ा था.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार द्वारा आपराधिक मामलों में सज़ा दर बढ़ाने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के अनुरूप अभियोजन निदेशालय को पुनर्जीवित करने के लिए एक समिति का गठन किया गया था, जिसमें राज्य के गृह, कानूनी और विधायी विभाग के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे.
इसके बाद जनवरी 2022 में गुजरात अभियोजन निदेशालय तब खबरों में आया था, जब एक मामले में आरोपी को जमानत देने के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील नहीं करने पर सुप्रीम कोर्ट ने इस निदेशालय की खिंचाई की थी. ये मामला एक दलित व्यक्ति की बेरहमी से हत्या से जुड़ा था, जो एक कारखाने के बाहर से कबाड़ इकट्ठा कर रहा था.
तब शीर्ष अदालत के जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा था कि राज्य और अभियोजन निदेशक (अपने) कर्तव्यों में विफल रहे हैं.