नई दिल्ली: पतंजलि आयुर्वेद एक बार फिर सुर्खियों में है और इसकी वजह कंपनी के वो 14 प्रतिबंधित उत्पाद हैं, जिनकी बिक्री और विज्ञापन को सुप्रीम कोर्ट ने बंद करने का निर्देश दिया था.
अदालत ने मंगलवार (9 जुलाई) को पतंजलि आयुर्वेद से इस बात का सबूत पेश करने के लिए कहा था कि कंपनी ने अप्रैल में उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग विभाग द्वारा प्रतिबंधित 14 उत्पादों की बिक्री और विज्ञापन बंद कर दिए हैं.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट कंपनी के इस दावे की पुष्टि करना चाहता था कि वास्तव में पतांजलि ने सभी स्टोर मालिकों, विज्ञापन आउटलेट्स और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को प्रतिबंध का पालन करने को कहा है या नहीं.
इस संबंध में अखबार ने मंगलवार और बुधवार (10 जुलाई) को देश के चार प्रमुख शहरों- नई दिल्ली, लखनऊ, पटना और देहरादून के पतंजलि स्टोर्स का दौरा किया और पाया कि पतांजलि के प्रतिबंधित उत्पादों की बिक्री अभी भी जारी है. कई दुकानों पर बैन किए गए सभी 14 उत्पाद नहीं मिले, लेकिन इसके पीछे का कारण स्टॉक की कमी थी, न कि सप्लाई का बंद होना.
कुछ दुकानों में काउंटर पर बैठे लोगों ने जोर देकर कहा कि इन उत्पादों को एक सप्ताह के भीतर दोबारा खरीदा जा सकता है. वहीं, बैन किए गए सभी 14 उत्पाद किसी न किसी दुकान पर आसानी से उपलब्ध थे.
पतंजलि के जिन 14 उत्पादों के विनिर्माण लाइसेंस रद्द किए गए हैं, उनमें श्वासारि गोल्ड, श्वासारि वटी, ब्रोंकोम, श्वासारि प्रवाही, श्वासारि अवलेहा, मुक्ता वटी एक्स्ट्रा पावर, लिपिडोम, लिवामृत एडवांस, लिवोग्रिट, बीपी ग्रिट, मधुग्रिट, मधुनाशिनी वटी एक्स्ट्रा पावर और पतंजलि दृष्टि (आंखों में डालने की दवाई) शामिल हैं.
अखबार की टीम ने जब नई दिल्ली के न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी में पतंजलि स्टोर का दौरा किया, तो वहां के दुकानदार इन दवाइयों के लाइसेंस रद्द होने की खबर से अनजान थे. यहां स्टॉक में बैन किए गए 14 में से सात उत्पाद उपलब्ध थे.
न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी के बाद दिल्ली के ईस्ट ऑफ कैलाश इलाके के पतंजलि स्टोर पर भी विक्रेता ने कहा कि उनके पास 14 में से नौ दवाओं का स्टॉक है, लेकिन उन्हें इनके ऊपर लगाए गए प्रतिबंध के बारे में कोई जानकारी नहीं है.
उन्होंने अख़बार से कहा, ‘हमारे पास ईस्ट ऑफ कैलाश, जीके, जंगपुरा, पंचशील पार्क, ग्रीन पार्क और अन्य क्षेत्रों से ग्राहक हैं. वे नियमित रूप से हमारी दवाएं खरीदते हैं. अधिकांश ग्राहक वृद्ध पुरुष या मध्यम आयु वर्ग के कपल हैं.’
पटना के लोक नायक भवन, डाक बंगला चौराहे के पास, परागति पतंजलि के आशीष केशरी ने अख़बार को बताया कि उन्हें कंपनी की ओर से अपने आयुर्वेदिक उत्पादों की बिक्री बंद करने की कोई सूचना नहीं मिली है.
उन्होंने आगे बताया, ‘लोकसभा चुनाव की अवधि के दौरान आपूर्ति श्रृंखला 10 दिनों के लिए बाधित हुई थी. यदि पतंजलि के किसी भी उत्पाद पर प्रतिबंध लगाया गया होता, तो वे सप्लाई चेन में नहीं होते और हम उन्हें बेच नहीं रहे होते.’ उनके पास 14 प्रतिबंधित दवाओं में से 13 के स्टॉक मिले.
इसी तरह आभार के रिपोर्टर लखनऊ के हजरतगंज में पहुंचे और 9 जुलाई को शाम 7.30 बजे पतंजलि आरोग्य केंद्र से कुल 3,370 रुपये में सभी 14 दवाएं मिल गईं. स्टोर चलाने वाले दुकानदार ने कहा कि ये सभी दवाएं थोक में उपलब्ध हैं. इनकी 10 से अधिक स्ट्रिप्स भी दी जा सकती है.
मालूम हो कि पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ने मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय को जानकारी दी थी कि कंपनी ने उन 14 उत्पादों की बिक्री रोक दी है, जिनका मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण ने अप्रैल में निलंबित कर दिया था.
पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ने जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ को बताया था कि उसने 5,606 फ्रेंचाइजी स्टोर्स को भी इन उत्पादों को वापस लेने का निर्देश जारी किया है. इन सबके अलावा मीडिया प्लेटफॉर्मों से इन 14 उत्पादों से जुड़े सभी विज्ञापन वापस लेने का निर्देश दिया है.
बेंच ने पतंजलि आयुर्वेद को दो हफ्ते के भीतर एक हलफनामा दायर कर यह बताने का निर्देश दिया कि क्या विज्ञापन हटाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से किए गए अनुरोध पर अमल किया गया है और क्या इन 14 उत्पादों के विज्ञापन वापस ले लिए गए हैं.
कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 30 जुलाई को होनी है.
इससे पहले उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण ने न्यायालय को बताया था कि पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड और दिव्य फार्मेसी के 14 उत्पादों के निर्माण लाइसेंस को ‘तत्काल प्रभाव से निलंबित’ कर दिया गया है. सर्वोच्च अदालत ने भ्रामक विज्ञापन मामले में योग गुरु रामदेव, उनके सहयोगी बालकृष्ण और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड को जारी अवमानना नोटिस पर 14 मई को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था.
उल्लेखनीय है कि यह भी सामने आया था कि उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण ने पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ की गई शिकायतों पर दो साल से अधिक समय तक कोई कार्रवाई नहीं की थी.
इसी मामले में आयुष मंत्रालय ने अदालत में एक हलफनामा दायर कर कहा था कि उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों के ख़िलाफ़ की गई शिकायतों पर चेतावनी देने और कंपनी को विज्ञापन बंद करने के लिए कहने के अलावा दो साल से अधिक समय तक कोई कार्रवाई नहीं की.
मालूम हो कि केरल के डॉक्टर केवी बाबू ने पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए कई बार केंद्र सरकार को पत्र लिखा था. बीते फरवरी महीने में लिखे पत्र में केंद्र से शिकायत करते हुए उत्तराखंड के अधिकारियों पर केंद्र के कई निर्देशों और प्रधानमंत्री कार्यालय के हस्तक्षेप के बावजूद पतंजलि के हर्बल उत्पादों के भ्रामक विज्ञापनों को लेकर पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ कार्रवाई न करने का आरोप लगाया था.