अपने धर्म के स्वतंत्र पालन करने का अधिकार दूसरों को धर्मांतरित करने का हक़ नहीं देता: हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान द्वारा दिया गया अधिकार यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी धार्मिक मान्यताओं को चुनने, पालन करने की स्वतंत्रता है. हालांकि, इस अधिकार को दूसरों को अपने धर्म में परिवर्तित करने के हक़ के रूप में नहीं देखा जा सकता.

इलाहाबाद हाईकोर्ट. (फोटो साभार: विकिपीडिया/Vroomtrapit)

नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि संविधान स्वतंत्र रूप से अपने धर्म का पालन करने का अधिकार देता है, लेकिन इसे ‘धर्मांतरण करना यानी ‘अन्य लोगों को अपने धर्म में परिवर्तित करने के अधिकार’ के रूप में विस्तारित नहीं किया जा सकता.’ 

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने यह टिप्पणी महाराजगंज के श्रीनिवास राव नायक को जमानत देने से इनकार करते हुए किया. उन पर अवैध धर्मांतरण कराने का आरोप है.  

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, श्रीनिवास पर आरोप है कि 15 फरवरी, 2024 को विश्वनाथ के घर पर कई ग्रामीण इकट्ठा हुए थे, जिनमें ज्यादातर अनुसूचित जाति समुदाय के थे. वहां श्रीनिवास और अन्य भी मौजूद थे. 

उन्होंने कथित तौर पर भेदभाव से बचने और बेहतर जीवन का वादा करते हुए इस मामले में सूचना देने वाले व्यक्ति को हिंदू धर्म छोड़ने और ईसाई धर्म अपनाने का आग्रह किया. कुछ ग्रामीणों ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया और प्रार्थना करना शुरू कर दिया. वहीं, सूचना देने वाले व्यक्ति भाग गया और पुलिस को घटना की सूचना दी. 

श्रीनिवास के वकील ने दलील दी कि उनका कथित धर्मांतरण से कोई संबंध नहीं है और वह आंध्र प्रदेश के निवासी  विश्वनाथ (सह-आरोपियों में से एक) का घरेलू सहायक था और उसे मामले में झूठा फंसाया गया है. 

यह भी कहा जा रहा है कि ईसाई धर्म अपनाने वाला कोई भी व्यक्ति शिकायत दर्ज कराने के लिए आगे नहीं आया है.

दूसरी ओर, सरकारी वकील ने कहा, ‘आवेदक महाराजगंज आया था जहां धर्म परिवर्तन हो रहा था और वह उस प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग ले रहा था जो कानून के खिलाफ है.’

श्रीनिवास पर उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 की धारा 3 और 5 (1) के तहत मामला दर्ज किया गया था. 

अपने आदेश में अदालत ने कहा कि संविधान द्वारा दिया गया अधिकार यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी धार्मिक मान्यताओं को चुनने, पालन करने और व्यक्त करने की स्वतंत्रता है.

हालांकि, अदालत ने यह भी जोड़ा कि अंतरात्मा और धर्म की स्वतंत्रता के व्यक्तिगत अधिकार को दूसरों को अपने धर्म में परिवर्तित करने के अधिकार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने कहा, ‘धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति और धर्म परिवर्तित कराने वाले व्यक्ति, दोनों को समान रूप से मिला हुआ है.’ 

उल्लेखनीय है कि 1 जुलाई को इसी अदालत ने कथित अवैध धर्म परिवर्तन से संबंधित एक अन्य मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने कहा था कि यदि धर्मांतरण को लागू करने की अनुमति दी गई, तो इस देश की बहुसंख्यक आबादी एक दिन अल्पसंख्यक हो जाएगी.

उनका कहना था कि इस तरह की धार्मिक सभा को तुरंत रोक देना चाहिए जहां पर धर्मांतरण हो रहा हो. 

हाईकोर्ट जज ने कहा था, ‘ऐसे कई मामले इस अदालत के संज्ञान में आए हैं जहां पर एससी/एसटी जाति और आर्थिक रूप से कमज़ोर व्यक्तियों सहित अन्य जातियों के लोगों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने की गैरकानूनी गतिविधि पूरे उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर हो रही है.’ 

गौरतलब है कि हाल के वर्षों में भाजपा लगातार कथित धर्मांतरण के लिए सख्त नियमों का समर्थन करती रही है और पार्टी द्वारा शासित राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानून भी पारित किए जा रहे हैं. 

हालांकि, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने धर्मांतरण विरोधी कानूनों के बहाने अक्सर अल्पसंख्यक समुदायों के उत्पीड़न का आरोप लगाया है.