नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (12 जुलाई) को मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत गिरफ्तारी को लेकर एक अहम टिप्पणी में कहा कि इस कानून की धारा 19 (1) के तहत गिरफ्तारी की शक्ति का प्रयोग प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारियों की मर्जी और पसंद के अनुसार नहीं किया जा सकता.
द हिंदू की खबर के मुताबिक, पीएमएलए के तहत की गई गिरफ्तारियों पर अदालत ने हैरानी जताते हुए ईडी से सवाल किया कि उनके पास इस कानून के तहत लोगों की गिरफ्तारी को लेकर कोई स्पष्ट और एक समान नीति है या नहीं.
अदालत ने आगे कहा कि ईडी का आचरण सुसंगत और एकरूपता वाला होना चाहिए. किसी अधिकारी को गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति को फंसाने वाली सामग्री को चुनने का अधिकार नहीं दिया जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, पीएमएलए के तहत ईडी अधिकारी किसी व्यक्ति को तभी गिरफ्तार कर सकते हैं, जब उनके पास उस व्यक्ति के खिलाफ ठोस सामग्री हो, जिसके आधार पर यह विश्वास किया जा सके कि वह व्यक्ति दोषी है.
अदालत की ये टिप्पणी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में ईडी द्वारा उनकी गिरफ्तारी की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुनाने के दौरान सामने आई. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत दे दी है.
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पीएमएलए की धारा 19 (1) के तहत ईडी अधिकारियों को दी गई गिरफ्तारी की शक्ति कठोर है और इससे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों को मिले जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के उल्लंघन का खतरा है.
इस फैसले को लिखने वाले जस्टिस खन्ना ने ईडी मामलों पर उपलब्ध डेटा को लेकर भी सवाल किया. जस्टिस खन्ना ने कहा कि ईडी के पास सिर्फ 2023 तक के आंकड़े मौजूद हैं. इसके बाद इसे आज तक अपडेट नहीं किया गया.
उन्होंने आगे बताया कि 31 दिसंबर, 2023 तक 5,906 प्रवर्तन मामलों की सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) दर्ज की गई थीं. हालांकि, इनमें से 4,954 सर्च वॉरंट जारी करके 531 ईसीआईआर में तलाशी ली गई.
जस्टिस खन्ना ने कहा, ‘ये डेटा कई सवाल उठाता है… पूर्व सांसदों, विधायकों और एमएलसी के खिलाफ दर्ज ईसीआईआर की कुल संख्या 176 थी. वहीं, गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों की संख्या 513 थी, जबकि दायर अभियोजन शिकायतों की संख्या 1,142 थी. इसके बाद इसे अपडेट नहीं किया गया है.’
अदालत ने कहा कि पीएमएलए के तहत ईडी अधिकारियों को किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने की अनुमति है, लेकिन इसके लिए अधिकारी के पास आरोपी के खिलाफ पर्याप्त विश्वास करने के कारण होने चाहिए, किसी व्यक्ति को केवल संदेह के आधार पर किसी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, ‘संदेह और विश्वास में अंतर है. संदेह के लिए बहुत कम संतुष्टि चाहिए, ये विश्वास की श्रेणी में नहीं आता. यक़ीन अटकलों या संदेह से परे है… विश्वास करने के कारणों का अस्तित्व और वैधता, गिरफ्तार करने की शक्ति का मूल है. गिरफ्तार करने वाले अधिकारी के पास उपलब्ध सामग्री निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ होनी चाहिए.’
जस्टिस खन्ना ने मुख्यमंत्री केजरीवाल से सहमति जताई कि पीएमएलए के तहत एक आरोपी को उन कारणों को लिखित रूप में दिया जाना चाहिए जिससे एक जांच अधिकारी को विश्वास हो कि वह दोषी है और गिरफ्तार किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ईडी अधिकारियों को गिरफ्तारी के सवाल पर निर्णय लेते समय किसी व्यक्ति के खिलाफ दोषारोपण करने वाली सामग्री पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए. उन्हें ऐसी सामग्री के बारे में भी सोचना चाहिए जो गिरफ्तार व्यक्ति को दोषमुक्त और निर्दोष सिद्ध करती हो. पीएमएलए की धारा 19(1) के तहत गिरफ्तारी की शक्ति का प्रयोग अधिकारी की इच्छा और पसंद के अनुसार नहीं किया जा सकता.