नई दिल्ली: बीते साल जुलाई में में शहीद हुए भारतीय सेना के कैप्टन अंशुमान सिंह को बीते दिनों मरणोपरांत ‘कीर्ति-चक्र’ से सम्मानित किया गया था. इसके बाद मीडिया से बातचीत में उनके माता-पिता ने निकटतम परिजन नीति (एनओके) में संशोधन की मांग करते हुए सिंह की पत्नी स्मृति सिंह पर साथ न रहने और सम्मान समेत सम्मान राशि रखने से जुड़े कई आरोप लगाए.
हालांकि, सेना के सूत्रों का कहना है कि एनओके पर पहले से ही नियम-कानून स्पष्ट हैं.
द हिंदू ने सेना के सूत्रों के हवाले से बताया है कि कैप्टन अंशुमान सिंह की मृत्यु के बाद आर्मी ग्रुप इंश्योरेंस फंड (एजीआईएफ) से मिले एक करोड़ रुपये की राशि उनकी पत्नी और माता-पिता के बीच बराबर बांटी गई थी. वहीं, पेंशन पर पूरा अधिकार उनकी पत्नी स्मृति सिंह का है, इसलिए वो उनके पास जाती है.
मालूम हो कि पांच जुलाई को कैप्टन अंशुमान सिंह को मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया था, जिसे उनकी पत्नी और मां ने संयुक्त रूप से स्वीकार किया था. हालांकि, इसके बाद ही एनओके को लेकर विवाद शुरू हो गया, जिसके तहत किसी सैन्य कर्मी की ड्यूटी के दौरान मौत होने पर उनके परिवार के सदस्यों को वित्तीय सहायता और सम्मान दिए जाते हैं.
सेना के सूत्रों ने अखबार को बताया कि अंशुमान सिंह के परिवार को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भी 50 लाख की सहायता राशि दी गई थी, जिसमें से नियमानुसार 35 लाख रुपये उनकी पत्नी और 15 लाख रुपये उनके माता-पिता को दिए गए थे.
सेना के सूत्रों ने ये भी बताया कि अंशुमान सिंह के जाने के बाद उनकी पत्नी को कुछ लाभ मिल रहे हैं, क्योंकि कैप्टन सिंह ने अपनी वसीयत में उन्हें ही नॉमिनी बनाया था. इसके अलावा अंशुमान सिंह के पिता, जो खुद एक सेवानिवृत्त जूनियर कमीशंड अधिकारी (जेसीओ) हैं और एक पूर्व सैन्यकर्मी के तौर पर पेंशन और अन्य सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं, वो इस मामले में आश्रित भी नहीं हैं.
सेना के एक सूत्र ने बताया कि एनओके नीति के अनुसार, एनओके को सरकार या सेना तय नहीं करती है, ये सैन्यकर्मी अपनी मर्जी से तय करते हैं. अगर किसी की शादी नहीं हुई है तो आम तौर पर उसके माता-पिता निकटतम परिजन के तौर पर दर्ज होते हैं. हालांकि, विवाहित होने की स्थिति में यह बदलकर जीवनसाथी हो जाता है.
एनओके की प्रक्रिया
एनओके की प्रक्रिया को समझाते हुए अधिकारियों ने अखबार को बताया कि जब कोई अधिकारी सेना में नियुक्त होता है, तो वह आर्मी ग्रुप इंश्योरेंस फंड (एजीआईएफ), प्रोविडेंट फंड और किसी भी अन्य चल या अचल संपत्ति, बीमा के लिए एनओके को नामांकित करते हुए एक वसीयत बनवाता है. यह करते वक्त उसके पास विकल्प होते हैं कि वह अपने जीवनसाथी के साथ-साथ माता पिता को भी एनओके में शामिल कर सकते हैं. इसके अलावा इन सभी के लिए कई नॉमिनी भी हो सकते हैं, लेकिन पेंशन के लिए ऐसा कोई विकल्प नहीं दिया गया है.
चूंकि, कमीशन के समय अधिकारी ज्यादातर अविवाहित होते हैं, इसलिए माता-पिता को नॉमिनी बनाया जाता है और विवाह होने के बाद अधिकारियों को इसे अपडेट करने के लिए कहा जाता है. ताकि ये स्पष्ट हो जाए कि उसके न रहने पर एजीआईएफ, पीएफ और अन्य संपत्ति का बंटवारा उसकी पत्नी और माता-पिता के बीच किस आधार पर यानी कितने प्रतिशत में किया जाएगा.
एक अधिकारी ने कहा, ‘सेना इस वसीयत के मुताबिक ही पैसे और पेंशन बांटती है. उदाहरण के लिए कैप्टन सिंह के मामले में, एजीआईएफ उनकी पत्नी और माता-पिता के बीच बराबर बांटी गई, जबकि पीएफ उनकी पत्नी को दिया गया क्योंकि ये सब वसीयत में स्पष्ट लिखा था.
वहीं, पेंशन के मामले में युद्ध में हताहत घोषित सैन्यकर्मी के निकटतम रिश्तेदार यानी एनओके (जो इस मामले में कैप्टन सिंह की पन्नी हैं) को उदारीकृत पेंशन (liberalised pension) मिलती है, जो सामान्य पेंशन से अधिक होती है.
गौरतलब है कि कैप्टन अंशुमान सिंह को मार्च 2020 में आर्मी मेडिकल कोर में नियुक्त किया गया था. वो 26 पंजाब रेजिमेंट में चिकित्सा अधिकारी के रूप में सियाचिन ग्लेशियर के चंदन कॉम्प्लेक्स में तैनात थे.
सियाचिन ग्लेशियर में 19 जुलाई 2023 की सुबह भारतीय सेना के कई टेंटों में आग लग गई थी. इस आग में कई जवान फंस गए थे. कैप्टन अंशुमान सिंह ने अपनी जान की परवाह किए बिना अपने साथियों की जान बचाई, लेकिन वो खुद बुरी तरह आग में झुलस गए और उन्हें नहीं बचाया जा सका.