उत्तराखंड उपचुनाव: भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने पार्टी की हार का कारण दलबदलुओं को टिकट देना बताया

उत्तराखंड की दो विधानसभा सीटों पर हालिया संपन्न उपचुनाव में भाजपा ने बद्रीनाथ से राजेंद्र सिंह भंडारी को उतारा था, जो तीन बार कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री रहे चुके हैं. वहीं, मंगलौर सीट पर करतार सिंह भड़ाना भाजपा उम्मीदवार थे, जो बीते मार्च में बहुजन समाज पार्टी छोड़कर आए थे.

महेंद्र भट्ट. (फोटो साभार: सोशल मीडिया एक्स/@mahendrabhatbjp)

नई दिल्ली: उत्तराखंड की दो विधानसभा सीटों, बद्रीनाथ और मंगलौर, के लिए हाल ही में संपन्न हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को हार का स्वाद चखाया है. कांग्रेस राज्य के लोकसभा चुनाव में सभी सीटें हारने के बावजूद इस उपचुनाव में जीत हासिल करने में सफल रही. वहीं, भाजपा के लिए ये हार समीक्षा का विषय बनी हुई है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने इस हार पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए सोमवार (15 जुलाई) को कहा कि पार्टी को अन्य दलों से आए दलबदलू नेताओं को मैदान में उतारने के फैसले का विश्लेषण करने की जरूरत है, और अगर इसमें गलती हुई है तो उसे सुधारा जाएगा.

मालूम हो कि मंगलौर और बद्रीनाथ, दोनों ही सीटों पर भाजपा ने इस बार दलबदलू नेताओं को टिकट दिया था. बद्रीनाथ सीट पर भाजपा ने राजेंद्र सिंह भंडारी को मैदान में उतारा था, जो तीन बार कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री रहे चुके हैं. भंडारी इस साल लोकसभा चुनाव से पहले मार्च में भाजपा में शामिल हुए थे.

वहीं, अगर बात मंगलौर सीट की करें तो यहां भाजपा की ओर से करतार सिंह भड़ाना ने चुनाव लड़ा था. भड़ाना कांग्रेस के जाने-माने नेता अवतार सिंह भड़ाना के भाई हैं. वो पहले बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के नेता थे. इससे पहले वे ओम प्रकाश चौटाला के नेतृत्व वाली इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) के सदस्य थे, जिनके साथ वे एक बार मंत्री भी रहे थे. करतार सिंह ने इसी साल मार्च में ही भाजपा का दामन थामा है. उत्तराखंड की राजनीति से पहले वे हरियाणा की राजनीति में सक्रिय थे.

भाजपा हार की समीक्षा करेगी

अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, दो साल पहले उत्तराखंड भाजपा प्रमुख का पद संभालने वाले महेंद्र भट्ट ने सोमवार को राज्य कार्यसमिति की बैठक में उपचुनाव के परिणाम स्वीकारते हुए कहा कि पार्टी इसकी समीक्षा करेगी. रणनीतिक तौर पर जो कमियां, खामियां रहीं, उन्हें दूर किया जाएगा. उन्होंने कहा कि यह सही है कि उपचुनाव के परिणाम हमारे अनुकूल नहीं रहे, लेकिन ये उतना भी बुरा नहीं है, जितना लग रहा था.

उन्होंने आगे कहा, ‘मंगलौर विधानसभा सीट, जहां हम तीसरे स्थान के लिए या अपनी जमानत बचाने के लिए लड़ते थे, हम सिर्फ 422 वोट से हारे हैं. बद्रीनाथ विधानसभा सीट पर अंत तक प्रत्येक राउंड में सिर्फ 200-300 वोट का अंतर था. लेकिन हम इस हार का आकलन करेंगे, हम कई अन्य मुद्दों का भी आकलन करेंगे, क्योंकि हाल के लोकसभा चुनावों में हमने उसी (बद्रीनाथ) विधानसभा क्षेत्र में 8,000 वोटों से जीत हासिल की थी.’

हालांकि, भट्ट ने माना कि हार के बाद एक कारण सामने आया है कि पार्टी कांग्रेस से आए नेताओं को टिकट दे रही है. उन्होंने कहा कि यह एक ‘गलती’ थी.

भट्ट ने कहा, ‘लोकसभा (चुनाव) के दौरान हमने अन्य दलों से हमारे साथ आए विधायकों से वादा किया था कि हम उन्हें विधानसभा सीटों के लिए टिकट देंगे… मैं इसका आकलन करूंगा.’

उन्होंने कहा कि यह उनका वादा था कि बद्रीनाथ को जल्द ही भाजपा द्वारा वापस ले लिया जाएगा.

कांग्रेस ने बद्रीनाथ सीट बरकरार रखी, वहीं मंगलौर भी जीत ली

गौरतलब है कि बद्रीनाथ सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस के लखपत सिंह बुटोला ने राजेंद्र सिंह भंडारी को 5,224 मतों से हाराया है. वहीं, मंगलौर सीट पर कांग्रेस नेता काजी निज़ामुद्दीन ने 422 मतों से करतार सिंह भड़ाना के खिलाफ जीत हासिल की है. इस सीट पर भाजपा कभी नहीं जीती है, न मुकाबले में रही है. मुस्लिम बहुल इस सीट पर हमेशा लड़ाई कांग्रेस और बसपा के बीच ही रही है.

वैसे ये भी एक संयोग है कि बद्रीनाथ सीट, जो धार्मिक स्थल से जुड़ी एक और सीट थी, को पार्टी ने राम मंदिर निर्माण के साल में खो दिया. इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी राजेंद्र सिंह भंडारी चुनाव लड़ रहे थे, जिनका प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट से चुनावी प्रतिद्वंद्विता का एक लंबा इतिहास रहा है.

साल 2007 में जब परिसीमन से पहले बद्रीनाथ नंदप्रयाग विधानसभा सीट के अंतर्गत आता था, तो भंडारी ने भट्ट को मामूली अंतर से हराया था. फिर 2012 में जब बद्रीनाथ विधानसभा क्षेत्र बन गया, तो भंडारी ने फिर से जीत हासिल की. इस बार वह भाजपा के प्रेम वल्लभ पंत के खिलाफ जीते. 2017 में महेंद्र भट्ट ने भंडारी को 5,364 वोटों से हराया, लेकिन 2022 में भंडारी ने राज्य भाजपा प्रमुख को 2,066 वोटों से हरा दिया था.

हालांकि, जब भंडारी भाजपा में शामिल हुए, तो उनका कोई खास विरोध नहीं हुआ. लेकिन अब भंडारी के खिलाफ बुटोला की जीत का मतलब है कि भाजपा के पास अब गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सभी विधानसभा क्षेत्र नहीं रहे.