नई दिल्ली: डब्ल्यूएचओ-यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2023 में भारत में बच्चों के टीकाकरणों की दर 2022 के मुकाबले कम रही.
साल 2020 में कोविड 19 महामारी के दौरान टीकाकरण दरों में तेजी से गिरावट आई थी, इसका असर 2021 में भी देखा गया था. हालांकि, साल 2022 में इसके प्रतिकूल टीकाकरण की दरों में सुधार दर्ज किया गया था.
रिपोर्ट के अनुसार, चिंता की बात यह है कि जहां तक कम से कम दो बीमारियों के विरुद्ध शून्य खुराक पाने वाले बच्चों की संख्या का सवाल है, तो भारत इस मामले में उन देशों में शामिल हैं जहां ऐसे बच्चों की संख्या सबसे अधिक है.
टीकाकरण दर में गिरावट से बच्चों में मृत्यु दर और रोगों की संख्या बढ़ सकती है. लगभग सभी टीकों के मामले में भारत ने 2022 में अपनी टीकाकरण दरों में सुधार किया था, लेकिन साल 2023 में परिणाम उलट गए.
साल 2022 की तुलना में 2023 में जिन प्रमुख टीकों की टीकाकरण दर में गिरावट आई, उनमें बीसीजी, डीटीपी (पहली और दूसरी खुराक), हेपेटाइटिस के टीके, खसरा (पहली खुराक), पोलियो, रोटावायरस (डायरिया) एवं अन्य शामिल हैं. खसरे की दूसरी खुराक के लिए दरें स्थिर रहीं. इनमें से अधिकांश टीकों के टीकाकरण की स्थिति अभी भी साल 2019 के पूर्व-महामारी स्तर पर वापस नहीं आई है.
निम्नलिखित तालिका बच्चों के बीच टीकों के कवरेज का एक नमूना पेश करती है:
इनमें से कुछ बीमारियों के रोगियों की संख्या में वृद्धि के प्रमाण भी मिले हैं. खसरा इसका एक उदाहरण है. कई अन्य देशों की तरह, भारत में भी इसके मामलों में वृद्धि देखी गई.
अक्टूबर 2023 से मार्च 2024 तक, भारत में खसरे के 15,590 मामले दर्ज किए गए, जो दुनिया में चौथे सबसे अधिक हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पिछले पांच वर्षों में खसरे का प्रकोप 103 देशों में फैला है – जहां दुनिया के लगभग तीन-चौथाई बच्चे रहते हैं. इसका एक प्रमुख कारण कम वैक्सीन कवरेज (80% या उससे कम) रहा.’
इसके विपरीत, खसरे के टीके की अच्छी कवरेज वाले 91 देशों में इस बीमारी का प्रकोप बहुत कम रहा.
बच्चों के बीच खसरे के टीकों की कम कवरेज के परिणामों पर प्रकाश डालते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि टीकाकरण दर में गिरावट के अलावा चिंता की बात यह भी है कि, बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे हैं जिन्हें टीकों की एक भी खुराक नहीं मिली है.
ऐसे बच्चे जिन्हें एक भी ख़ुराक नहीं लगी
चिंता का दूसरा विषय उन बच्चों की संख्या है जिन्हें टीके की एक भी खुराक नहीं मिल सकी, इन बच्चों को शून्य खुराक वाले बच्चे कहा जाता है.
डब्ल्यूएचओ-यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2023 में भारत में कम से कम 16 लाख बच्चों को डीटीपी (डिप्थीरिया, टेटनस और पर्टुसिस या काली खांसी) टीके और खसरे के टीके की एक भी खुराक नहीं मिली थी. साल 2022 में शून्य खुराक वाले बच्चों की संख्या 11 लाख थी.
जहां तक डीटीपी (पहली खुराक) का सवाल है, 93% बच्चों का टीकाकरण करने के बावजूद भारत दूसरे सबसे अधिक बच्चों का टीकाकरण करने वाला देश बनने से चूक गया है.
शून्य खुराक वाले बच्चों की संख्या की बात करें तो केवल नाइजीरिया में भारत की तुलना में शून्य खुराक वाले बच्चों की संख्या अधिक थी. इस समूह के अन्य देशों में – इथियोपिया, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, सूडान, इंडोनेशिया, यमन, अफगानिस्तान, अंगोला और पाकिस्तान शामिल थे. इन 10 देशों में वैश्विक स्तर पर 59% ऐसे बच्चे हैं जिन्हें डीटीपी की पहली खुराक भी नहीं मिल सकी.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सबसे अधिक शून्य खुराक वाले बच्चों की संख्या वाले देश या तो वे हैं जहां जनसंख्या अधिक है, या जहां स्वास्थ्य प्रणाली कमजोर है या फिर दोनों हैं. 2023 में इस सूची में शामिल हुए नए देशों में सूडान, यमन और अफगानिस्तान जैसे संघर्ष पीड़ित देश हैं.’
इसी तरह, खसरे के मामले में भारत में 16 लाख शून्य-खुराक वाले बच्चे हैं (93% बच्चों का टीकाकरण करने के बावजूद), जो दुनिया में तीसरे सबसे अधिक हैं. केवल नाइजीरिया और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो ही भारत से आगे थे. इस समूह के अन्य देश, जहां वैश्विक स्तर पर 55% बच्चे इस टीके से वंचित हैं, हैं- इथियोपिया, पाकिस्तान, सूडान, इंडोनेशिया, यमन, अंगोला और अफगानिस्तान.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘टीकाकरण एजेंडा 2030 (आईए 2030) का एक प्रमुख लक्ष्य 2030 तक शून्य खुराक वाले बच्चों की संख्या को आधा करना है.’