उत्तराखंड: जोशीमठ डूबने और इस पर की गई कार्रवाई को लेकर एनजीटी ने राज्य सरकार से जवाब मांगा

राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा जोशीमठ में भू-धंसाव की घटनाओं को लेकर पिछले साल दर्ज मामले में बीते जून माह में उत्तराखंड सरकार द्वारा एक रिपोर्ट दायर की गई थी, जिस पर नाराजगी व्यक्त करते हुए एनजीटी ने कहा है कि रिपोर्ट में कई खामियां हैं और सरकार द्वारा हालात सुधारने को लेकर ज़मीनी स्तर पर कोई काम नहीं किया गया है.

जोशीमठ में भू-धंसाव से प्रभावित घर. (फाइल फोटो साभार: Twitter/@Anukriti_Gusain)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने उत्तराखंड सरकार को चमोली जिले के जोशीमठ में भूमि धंसाव के बाद की गई ज़मीनी कार्रवाई को लेकर एक ‘विस्तृत’ हलफनामा दायर करने का आदेश दिया है. जोशीमठ में भूमि धंसने की कई घटनाएं सामने आई हैं, जिसमें अंधाधुंध निर्माण और अन्य कारणों के चलते ज़मीन और घरों में दरारें देखने को मिली थीं. इस वजह से यहां जनवरी 2023 में कई लोगों को अपने घरों से पलायन करने को मजबूर होना पड़ा था.

रिपोर्ट के मुताबिक, इस संबंध में एनजीटी ने इस साल जून में उत्तराखंड के वन और पर्यावरण अतिरिक्त सचिव द्वारा दायर की गई रिपोर्ट को लेकर नाराज़गी जाहिर की है. इसका कहना है कि इसमें कई ‘कमियां’ हैं. मसलन, इसमें उन एजेंसियों को सूचीबद्ध नहीं किया गया, जो नियमित भूवैज्ञानिक जांच की निगरानी करने के लिए जिम्मेदार हैं. एनजीटी ने इस मामले की अगली सुनवाई 1 अक्टूबर के लिए तय की है.

मालूम हो कि इस बीच इलाके में भूस्खलन जारी है. मंगलवार (16 जुलाई) को जोशीमठ के पास पहाड़ी से मलबा गिरने से एक मजदूर की मौत हो गई और एक अन्य मजदूर घायल हो गया है.

ज्ञात हो कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पिछले साल 16 जनवरी को द ट्रिब्यून में प्रकाशित एक समाचार रिपोर्ट, ‘जोशीमठ आपदा मसूरी के लिए एक चेतावनी’ का स्वत: संज्ञान लेते हुए उस महीने एक मामला दर्ज किया था, जिससे उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ में भूमि धंसने के मुद्दे पर गौर किया जा सके.

बीते साल 8 जनवरी, 2023 को अधिकारियों ने इस क्षेत्र को भूस्खलन की संभावनाओं वाले6 और भूमि धंसाव-प्रभावित क्षेत्र के रूप में सूचीबद्ध किया था. द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, 9 जनवरी तक यहां 678 इमारतें, जिनमें घर भी शामिल थे, में दरारें आ गई थीं और अधिकारियों ने 80 से अधिक परिवारों को उनके घरों से बाहर निकाला था.

भारी निर्माण पर प्रतिबंध लगाने की चेतावनी नजरअंदाज़ की गई

विशेषज्ञों ने द वायर को बताया था कि कैसे अंधाधुध निर्माण ने जोशीमठ को इस खतरनाक स्थिति में पहुंचा दिया और कैसे सरकारों ने चार दशकों पहले इस क्षेत्र में भारी निर्माण पर प्रतिबंध लगाने की चेतावनी को नजरअंदाज कर एक जल विद्युत परियोजना और एक महत्वाकांक्षी लेकिन विवादास्पद राजमार्ग परियोजना को आगे बढ़ाया.

हालांकि, उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस मामले में बीते साल नवंबर में एक कार्रवाई रिपोर्ट (एटीआर) दायर की थी, लेकिन एनजीटी ने रिपोर्ट पर असंतोष जताते हुए आयोग से तीन सप्ताह के बाद नई रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया था.

इस साल अप्रैल में एनजीटी ने नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा था कि भूमि धंसने के एक साल बाद भी उत्तराखंड सरकार ने इस मामले से संबंधित कोई रिपोर्ट, विस्तृत योजना, सुधार के उपाय या समयबद्ध प्रस्ताव रिकॉर्ड पर नहीं रखे हैं. इसके बाद अदालत ने राज्य सरकार को रिपोर्ट पेश करने का आखिरी मौका दिया था, जिस पर इस साल जून में उत्तराखंड के वन एवं पर्यावरण अपर सचिव ने 19 जून को रिपोर्ट दाखिल की थी.

‘हालात को देखते हुए कोई काम जमीनी स्तर पर नहीं हुआ है’

हालांकि, 9 जुलाई को एनजीटी की मुख्य पीठ के जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव और जस्टिस अरुण कुमार त्यागी तथा विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल ने कहा कि रिपोर्ट में कई ‘खामियां’ हैं. उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में सरकार के वकील ‘अभी तक जमीनी स्तर पर की गई किसी कार्रवाई के बारे में नहीं बता सके हैं.’

एनजीटी ने कहा कि यह ‘रिपोर्ट केवल विचार-विमर्श, बैठकों, समीक्षा बैठकों, सामान्य वक्तव्यों आदि को संदर्भित करती है, लेकिन जब तक जमीनी स्तर पर प्रभावी कार्रवाई नहीं की जाती, तब तक समस्या का समाधान नहीं हो सकेगा. रिपोर्ट में बजट आवंटन की भी कोई जानकारी नहीं दी गई है. इस क्षेत्र की सहनीय क्षमता का आकलन और पौधरोपण योजना के बारे में भी कोई जानकारी रिपोर्ट में मौजूद नहीं है.

एनजीटी ने रिपोर्ट में जो पांच प्रमुख कमियां बताई, उनमें नियमित निगरानी/सतर्कता के लिए राज्य और केंद्रीय स्तर पर नियमित भूवैज्ञानिक और भू-तकनीकी जांच करने के लिए जिम्मेदार एजेंसियों के नाम का उल्लेख न करना अव्वल था.

सरकारी रिपोर्ट में कमियां

एनजीटी ने कहा कि इस नाजुक परिस्थिति को देखते हुए इन क्षेत्रों में लंबित परियोजनाओं की समीक्षा की जानी चाहिए.

रिपोर्ट में दूसरी कमी ये थी कि 19 असुरक्षित इमारतों को ध्वस्तीकरण नोटिस दिए जाने के बाद की गई कार्रवाई की स्थिति का खुलासा सरकार ने नहीं किया. इसके साथ ही दरारों वाले संवेदनशील स्थलों और भूस्खलन-जोखिमपूर्ण और दीर्घकालिक भूस्खलन की संभावना वाले दोनों क्षेत्रों को चिह्नित नहीं किया गया.

एनजीटी ने कहा कि भूमि भराव और ढलान स्थिरता बनाए रखने के लिए कितने स्थलों को स्थिर किया जाना है, इसकी जानकारी भी नहीं दी गई है. समयबद्ध तरीके से जल निकासी योजना की तैयारी और क्रियान्वयन का भी खुलासा नहीं किया गया है.है.

एनजीटी ने अपने 9 जुलाई के फैसले में उत्तराखंड के मुख्य सचिव को छह सप्ताह में जमीन पर की गई सभी कार्रवाइयों सहित इन सभी विवरणों के साथ एक हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है.

गौरतलब है कि जोशीमठ में पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, मंगलवार (16 जुलाई) की तड़के शहर के पास एक पहाड़ी से मलबा गिर गया, जिसके नीचे दो नेपाली मजदूर दब गए. उनमें से एक, जिसकी पहचान नेपाल के कालीकोट के रहने वाले दिनेश बहादुर (22) के रूप में हुई है, को इलाज के लिए जोशीमठ के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, जबकि दूसरे व्यक्ति गम बहादुर (35) की मलबे में दबने से मौत हो गई.

इलाके में स्थानीय पुलिस और एसडीआरएफ कर्मियों की एक टीम को खोज और बचाव अभियान में लगाया गया था.