राशन कार्ड के लिए प्रवासी श्रमिकों के सत्यापन में की गई देरी दुर्भाग्यपूर्ण है: सुप्रीम कोर्ट

इस साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत लगभग 8 करोड़ प्रवासी श्रमिकों को दो महीने के भीतर राशन कार्ड जारी करने का आदेश दिया था. शीर्ष अदालत ने देरी पर नाराज़गी जताते हुए पूछा कि आखिर चार महीनों में सत्यापन की प्रक्रिया को पूरा क्यों नहीं किया जा सका?

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (16 जुलाई) को राशन कार्ड जारी करने के लिए ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत प्रवासी मजदूरों के सत्यापन में देरी करने के दोषी राज्यों को फटकार लगाई है. अदालत ने इन राज्यों को चार सप्ताह के भीतर यह प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया है. प्रवासी मजदूरों को राशन कार्ड जारी करने के लिए सत्यापन आवश्यक है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से उन राज्यों को खाद्यान्न जारी करने का भी आदेश दिया, जिन्होंने प्रवासी मजदूरों का सत्यापन पूरा कर लिया है.

शीर्ष अदालत की जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए सत्यापन प्रक्रिया में देरी को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया. पीठ ने कहा कि यदि राज्य निर्धारित समय के भीतर सत्यापन प्रक्रिया पूरी करने में विफल रहते हैं तो अदालत संबंधित सचिवों को तलब करेगी.

पीठ ने देरी पर नाराज़गी जताते हुए पूछा, ‘आखिर चार महीनों में सत्यापन की प्रक्रिया को पूरा क्यों नहीं किया जा सका? ये हद है. चार महीने के बाद भी आप इस प्रक्रिया में लगे हैं और यह कहने का दुस्साहस कर रहे हैं कि अभी दो महीने और चाहिए. हम निर्देश देते हैं कि इस प्रक्रिया को चार सप्ताह के भीतर पूरा कर लिया जाए.’

मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को लेकर एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज, हर्ष मंदर और जगदीप छोकर द्वारा याचिका दाखिल की गई है, जिस पर अदालत ने सुनवाई के दौरान ये सख्त टिप्पणियां की.

इस याचिका में मांग की गई थी कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत राशन के कोटे की परवाह किए बिना प्रवासी मजदूरों को राशन दिया जाए.

कुछ राज्यों ने सत्यापन की प्रक्रिया पूरी कर ली, लेकिन कुछ ने शुरुआत तक नहीं की

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि कुछ राज्यों ने सत्यापन की प्रक्रिया पूरी कर ली है लेकिन, कुछ राज्य ऐसे हैं, जिन्होंने अभी इस प्रक्रिया की शुरुआत तक नहीं की है.

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, प्रशांत भूषण ने कहा, ‘एक मसला ये भी है कि राशन कार्ड जारी होने के बाद भी राज्य इन श्रमिकों को राशन मुहैया नहीं करवा रहे हैं और उनका कहना है कि केंद्र सरकार ने उन्हें इन लोगों के लिए अतिरिक्त राशन आवंटित नहीं किया है.’

राज्यों के हलफनामों के आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि ज्यादातर राज्यों में इन प्रवासी श्रमिकों को राशन देने से इंकार करने की दर बहुत अधिक है. वहीं, एक तथ्य यह भी है कि भारत सरकार ने अभी तक एनएफएसए के तहत प्रत्येक राज्य को कितना अतिरिक्त राशन आवंटन किया गया है, इसके विवरण के साथ हलफनामा दाखिल नहीं किया है.

याचिकाकर्ताओं द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से समझा जा सकता है कि महाराष्ट्र जैसे राज्यों में बहुत कम राशन कार्ड आवंटित किए गए हैं. मध्य प्रदेश में केवल 16 प्रतिशत सत्यापन पूरा हुआ है, जबकि उत्तर प्रदेश में केवल पांच प्रतिशत सत्यापन हुआ है.

बिहार और तेलंगाना राज्यों की प्रशंसा

इस संबंध में अदालत ने 100 प्रतिशत सत्यापन सुनिश्चित करने के लिए बिहार और तेलंगाना राज्यों की प्रशंसा की है.

गौरतलब है कि इस साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को ई- श्रम पोर्टल में पंजीकृत लेकिन राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत कवर नहीं किए गए लगभग आठ करोड़ प्रवासी श्रमिकों को दो महीने के भीतर राशन कार्ड जारी करने का आदेश दिया था.

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने अप्रैल 2023 में भी यही आदेश जारी किया था. इसमें कहा गया था कि राशन कार्ड के बिना एक प्रवासी/असंगठित मजदूर या उसके परिवार के सदस्यों को योजनाओं के लाभ और यहां तक ​​कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत मिलने वाले लाभ से भी वंचित हो जाते हैं.

इस मामले में अगली सुनवाई 27 अगस्त को होगी.