भारत में सरकार के आलोचकों के ख़िलाफ़ कार्रवाई पर लेखकों के वैश्विक संगठन ने चिंता जताई

लेखकों के वैश्विक संगठन पेन इंटरनेशल ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति को सौंपी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत में तमाम लेखकों, पत्रकारों, शिक्षाविदों और सरकार के अन्य आलोचकों की मनमाने ढंग से गिरफ़्तारियां करके उनका क़ानूनी उत्पीड़न किया जा रहा है और बिना मुक़दमों के लंबे समय तक हिरासत में रखा जा रहा है.

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प्रतीकात्मक फोटो. (साभार: United States Mission Geneva/Flickr CC BY ND 2.0)

नई दिल्ली: लेखकों के वैश्विक संगठन पेन इंटरनेशनल ने बुधवार (17 जुलाई) को इस सप्ताह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति द्वारा आयोजित भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड की समीक्षा में अभिव्यक्ति की आज़ादी से जुड़े सवालों पर भारत की प्रतिक्रिया को लेकर चिंता जाहिर की.

रिपोर्ट के मुताबिक, पेन इंटरनेशनल ने नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय अनुबंध (आईसीसीपीआर) के तहत भारत की आवधिक समीक्षा (periodic review) के तौर पर अधिकार समिति को एक रिपोर्ट भी सौंपी थी.

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे भारत में सरकार द्वारा असहमति की आवाज़ दबाने की कोशिश की जा रही है. इसके तहत तमाम लेखकों, पत्रकारों, शिक्षाविदों और सरकार के अन्य आलोचकों की मनमाने ढंग से गिरफ्तारियां कर उनका कानूनी उत्पीड़न किया जा रहा है. उन्हें बिना मुकदमों के लंबे समय तक हिरासत में रखा जा रहा है.

अभिव्यक्ति की आज़ादी के संबंध में लेखकों के संगठन ने देश की कानूनी व्यवस्था को तेजी से हथियार बनाए जाने को लेकर चिंता व्यक्त की है. संगठन का कहना है कि कानून के दम पर सरकार शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति, खासकर जो उसके या उसकी नीतियों की आलोचना से जुड़ी है, को दबा रही है.

अपने बयान में संगठन ने कहा कि अभिव्यक्ति से जुड़ी कई चिंताओं को पेन इंटरनेशनल द्वारा उजागर किए जाने के बाद समिति के सदस्यों द्वारा इसे भारत के समक्ष उठाया गया, लेकिन भारतीय प्रतिनिधिमंडल इनसे निपटने से असफल रहा.

लेखकों के संगठन ने आगे उल्लेख किया कि भारत में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) का उपयोग सरकार अपने आलोचकों पर अनुचित मुकदमे चलाने के लिए एक औजार के रूप में कर रही है.

भीमा कोरेगांव/एल्गार परिषद मामले में बनाए गए आरोपियों की हिरासत का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रोफेसर हेनी बाबू और कवि वरवरा राव के साथ हिरासत में बुरा बर्ताव किया गया और चिकित्सा आधार होने के बावजूद उन्हें जमानत नहीं दी गई.

स्वतंत्र मीडिया संगठन न्यूज़क्लिक पर पड़े छापे का उदाहरण देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि ये सरकार द्वारा स्वतंत्र मीडिया पर नकेल कसने की कोशिश है. सरकार ऑनलाइन आलोचना को सेंसर करना चाहती है.

इस रिपोर्ट में जम्मू-कश्मीर में किए गए इंटरनेट शटडाउन का भी जिक्र किया गया है. संगठन का कहना है कि सरकार इंटरनेट बंद कर अपने खिलाफ असहमति के विचारों को दबाना चाहती है.