मुज़फ़्फ़रनगर: दिल्ली से 110 किमी दूर मुजफ्फरनगर जनपद के मीरापुर से हरिद्वार जाने वाले दिल्ली-पौड़ी राजमार्ग पर लक्की शुद्ध भोजनालय के सामने 46 साल के अरविंद शर्मा एक ढाबा संचालक गुलशाद से कांवड़ यात्रा के दौरान 10 से 12 दिन ढाबा बंद रहने को लेकर चर्चा कर रहे हैं. अरविंद शर्मा सेल्समैन हैं. वो इन ढाबों पर खाने का सामान सप्लाई करते हैं. अरविंद बताते हैं कि उनके 6 ढाबा संचालक ग्राहक मुस्लिम हैं. इनका ढाबा बंद रहने से उनके कारोबार पर फर्क पड़ेगा. मांसाहारी ढाबे बंद रहते हैं तो यह समझ में आता है, मगर शाकाहारी ढाबों पर यह निर्णय सही नहीं है. यहां तो सभी मिलकर रहते हैं.
अरविंद शर्मा कहते हैं, ‘मुस्लिम ढाबा बंद करवाने से क्या फायदा है? जो मांस बेच रहे हैं उनकी दुकान बंद कराना ठीक है. लेकिन जो शुद्ध शाकाहारी दाल-रोटी, नमकीन, कोल्ड ड्रिंक्स बेच रहे हैं, उनकी दुकानें क्यों बंद करवा रहे हैं? ये तो गलत बात है.’
शर्मा आगे कहते हैं, ‘मुस्लिम होकर इन्होंने हिंदुओं का नाम रख लिया, चलो इसमें उनकी गलती है, उन्हें अपना नाम ही रखना चाहिए. इनको मुस्लिम नाम लिखना चाहिए और इसके आगे शुद्ध शाकाहारी लिखना चाहिए. फिर तो कई दिक्कत नहीं होनी चाहिए.’
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में इस समय ढाबों के नाम बदले जाने को लेकर काफी चर्चा है. कांवड़ यात्रा में मुजफ्फरनगर की सड़कों से तमाम कांवड़िये गुजरते हैं.
ढाबों का हाल
ढाबों में उदासी का माहौल है. लक्की शुद्ध भोजनालय ढाबे के मालिक गुलशाद खान कहते हैं कि ‘उनके 18 कर्मचारियों में से 17 हिंदू हैं. इसके अलावा दूध वाला, चिप्स वाला सेल्समैन, राशन वाला दुकानदार, सब्जी वाला सब हिंदू हैं. ढाबा बंद रहेगा तो यह प्रभावित होंगे. नाम बदलकर रखने से ग्राहक नहीं आएंगे! इससे समाज में बंटवारा हो रहा है.’
कांवड़ मार्ग पर ढाबों के नाम बदलने की कहानी सिर्फ मुजफ्फरनगर तक सीमित नहीं है बल्कि हरिद्वार तक जाने वाली हर सड़क की यही कहानी है. सहारनपुर , शामली , मुजफ्फरनगर के अलावा दिल्ली पौड़ी राष्ट्रीय राजमार्ग भी इसकी चपेट में है. सैकड़ों ढाबा संचालक, हजारों परिवार इससे प्रभावित होने जा रहे हैं. रेस्टोरेंट संचालक, कट्टरवादी हिंदू संगठनों से जुड़े कुछ नेता और इस पूरे मामले के सूत्रधार बघरा के एक आश्रम के संचालक यशवीर महाराज और उनके कुछ शिष्यों के अलावा कोई भी इस कार्रवाई से खुश नहीं है.
गौरतलब है कि यह सिर्फ तीन सालों से हो रहा है, जबकि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार सात साल से है. इस बार जितनी सक्रियता दिखाई गई है उतनी इससे पहले कभी नहीं रही है. एक बात समझ आती है कि हाल के चुनावों में इस इलाके में हार की खिसियाहट इसकी वजह है.
कैसे पड़ी इसकी नींव?
मुजफ्फरनगर जनपद के शामली मार्ग पर यशवीर महाराज नामक एक व्यक्ति का आश्रम है. यशवीर महाराज की हिंदुत्ववादी छवि है. कोरोना काल के बाद जब पुनः कांवड़ यात्रा प्रारंभ हुई तो यशवीर महाराज ने मुजफ्फरनगर पुलिस को 50 से अधिक ढाबों की एक सूची सौंपी, जिसमें उन्होंने दावा किया कि शुद्ध शाकाहारी का बोर्ड लगाए हुए इन हिंदू नाम वाले ढाबों के मालिक वास्तव में मुसलमान हैं और इस कारण कांवड़ यात्रा के समय कांवड़िए भ्रमित होते हैं. कांवड़ यात्रा के दौरान इन ढाबों को बंद होना चाहिए या इन्हें अपने ढाबों पर अपनी पहचान लिख देनी चाहिए, क्योंकि यहां खाना खाकर कांवड़ियों का धर्म भ्रष्ट हो जाता है.
पुलिस ने इसे गंभीरता नहीं लिया. इससे यशवीर महाराज नाराज हो गए और उन्होंने मुजफ्फरनगर में धरना दे दिया. लगातार आक्रामक भाषण होने लगे. सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने की आशंका के बीच यह चर्चा लखनऊ पहुंच गई. 2022 में ऐसे सभी ढाबों का सत्यापन कराया गया. ढाबा मालिक और वहां काम करने वाले कर्मचारियों की सूची तैयार की गई. 2023 में बिना लिखित आदेश के तमाम मुस्लिम मालिकों के ढाबों को बंद करा दिया गया. इस बार इससे भी आगे बढ़कर 230 किमी के कांवड़ मार्ग में हर प्रकार की दुकानों को चिह्नित कर उन्हें पहचान बताने के निर्देश जारी किए जा रहे हैं. हिंदू ढाबा मालिकों से मुस्लिम कर्मचारियों को छुट्टी देने के लिए कहा गया है. मुसलमान ढाबा मालिकों को मुस्लिम नाम रखने अथवा ढाबा बंद रखने के आदेश हैं. इससे भी आगे यह है कि रोजमर्रा के सामान बेचने वाली दुकानों और फल-सब्जी की रेहड़ियों पर भी पहचान अंकित करने के लिए कहा जा रहा है. इस पूरे प्रकरण ने इस इलाके के सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ कर रख दिया है. इसे मुसलमानों के बहिष्कार की मुहिम बताया जा रहा है.
सामाजिक, आर्थिक और सौहार्द के लिए ख़तरनाक है यह मुहिम
पिछले कुछ सालों में स्थानीय प्रशासन ने बड़ी संख्या में इस मुस्लिम बहुल इलाके में कांवड़ यात्रा को सफल बनाने के लिए मुसलमानों का सहयोग लिया है. कांवड़ यात्रा की भव्यता लगातार बढ़ती जा रही है.
मुजफ्फरनगर के मीनाक्षी चौक के खालापार इलाके में आता है जिसकी काफी चर्चा रहती है. इस मीनाक्षी चौक पर 10 सालों से लगातार कांवड़ियों के सेवा सत्कार के लिए शिविर लग रहे हैं. मुजफ्फरनगर की कई संस्था पैग़ाम-ए-इंसानियत, आवाज-ए-हक़ और सेकुलर फ्रंट इसी मीनाक्षी चौक पर हर साल भंडारे का आयोजन करती हैं और चिकित्सा शिविर लगाकर कांवड़ियों की सेवा करती हैं.
इसके अलावा शामली, सहारनपुर और खतौली में भी इसी तरह के शिविर लगते हैं, जिन्हें सिर्फ मुसलमान संचालित करते हैं. सैकड़ों मुसलमान नौजवान, सामाजिक कार्यकर्ता, जनप्रतिनिधि, वॉलंटियर के तौर पर प्रशासन का सहयोग करते हैं. मुजफ्फरनगर के आसिफ राही, दिलशाद पहलवान, गौहर सिद्दीकी, महबूब अली, सत्तार मंसूरी, उमर अहमद एडवोकेट एक दशक से अधिक समय से ऐसा कर रहे हैं.
किदवई नगर के निवासी उमर अहमद एडवोकेट कहते हैं कि ‘यह सौहार्द बिगाड़ने की कोशिशें है.’ उमर बताते हैं कि वो अपने हाथों से कांवड़ियों के पैर दबा चुके हैं. उनकी दवाई पट्टी की है. उन्हें फल और खाना खिलाया है. अब जैसा माहौल बनाया जा रहा है, उसमें मुसलमानों को खलनायक सिद्ध किया जा रहा है. अब उन्हें डर है कि ऐसी स्थिति में अगर बुर्का पहनकर या टोपी लगाकर निकल गए तो क्या होगा. ‘अब तो बस एक आदेश बचा है कि जब तक कांवड़ यात्रा हो तब तक मुसलमान घर से बाहर न निकलें.’
मुसलमान और हिंदू समाज के बीच है रोज़गार का संगम
हरिद्वार जाने के लिए सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और बिजनौर मुख्य मार्ग है. इस मार्ग पर हजारों की संख्या में ढाबे हैं. जिन ढाबों के मालिक मुसलमान हैं, वहां तमाम कारसाज (कर्मचारी) हिंदू हैं और जिन ढाबों के मालिक हिंदू हैं वहां तमाम कारसाज मुस्लिम हैं. इस तरह लाखों लोग इस कारोबार से जुड़े हैं. आज ये सभी ढाबा संचालक तनाव में आ गए हैं. मुजफ्फरनगर और खतौली में कुछ ढाबा संचालकों को मुस्लिम कर्मचारियों को छुट्टी देने के लिए कह दिया है. ढाबा मालिक और उनके कर्मचारी खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं क्योंकि उनका ढाबा बंद करने का फरमान आ गया है.
दिल्ली-पौड़ी मार्ग पर मुजफ्फरनगर जनपद के मीरापुर कस्बे में लक्की शुद्ध भोजनालय पर काम करने वाले पवन कुमार बताते हैं कि वो पिछले 18 साल से यहां बतौर कुक काम करते हैं. उन्हें कभी उनके धर्म के कारण भेदभाव नहीं झेलना पड़ा. पवन के चार बच्चे हैं. पवन कांवड़ यात्रा का हर साल बेसब्री से इंतजार करते हैं क्योंकि इसमें अधिक ग्राहक आते हैं.
पवन कहते हैं, ‘पहले पुलिस सिर्फ रेट लिस्ट लगाने के लिए कहती थी. मेरे ढाबा का मालिक मुसलमान है और मुझे उनके साथ कभी कोई दिक्कत नहीं हुई. मैं 18 साल से एक ही ढाबे पर काम कर रहा हूं. 15 दिन के लिए ढाबा बंद होता है तो मेरी आर्थिक स्थिति खराब हो जाएगी है. मेरे बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ रहे हैं.’ वे कहते हैं कि इन 15 दिनों पर हमारी साल भर की उम्मीदें टिकी रहती हैं.
पवन कुमार कहते हैं कि ढाबों पर नाम लिखवाना गलत है. क्या यह कहा जा सकता है कि हिंदू समाज के लोग तिलक लगाकर बैठें? ‘हजारों हिंदू लोग मुसलमानों के व्यापार में जुड़े हुए हैं, इनके साथ उनकी रोटी भी छीन रहे हैं, ये कैसी नीति है? हम मेहनत करके कमाते हैं. बैंक का लोन भी चुकाना है. काम बंद होगा तो फिर कर्ज लेना पड़ेगा.’
‘चुनाव हारने के बाद ज़हर का डोज बढ़ा रही है भाजपा’
विवादों में रहने वाले जिस यशवीर महाराज की शिकायत को आधार बनाकर यह कार्रवाई की जा रही है, वो 2018 से ऐसी मांग कर रहे थे. जून 2022 में उन्हें धरने पर बैठना पड़ा. पुलिस प्रशासन ने सालों तक उन्हें नजरंदाज किया तो फिर हाल ही में क्या हो गया?
लोग दावा कर रहे हैं कि इसका कारण शुद्ध राजनीति है. सहारनपुर मंडल से भाजपा का सफाया हो गया है. सहारनपुर, कैराना और मुजफ्फरनगर लोकसभा में अब भाजपा का सांसद नहीं है. हरिद्वार से सटी हुई मंगलौर विधानसभा सीट भी अब कांग्रेस जीत चुकी है. मेरठ में भाजपा हारते-हारते बची है. 2013 के दंगे के बाद जो ऑक्सीजन भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इस इलाके से मिली थी, वह समाप्त हो गई है. मुजफ्फरनगर के वरिष्ठ अधिवक्ता और समाजवादी पार्टी नेता प्रमोद त्यागी कहते हैं कि ‘भारतीय जनता पार्टी को सामाजिक ताना- बाना मजबूत होता देखकर तकलीफ़ होती है. ये चुनाव हार गए, इनको लगता है कि नफरत के जहर का असर कुछ कम हो गया है. इसलिए डोज बढ़ा रहे हैं.’
एक और नेता राकेश शर्मा कहते हैं कि ‘मैं हिंदू हूं. यह गलत है. हमारे समाज में मुसलमानों के प्रति सहानुभूति बन रही है. मुझे लगता है कि यहां के बड़े रेस्टोरेंट और ढाबा मालिकों ने यह साजिश रची है ताकि वो अधिक लाभ कमा सकें. इसके लिए उन्होंने धर्म का सहारा लिया है.’
पुलिस प्रशासन ने क्या दी सफाई?
मुजफ्फरनगर के एसएसपी अभिषेक सिंह कह रहे हैं कि ऐसा निर्णय कानून व्यवस्था प्रभावित न हो इसलिए लिया गया है. कांवड़ियों में किसी प्रकार कोई भ्रम नहीं होना चाहिए. कई बार कांवड़ियों के साथ खान- पान को लेकर विवाद हो जाता है, नाम देखकर भी कांवड़िए कुछ खरीदने को इच्छुक हैं तो पुलिस प्रशासन उसमें कोई रुकावट नहीं है. नाम लिखने का यह निर्णय स्वेच्छा से लिया गया है.
एसएसपी की इसी बात को सहारनपुर के डीआईजी ने भी दोहराया है. उनका कहना है कि प्रशासन की प्राथमिकता सकुशल कांवड़ यात्रा संपन्न कराने की है.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)