नई दिल्ली: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने हत्या के एक मामले में दोषी ठहराए गए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्व विधायक और इलाहाबाद के प्रभावशाली भाजपा नेता उदयभान करवरिया को समय से पहले रिहा करने का आदेश दिया है.
उदयभान को साल 2019 में उनके दो भाइयों समेत समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक की हत्या के लिए दोषी क़रार दिया गया था.
55 वर्षीय करवरिया को रिहा करने का निर्णय पूर्व कैबिनेट मंत्री अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि की समय से पहले रिहाई की अनुमति देने के एक साल के अंदर में लिया गया है. अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा काट रहे थे. बताया गया था कि मधुमिता और अमरमणि संबंध में थे.
उल्लेखनीय है कि त्रिपाठी और करवरिया दोनों ब्राह्मण समुदाय से आते हैं.
19 जुलाई को यूपी जेल प्रशासन और सुधार सेवा विभाग ने एक आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि अगर करवरिया के खिलाफ कोई अन्य मामला लंबित नहीं है तो, उन्हें जेल से रिहा किया जा सकता है. साथ ही, उन्हें जिला पुलिस प्रमुख और जिला मजिस्ट्रेट की संतुष्टि के लिए दो जमानत राशि जमा करनी होगी.
साल 2002 और 2007 में इलाहाबाद के बारा निर्वाचन क्षेत्र से दो बार भाजपा विधायक रहे करवरिया इलाहाबाद की नैनी सेंट्रल जेल में बंद हैं. 2012 में उन्होंने इलाहाबाद उत्तर सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे.
यूपी जेल प्रशासन और सुधार सेवा विभाग ने बताया है कि करवरिया ने 30 जुलाई, 2023 तक आठ साल, नौ महीने और 11 दिन जेल में बिता चुके होंगे.
विभाग के संयुक्त सचिव कृष्ण कुमार सिंह द्वारा हस्ताक्षरित आदेश के अनुसार, कावरिया की समय-पूर्व रिहाई के कारणों में जिला पुलिस प्रमुख और जिला मजिस्ट्रेट की सिफारिश, जेल में उनके ‘अच्छे व्यवहार’ और दया याचिका समिति की सिफारिश शामिल है.
मालूम हो कि नवंबर 2018 में आदित्यनाथ सरकार ने करवरिया और उनके दो भाइयों के खिलाफ हत्या का मामला वापस लेने के लिए एक आवेदन दायर किया था, लेकिन एक विशेष अदालत ने एक महीने बाद ही इस अनुरोध को खारिज कर दिया था. बाद में विशेष अदालत के इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा.
नवंबर 2019 में इलाहाबाद की एक स्थानीय अदालत ने समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक जवाहर यादव उर्फ़ पंडित जी की हत्या के लिए करवरिया और उनके भाइयों- कपिल मुनि करवरिया, सूरजभान करवरिया और उनके चाचा रामचंद्र त्रिपाठी को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
हत्या 13 अगस्त, 1996 को इलाहाबाद के व्यस्त सिविल लाइंस बाजार में हुई थी, जब यादव लीडर रोड स्थित अपने कार्यालय से कार में घर लौट रहे थे. इसी दौरान आरोपियों ने यादव की कार पर अंधाधुंध गोलीबारी की, जिसमें उनकी, उनके ड्राइवर और एक राहगीर की मौत हो गई थी.
जवाहर यादव 1993 में विधायक चुने गए थे. उनकी हत्या के बाद उनकी पत्नी विजमा यादव ने राजनीति में प्रवेश किया और वे अब प्रतापपुर निर्वाचन क्षेत्र से सपा के टिकट पर विधायक हैं. विजमा ने अपना पहला चुनाव 1996 में जीता था.
करवरिया परिवार का चुनावी राजनीति में लंबा इतिहास है. उदयभान की पत्नी नीलम करवरिया 2017 में मेजा से भाजपा के टिकट पर विधायक चुनी गईं थी, हालांकि, साल 2022 में वे अपनी सीट हार गईं.
यह परिवार अवैध रेत खनन में भी शामिल रहा है. उदयभान करवरिया के भाई कपिल मुनि पर भी अवैध खनन का आरोप लग चुका है. उन्हें 2009 में फूलपुर से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर लोकसभा सांसद के रूप में चुना गया था. सूरजभान भी बसपा सरकार के दौरान एमएलसी थे.
बसपा ने 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी में ब्राह्मणों के ‘विकास में बाधा डालने’ के आरोप में साल 2016 में सूरज भान और कपिल मुनि को पार्टी से निष्कासित कर दिया था.
साल 2023 के मई महीने में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने करवरिया बंधुओं की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. जस्टिस सलिल कुमार राय और अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने कहा था कि ‘अपराध की गंभीरता’ और ‘मामले में दर्ज सबूतों’ को देखते हुए उनका मामला जमानत के लिए उपयुक्त नहीं है.
अप्रैल 2022 में अदालत के आदेश के बाद उदयभान करवरिया उपचार के लिए जमानत पर बाहर थे, जिसे समय-समय पर बढ़ाया गया था. बाद में हाईकोर्ट ने उनकी जमानत अवधि को बढ़ाने से इनकार कर दिया था और उन्हें तुरंत जेल अधिकारियों को रिपोर्ट करने का निर्देश दिया था
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