बांग्लादेश: डेढ़ सौ लोगों की मौत का कारण बने आरक्षण विरोधी आंदोलन की जड़ें कहां हैं?

पिछले महीने आए बांग्लादेश उच्च न्यायालय के एक आदेश से सारा विवाद शुरू हुआ था, जिसमें वर्ष 2018 के प्रधानमंत्री शेख हसीना के कोटा प्रणाली ख़त्म करने के फैसले को पलटकर फिर से आरक्षण लागू कर दिया गया था.

बांग्लादेश में प्रदर्शनकारी छात्र और पुलिस आमने-सामने. (फोटो साभार:X/@UNHumanRights

नई दिल्ली: बांग्लादेश आरक्षण के विरोध की आग में झुलस रहा है. सरकारी नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ छात्रों के विरोध प्रदर्शन में 140 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.

सारा विवाद पिछले महीने आए बांग्लादेश हाईकोर्ट के एक आदेश से शुरू हुआ था, जिसमें वर्ष 2018 के प्रधानमंत्री शेख हसीना के कोटा प्रणाली खत्म करने के फैसले को पलटकर फिर से आरक्षण लागू कर दिया गया था. जिसके बाद विरोध प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया था.

बता दें कि वर्तमान आरक्षण प्रणाली विशेष समूहों के लिए 56% तक नौकरियां आरक्षित करती है, जिसमें 30 फीसदी आरक्षण 1971 के मुक्ति संग्राम के सेनानियों के वंशजों के लिए है, जबकि 26 फीसदी महिलाओं, अविकसित जिलों के लोगों, स्वदेशी समुदायों और विकलांगों के लिए है. इस प्रकार 44 फीसदी नौकरियां ही सामान्य आवेदकों के लिए खुली हैं.

ताजा घटनाक्रम में रविवार (21 जुलाई) को देश के सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में अधिकांश कोटा खत्म कर दिया. सर्वोच्च न्यायालय के अपीलीय प्रभाग ने विवाद की जड़ हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, और सरकारी सेवाओं में 93% सीटों का आवंटन योग्यता के आधार पर तय कर दिया, जबकि स्वतंत्रता सेनानियों और उनके वंशजों के लिए केवल 5% नौकरियां आरक्षित की गईं. जनजातियों, विकलांग लोगों और लैंगिक अल्पसंख्यकों के लिए एक-एक प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान रखा गया है.

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद भी प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे अपना विरोध अभी भी जारी रखेंगे.

रॉयटर्स के मुताबिक, सोमवार को कर्फ्यू के बीच बांग्लादेश शांत दिखाई दिया, लेकिन दूरसंचार सेवाओं में व्यवधान जारी रहा क्योंकि प्रदर्शनकारियों ने सरकार को नई मांगों को पूरा करने के लिए 48 घंटे की समय सीमा तय की है.

कहां से शुरु हुआ और कैसे बढ़ा विवाद?

वर्तमान आंदोलन की पटकथा 2018 से शुरू होती है. द हिंदू के मुताबिक, 8 मार्च 2018 को बांग्लादेश हाईकोर्ट ने देश में 1970 के दशक की शुरुआत से चली आ रही कोटा प्रणाली की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया था. उसी दौरान, प्रधानमंत्री शेख हसीना ने मुक्ति संग्राम के सेनानियों के वंशजों को आरक्षण देना जारी रखने का ऐलान किया, जिसके खिलाफ छात्र आंदोलन पर उतर आए. तब शेख हसीना ने एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से बांग्लादेश की सरकारी सेवाओं में सभी कोटा रद्द करने का फैसला लिया.

हालांकि, छात्र ऐसा नहीं चाहते थे. उनकी इच्छा आरक्षण खत्म करने की नही थी. वह सिर्फ आरक्षण प्रणाली में सुधार के पक्षधर थे, जबकि शेख हसीना का रुख था कि अगर स्वतंत्रता सेनानियों को आरक्षण नहीं मिलेगा तो किसी और को भी नहीं मिलेगा.

अगले दो वर्ष कई दौर की चर्चा चली, लेकिन हसीना सभी कोटा समाप्त करने के अपने निर्णय पर अड़ी रहीं और 2020 में कार्यकारी आदेश लागू हो गया.

क़रीब महीने भर पहले, बीते 5 जून को बांग्लादेश हाईकोर्ट ने आरक्षण खत्म करने वाले हसीना के कार्यकारी आदेश को निरस्त कर दिया और आरक्षण फिर से बहाल हो गया. इस फैसले के खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की.

दूसरी तरफ, अदालती फैसले के बाद छात्र विरोध प्रदर्शन पर उतर आए.

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की अपील पर पूरी तरह सुनवाई होने तक हाईकोर्ट के आदेश को रोकने का आदेश जारी किया. वहीं, हसीना ने छात्रों से अपील की कि वे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी होने दें. हालांकि, छात्र न्यायपालिका के निर्णय को लेकर अनिश्चितता की स्थिति में थे और चाहते थे कि प्रधानमंत्री उनसे और अन्य हितधारकों से परामर्श करके एक समावेशी आरक्षण प्रणाली लाएं, जिसे कार्यकारी आदेश के माध्यम से लागू किया जाए.

लेकिन, जब हसीना ने अदालती कार्यवाही का हवाला देते हुए उनकी मांगों को पूरा करने से इनकार कर दिया, तो उन्होंने अपना विरोध तेज़ कर दिया.

तब हसीना ने प्रदर्शनकारियों को ‘रज़ाकार’ कहकर संबोधित कर दिया, जो 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में देश के साथ विश्वासघात करके पाकिस्तानी सेना का सहयोग करने वाले लोगों के लिए एक अपमानजनक शब्द के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

हिंसा कैसे भड़की?

स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों के लिए आरक्षण का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों को ‘रज़ाकार’ या देशद्रोही करार देने से छात्र और अधिक भड़क गए. उन्होंने माफी की मांग की, और चौक-चौराहों पर डेरा जमा लिया.

रॉयटर्स के मुताबिक, पिछले हफ्ते विरोध प्रदर्शन तब हिंसक हो उठे जब आरक्षण विरोधी हजारों प्रदर्शनकारी और हसीना की अवामी लीग पार्टी की छात्र शाखा के सदस्यों के बीच झड़पें हुईं. साथ ही, पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने, जिन्होंने रेलवे पटरियां और सड़कें जाम कर दी थीं, के लिए रबर की गोलियां चलाईं और साउंड ग्रेनेड तथा आंसू गैस के गोले छोड़े.

इन झड़पों के बाद हालात नियंत्रित करने के लिए सेना की तैनाती की गई. हिंसा बढ़ने पर प्रदर्शनकारियों को कानून मंत्री के साथ बातचीत की पेशकश की गई, लेकिन उन्होंने कहा कि जब तक खून-खराबा जारी है, बातचीत नहीं होगी.

छात्रों की चिंता

प्रदर्शनकारियों और आलोचकों का कहना है कि स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों के लिए 30% कोटा अवामी लीग के समर्थकों के पक्ष में है, जिसने स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया था. ज्ञात हो कि हसीना बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की बेटी हैं, जिन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया था.

विशेषज्ञों का मानना ​​है कि निजी क्षेत्र में नौकरियों की वृद्धि में ठहराव के कारण सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियां- नियमित वेतन वृद्धि और विशेषाधिकारों के साथ- बहुत आकर्षक हो गई हैं. कोटा सभी के लिए खुली सरकारी नौकरियों की संख्या को कम कर देता है, जिससे उन उम्मीदवारों को नुकसान होता है जो योग्यता के आधार पर नौकरी चाहते हैं. इसके चलते बढ़ती हुई युवा बेरोजगारी दर से जूझ रहे छात्रों में गुस्सा भड़क गया, क्योंकि 17 करोड़ आबादी में लगभग 3.2 करोड़ युवा बेरोजगार या शिक्षा से बाहर हैं. ऊपर से, डांवाडोल अर्थव्यवस्था और महंगाई ने भी हालात विपरीत बना रखे हैं.

कैसे हैं वर्तमान हालात?

रॉयटर्स के मुताबिक, विरोध प्रदर्शनों का नियमित केंद्र रहे शहरों में सोमवार (22 जुलाई) को अधिकांश लोग कर्फ्यू का पालन करते दिखे. अधिकारियों ने बताया कि सोमवार को पूरे देश में हिंसा या विरोध प्रदर्शन की कोई खबर नहीं है.

वहीं, अस्पतालों से मिली जानकारी के अनुसार हिंसा में कम से कम 147 लोगों के मारे जाने की ख़बर है.

इस बीच, गृहमंत्री असदुज्जमां खान ने संवाददाताओं से कहा, ‘एक या दो दिनों में सामान्य स्थिति बहाल हो जाएगी.’

दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोटा समाप्त करने के फैसले के कुछ घंटों बाद ‘भेदभाव-विरोधी छात्र आंदोलन’ ने एक बयान जारी कर सरकार से शिक्षण परिसरों को फिर से खोलने और विरोध प्रदर्शनों के दौरान लगाए गए प्रतिबंधों को समाप्त करने की मांग की. इसने कुछ मंत्रियों और विश्वविद्यालय अधिकारियों के इस्तीफे और उन क्षेत्रों में तैनात पुलिस अधिकारियों को बर्खास्त करने की भी मांग की, जहां छात्र मारे गए थे.

आंदोलन के नेताओं में से एक हसनत अब्दुल्ला ने संवाददाताओं से कहा, ‘हम सरकार को 48 घंटे के भीतर हमारी आठ सूत्री मांगें पूरी करने का अल्टीमेटम दे रहे हैं.’

उन्होंने यह नहीं बताया कि अगर सरकार ने मांगें पूरी नहीं कीं तो क्या होगा. वहीं, सरकार ने तत्काल कोई टिप्पणी नहीं की है.