कर्नाटक: सरकार द्वारा खानाबदोश चरवाहों को बंदूक लाइसेंस देने की योजना पर विवाद

कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया ने खानाबदोश चरवाहों को बंदूक लाइसेंस देने और वन क्षेत्रों में भेड़ चराने की अनुमति देने का निर्देश दिया है. पर्यावरणविदों और वन्यजीव विशेषज्ञों ने इसकी आलोचना करते हुए कहा है कि यह वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का उल्लंघन है और अवैध शिकार को बढ़ा सकता है.

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया. (फोटो साभार: फेसबुक/Chief Minister of Karnataka)

नई दिल्ली: कर्नाटक में खानाबदोश चरवाहों को बंदूक लाइसेंस देने और उन्हें वन क्षेत्रों में भेड़ चराने की अनुमति देने के राज्य सरकार के प्रस्ताव की पर्यावरणविदों और वन्यजीव विशेषज्ञों ने आलोचना की है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, यह प्रस्ताव चरवाहों को उनके पशुओं को चोरी से बचाने और उन्हें वन क्षेत्रों में भेड़ चराने की अनुमति देने के लिए रखा गया है. 19 जुलाई को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया द्वारा बेंगलुरु में सभी जिला आयुक्तों के साथ आयोजित बैठक के दौरान उन्होंने चरवाहों को बंदूक लाइसेंस जारी करने और वन क्षेत्रों में भेड़ चराने की अनुमति देने का निर्देश दिया.

हासन के डिप्टी कमिश्नर सी. सत्यंभा ने निर्देशों की पुष्टि करते हुए कहा, ‘मुख्यमंत्री ने बैठक के दौरान भेड़ चोरी से खुद को बचाने के लिए खानाबदोश चरवाहों को बंदूक लाइसेंस जारी करने का निर्देश दिया. मुख्यमंत्री ने हमें भेड़ों को चराने के लिए जंगलों में जाने की अनुमति देने के लिए कदम उठाने के लिए भी कहा. हम सत्यापन के बाद आवेदकों को कानून के अनुसार बंदूक लाइसेंस पहले ही जारी कर रहे हैं.’

सरकार का दावा है कि इन उपायों का उद्देश्य चरवाहों और उनके मवेशियों को चोरी से बचाना और चरागाह की कमी को दूर करना है, लेकिन अभी तक जंगलों में भेड़ चराने के लिए कोई औपचारिक आदेश या दिशानिर्देश जारी नहीं किए गए हैं.

विशेषज्ञों ने सरकार के फैसले पर चिंता व्यक्त की

बैठक के बाद विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि प्रस्तावित कार्रवाई वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का उल्लंघन कर सकती है और मानव-वन्यजीव संघर्ष और अवैध शिकार को बढ़ा सकती है.

कूर्ग वन्यजीव सोसायटी (Coorg Wildlife Society) के कर्नल (सेवानिवृत्त) सीपी मुथन्ना ने कहा, ‘बंदूक लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया में यह सत्यापित करना शामिल है कि आवेदक के पास बंदूक रखने और उसका इस्तेमाल करने के लिए पर्याप्त वजह है या नहीं. लाइसेंस आमतौर पर उन व्यक्तियों को नहीं दिए जाते जिनके पास ज़मीन नहीं होती.’

उन्होंने चिंता व्यक्त की कि खानाबदोश जनजातियों को बंदूकें देने से वन क्षेत्रों में अवैध शिकार बढ़ सकता है.

ज्ञात हो कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार, राष्ट्रीय उद्यानों और आरक्षित वनों में पालतू जानवरों को चराना प्रतिबंधित है और संरक्षित क्षेत्रों के अंदर बंदूकें ले जाना वर्जित है. मुथन्ना ने कहा, ‘सरकार का निर्देश इस कानून का स्पष्ट रूप से उल्लंघन करता है.’

उन्होंने आगे चेतावनी दी कि भेड़ों को वन क्षेत्रों में लाने से जंगली जानवरों में बीमारियां फैल सकती हैं, जिनका इलाज नहीं किया जा सकता. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जंगली जानवर भोजन के लिए पूरी तरह से वन संसाधनों पर निर्भर हैं और किसी भी तरह की बाधा उनके विनाश का कारण बन सकती है.

साउथ फर्स्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, एक अन्य वन्यजीव विशेषज्ञ तेजस ने कहा, ‘जंगल के अंदर चराई की अनुमति देना वन्यजीवों के लिए सही नहीं है. इससे वन क्षेत्र के अंदर वनस्पति और भी खराब हो जाएगी और वन्यजीवों में बीमारियां भी बढ़ेंगी.’

उन्होंने कहा, ‘यह आखिरी बचा हुआ वन्यजीव और जंगल है. हमें जो कुछ भी बाकी है, उसकी रक्षा करनी चाहिए. जंगली जानवरों के पास चरने के लिए जंगल के अलावा कोई और जगह नहीं है, जबकि पालतू मवेशियों के पास कई जगह हैं. सरकार को इस मुद्दे पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचार करना चाहिए.’

उन्होंने कहा कि सरकार के इरादे भले ही अच्छे हों, लेकिन यह वन्यजीवों और जंगल के खिलाफ है. तेजस ने कहा कि उन्होंने सरकार के निर्देश के खिलाफ केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) को पत्र लिखा है.

तेजस ने मुख्यमंत्री के इस दावे की आलोचना की कि बंदूक के लाइसेंस से भेड़-चोरी की घटनाएं रुक जाएंगी. उन्होंने कहा कि बेंगलुरु शहर में अपराध दर बढ़ गई है. सरकार शहर में सभी को बंदूक का लाइसेंस क्यों नहीं देती? आम आदमी को बंदूक का लाइसेंस देने में क्या बुराई है? हम खुद को पीड़ित होने से बचा लेंगे.’

उन्होंने कहा, ‘सरकार को वैकल्पिक समाधान खोजने चाहिए. इन फैसलों से अराजकता बढ़ेगी. इससे कोई समस्या हल नहीं होगी, बल्कि कानून-व्यवस्था एजेंसियों के लिए और अधिक सिरदर्द पैदा होगा.’

वन अधिकारियों ने कहा: फैसले से मानव-वन्यजीव संघर्ष को और बढ़ावा मिलेगा

वन अधिकारियों ने कहा कि सरकार के इस फैसले से मानव-वन्यजीव संघर्ष को और बढ़ावा मिलेगा. एक उप वन संरक्षक (डीसीएफ) ने नाम न छापने की शर्त पर इस निर्णय पर चिंता व्यक्त की.

डीसीएफ ने कहा, ‘राज्य सरकार के इस निर्णय से निश्चित रूप से वन और वन्यजीव प्रभावित होंगे. अगर पालतू जानवरों को जंगलों में जाने दिया जाता है, तो इससे जंगली जानवरों के लिए चारे की कमी हो जाएगी. अगर खानाबदोश चरवाहे शिकार के लिए बंदूकों का दुरुपयोग करते हैं, तो इससे स्थिति और जटिल हो जाएगी.’

एक अन्य वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि सरकार कानून के खिलाफ जा रही है. दोनों ही फैसले वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के खिलाफ हैं.’

उन्होंने कहा, ‘कानून राष्ट्रीय उद्यानों के अंदर चराई पर रोक लगाता है. इसके अलावा, संरक्षित क्षेत्रों के अंदर बंदूक या कोई भी हथियार ले जाना प्रतिबंधित है. कानून में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सरकार इसका उल्लंघन कर रही है और इसके खिलाफ निर्देश दे रही है.’ उन्होंने आगे कहा कि राज्य के हर जिले में मवेशियों के चरने के लिए चरागाह (गोमाला) भूमि है.

नाराजगी व्यक्त करते हुए अधिकारी ने कहा, ‘सरकार द्वारा इन जमीनों को उद्योगों और अन्य उद्देश्यों के लिए आवंटित किए जाने के बाद अब जिलों में शायद ही कोई चरागाह बचा है. इसलिए, सरकार अब चरागाह के लिए जंगल पर नज़र रख रही है.’

रिपोर्ट के अनुसार, माधव गाडगिल के नेतृत्व वाले पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल की रिपोर्ट में अन्य उद्देश्यों के लिए चरागाहों के उपयोग का उल्लेख किया गया था.

पर्यावरण और वन मंत्रालय को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया था, ‘पश्चिमी घाट के कई हिस्सों में समुदाय द्वारा स्वामित्व वाली चरागाह भूमि और जंगल व्यापक क्षेत्रों को कवर करते हैं, जैसा कि निजी तौर पर स्वामित्व वाली वन भूमि भी कुछ हद तक है. हाल के दशकों में इन भूमियों का काफी अधिक दोहन और क्षरण हुआ है.’

गाडगिल समिति ने संरक्षित क्षेत्रों के बाहर सामुदायिक चरागाहों और वन चरागाह भूमि को बहाल करने की सिफारिश की थी.

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री कुरुबा समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और कुरुबा पारंपरिक रूप से चरवाहे हैं. यह पहली बार नहीं है जब सिद्धारमैया ने चरवाहों को हथियार देने की कोशिश की है. उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में अपने पिछले कार्यकाल के दौरान चरवाहों को बंदूक के लाइसेंस देने का वादा किया था.