नई दिल्ली: राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) की सांसद सुप्रिया सुले ने संसद टीवी पर सांसदों के अंग्रेजी या क्षेत्रीय भाषाओं में दिए गए भाषणों के लिए हिंदी वॉयसओवर पर रोक लगाने की मांग की है. उनका कहना है कि यह सांसदों की आवाज़ को दबाने वाला कदम है. सुप्रिया इस मामले पर पहले भी सवाल उठा चुकी हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, मानसून सत्र के बीच सोमवार (22 जुलाई) को सुप्रिया सुले ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर अपनी एक पोस्ट में लिखा, ‘संसद टीवी ने इस लोकसभा के पहले सत्र में सांसदों द्वारा अंग्रेजी या क्षेत्रीय भाषाओं में दिए गए भाषणों के हिंदी वॉयसओवर के साथ प्रसारित करने की ‘चिंताजनक’ प्रथा शुरू की है, जो बजट सत्र में भी जारी है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘यह एक तरह की सेंसरशिप है. यह करोड़ों गैर-हिंदी भाषी भारतीयों को अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के मूल शब्दों को उनकी अपनी भाषाओं में सुनने के अधिकार से वंचित करता है. सरकार को इस भेदभावपूर्ण और संघीय व्यवस्था विरोधी कदम को तुरंत बंद करना चाहिए.’
Sansad TV began the alarming practice of replacing the speeches of MPs in English or regional languages with Hindi voice-overs in the first session of this Lok Sabha, and it has continued doing so in the Budget Session on the television broadcast. This is a form of censorship—it…
— Supriya Sule (@supriya_sule) July 22, 2024
मालूम हो कि संसद टीवी के इस नए चलन को लेकर पहली बार विवाद लोकसभा चुनावों के तुरंत बाद जून में ही सामने आया था, जब 18वीं लोकसभा के पहले सत्र की शुरुआत हुई थी.
संसद टीवी, जो कि संसदीय कार्यवाही का आधिकारिक प्रसारणकर्ता है, ने तब हिंदी के अलावा अन्य भाषाओं में बोलने वाले सांसदों के मूल ऑडियो को म्यूट कर हिंदी वॉयसओवर का इस्तेमाल शुरू कर दिया था, जिससे विपक्षी नेताओं द्वारा की गईं आलोचनाएं महत्वहीन और अव्यवहारिक हो गई थीं.
उस समय विपक्षी नेताओं ने संसद टीवी की कड़ी आलोचना करते हुए इस कदम को संघीय सिद्धांतों का उल्लंघन बताया था, क्योंकि ये एकतरफा निर्णय बिना किसी विचार-विमर्श के लिया गया था.
इस मुद्दे को लेकर कई सांसदों ने नरेंद्र मोदी सरकार पर भी हमला बोला, जो अक्सर गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर कथित तौर पर हिंदी थोपने को लेकर सवालों के घेरे में रहती है.
ज्ञात हो कि जुलाई की शुरुआत में संसद के पहले सत्र की समाप्ति के दौरान भी सुप्रिया सुले ने इस नए चलन की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए केंद्र सरकार से इस तरह के ‘अनैतिक कार्य’ पर रोक लगाने का आग्रह किया था. तब उन्होंने हिंदी वॉयसओवर को ‘गहन समस्या वाला’ बताते हुए कहा था कि इस तरह के कदम लोकतांत्रिक और संवैधानिक सिद्धांतों को कमजोर करते हैं और भारत के लोगों की आवाज दबाते हैं.
It has been observed that Sansad TV is now translating the Speech of MP’s in English, into Hindi while muting the original audio. This new practice is deeply problematic, as it suppresses the MP’s voice, denies elected members the right to be heard in their chosen language, and…
— Supriya Sule (@supriya_sule) July 1, 2024
केंद्र सरकार और संसद टीवी के अधिकारियों दोनों का इस संबंध में कोई बयान सामने नहीं आया है, लेकिन हिंदी वॉयसओवर के खिलाफ विपक्ष की एकजुटता जरूर देखने को मिल रही है.
तमिलनाडु के तिरुवल्लूर से कांग्रेस सांसद शशिकांत सेंथिल ने मीडिया से कहा कि इस तरह का चलन केवल यह सुनिश्चित करेगा कि विपक्ष के अधिकांश सांसद, जो हिंदी भाषा में नहीं बोलते हैं, दबा हुआ महसूस करें. यह कदम सरकार के विरोधी स्वरों को संसद में कम दिखाने की कथित रणनीति को बढ़ावा देता है.
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ऐसे वॉयसओवर में गलत या खराब अनुवाद की भी संभावना रहती है.
सांसद शशिकांत सेंथिल ने साउथ फर्स्ट से कहा, ‘आपको यह दिखाना ही होगा कि सदन में क्या हो रहा है, सदन की भावना क्या है. मैं यह भी आरोप लगा रहा हूं कि वे सही से अनुवाद भी नहीं कर रहे होंगे. यदि कोई सूक्ष्म विश्लेषण कर सकता है, तो मुझे यकीन है कि वे सांसदों की बातों के अनचाहे अर्थ निकाल रहे होंगे, यह भी काफी संभव है क्योंकि कोई भी नज़र नहीं रख रहा है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हम अंग्रेजी भाषा में बात कर रहे हैं, इसका कारण यह है कि हमारे निर्वाचन क्षेत्र के लोग हिंदी नहीं समझते हैं. तो ऐसे में हमारे भाषण पर (दूसरी भाषा का) वॉयसओवर क्यों थोपा जा रहा है?’
इसी तरह, केरल के कोल्लम से रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) के सांसद एनके प्रेमचंद्रन ने भी साउथ फर्स्ट को बताया कि भारत में हिंदी आधिपत्य बनाने के लिए इस कदम ने अप्रत्यक्ष रूप से हिंदी को थोपने का काम किया है.
उन्होंने कहा, ‘यह वास्तव में दक्षिण भारत के लोगों का अपमान है क्योंकि संसद टीवी पूरी संसद का है जिसमें दक्षिण से भी सदस्य हैं. यह गैर-हिंदी भाषी लोगों के साथ भेदभाव है. हम इस मामले को स्पीकर के सामने उठाएंगे. संसद टीवी जो कर रहा है वह स्वीकार्य नहीं है.’
गौरतलब है कि यह मामला भाषा के संदर्भ में भी जरूरी है, क्योंकि बीते दशक में गैर-हिंदी भाषी राज्यों, विशेष रूप से तमिलनाडु और केरल के बड़ी संख्या में विपक्षी नेताओं ने केंद्र सरकार और उसके मंत्रालयों पर हिंदी को सबसे प्रमुख आधिकारिक भाषा के रूप सार्वजनिक तौर से समर्थन देने के लिए आलोचना की है. ऐसे में संसद टीवी की इस नई पहल को ‘भाषाई संघवाद’ के लिए एक कथित आघात के रूप में देखा जा रहा है.