हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा- सिर्फ़ अपवाद की स्थिति में लगाएं ज़मानत पर रोक

मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपी को मिली ज़मानत पर दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा रोक लगा दी गई थी. अब सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय को पलटते हुए कहा कि अदालतों को ज़मानत आदेशों पर केवल असाधारण परिस्थिति में ही रोक लगानी चाहिए.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (23 जुलाई) को अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर ज़ोर देते हुए कहा कि अदालतों को जमानत आदेश पर रोक नहीं लगानी चाहिए क्योंकि इससे व्यक्ति की आज़ादी प्रभावित होती है.

रिपोर्ट के मुताबिक, सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें हाईकोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में आरोपी की ज़मानत पर रोक लगा दी गई थी.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस. ओका और अगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोपी परविंदर सिंह खुराना द्वारा दायर याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि अदालतों को केवल असाधारण परिस्थितियों में ही जमानत आदेश पर रोक लगानी चाहिए.

लाइव लॉ के अनुसार, अदालत ने कहा, ‘हालांकि, अदालत के पास जमानत पर रोक लगाने का अधिकार है, लेकिन ऐसा केवल अपवाद वाली परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए. आम तौर पर जमानत आदेशों पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए.’

मालूम हो कि इस मामले में पिछली सुनवाई के दौरान 11 जुलाई को कोर्ट ने बिना कारण बताए जमानत आदेश पर रोक लगाने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर चिंता जाहिर की थी.

फैसले में स्वतंत्रता के अधिकार के संभावित उल्लंघन की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए जस्टिस ओका ने कहा, ‘कृपया इसके नतीजों पर विचार करें. किसी को ज़मानत दी जाती है, अदालत मामले पर विचार किए बिना ही उस पर रोक लगा देती है और एक साल बाद आपको ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है कि रिट याचिका खारिज हो जाती है. एक साल तक बिना किसी कारण के व्यक्ति जेल में सड़ता रहता है. हम इसमें स्वतंत्रता के पहलू को लेकर चिंतित हैं.’

मालूम हो कि इस मामले में ट्रायल कोर्ट से आरोपी परविंदर खुराना को ज़मानत मिली थी, जिसे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दिल्ली हाईकोर्ट में ये कहते हुए चुनौती दी थी कि ट्रायल कोर्ट ने अपने फैसले में सभी कारकों पर विचार नहीं किया था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि उच्च न्यायालय का एक पंक्ति का आदेश ट्रायल कोर्ट के एक तर्कसंगत ज़मानत आदेश पर कैसे रोक लगा सकता है.

इस मामले की सुनवाई के दौरान 12 जुलाई को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आरोपी की ज़मानत का विरोध करते हुए ये दलील दी थी कि आरोपी ज़मानत पर रिहा होने के बाद फरार हो सकता है.

हालांकि, अदालत ने फिर दोहराया कि ज़मानत पर केवल अपवाद वाले मामलों में ही रोक लगाई जा सकती है, जैसे कि जब आरोपी आतंकवादी हो या एनआईए अधिनियम के तहत कई मामलों में शामिल हो.