जम्मू-कश्मीर: प्रशासन ने सुरक्षा ख़तरा बताते हुए चार सरकारी कर्मचारियों को बिना जांच के बर्ख़ास्त किया

जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने 'सुरक्षा के लिए ख़तरा' बताते हुए दो पुलिसकर्मियों सहित चार सरकारी कर्मचारियों को संविधान के अनुच्छेद 311 (2) (सी) के तहत तत्काल प्रभाव से बर्ख़ास्त किया है. सूबे में पिछले चार वर्षों में इस तरह कुल 64 सरकारी कर्मचारियों को बर्ख़ास्त किया जा चुका है.

जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने राज्य की सुरक्षा के लिए खतरा होने के आरोप में दो पुलिसकर्मियों सहित चार और सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया है. संविधान के अनुच्छेद 311 (2) (सी) के तहत कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त किया गया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, एक ताजा आदेश में प्रशासन ने हंदवाड़ा के सीनियर ग्रेड कॉन्स्टेबल मुश्ताक अहमद पीर, दक्षिण कश्मीर के त्राल के गमराज गांव के पुलिस कॉन्स्टेबल इम्तियाज अहमद लोन, उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा के खुरहामा गांव के शिक्षा विभाग में जूनियर असिस्टेंट बाज़िल अहमद मीर और उत्तरी कश्मीर के बारामुला जिले के उरी के बसग्रान गांव के ग्रामीण विकास विभाग में ग्राम स्तर के कार्यकर्ता मोहम्मद जैद शाह को नौकरी से निकाल दिया है.

चार साल में 64 सरकारी कर्मचारी इसी तरह बर्खास्त

बता दें कि अनुच्छेद 311 (2) (सी) सरकारी कर्मचारी को बिना जांच के बर्खास्त करने की अनुमति देता है. जम्मू-कश्मीर में पिछले चार वर्षों में इस तरह कुल 64 सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त किया जा चुका है.

घाटी के मुख्यधारा के राजनीतिक दल इस कदम की आलोचना करते रहे हैं.

सरकार द्वारा चार सरकारी कर्मचारियों की बर्खास्तगी के आदेश के डेढ़ महीने बाद बर्खास्तगी का ताजा मामला सामने आया है. 8 जून को सरकार ने दो पुलिसकर्मियों, जल शक्ति विभाग में एक सहायक लाइनमैन और एक रहबर-ए-तालीम के शिक्षक की सेवाओं को समाप्त किया था.

उल्लेखनीय है कि गत मई के आखिरी सप्ताह में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के समाचार एजेंसी को पीटीआई को दिए इंटरव्यू में शाह ने कहा था, ‘कश्मीर में हमने फैसला लिया है कि अगर कोई आतंकी संगठन में शामिल होता है तो उसके परिवार के सदस्यों को सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी. इसी तरह अगर कोई पत्थरबाजी करता है तो उसके परिवार के सदस्यों को भी सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी.’

शाह के इस बयान को पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने जम्मू -कश्मीर के लोगों के लिए ‘सामूहिक सजा’ करार दिया था.

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में पीडीपी प्रमुख ने कहा था, ‘उन्हें हमें सज़ा देने के लिए बस एक बहाना चाहिए. हमें नई नौकरियां देने के बजाय उन्होंने बिना किसी सबूत या सुनवाई के काल्पनिक आधार पर हमारे सैकड़ों कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया है. पिछले पांच सालों में सभी भर्ती प्रक्रियाएं घोटालों से घिरी हुई हैं और रद्द कर दी गई हैं. इससे कड़ी मेहनत करने वाले अभ्यर्थियों को नौकरी के अवसरों से वंचित होना पड़ा है. संक्षेप में कहें, तो वे (केंद्र सरकार) जम्मू-कश्मीर के लोगों को सामूहिक सजा दे रहे हैं. बलात्कारी, हत्यारे और अन्य अपराधी पूरे देश में उनके लिए प्रचार कर रहे हैं और हमारे निर्दोष लोग जेलों में सड़ रहे हैं.’