नई दिल्ली: तेलंगाना विधानसभा ने बुधवार को एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें केंद्र से संसद के चालू सत्र में केंद्रीय बजट 2024 के प्रस्तावों में संशोधन करके तेलंगाना को न्याय दिलाने की अपील की गई.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य सरकार की ओर से मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी ने प्रस्ताव पेश किया और इसका विपक्षी सदस्यों भारत राष्ट्र समिति और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने समर्थन किया.
प्रस्ताव में कहा गया कि देश के सभी राज्यों का एकीकृत और समग्र विकास सुनिश्चित करना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है. इसमें कहा गया, ‘केंद्र सरकार ने संघीय भावना को त्याग दिया है, क्योंकि केंद्रीय बजट में तेलंगाना के साथ अन्याय किया गया. केंद्र ने राज्य के गठन के दिन से ही तेलंगाना के प्रति उदासीनता अपनाई.’
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा मंगलवार को लोकसभा में पेश किए गए केंद्रीय बजट में तेलंगाना के साथ हुए अन्याय पर तीखी बहस के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्यों ने प्रस्ताव पारित होने से पहले विधानसभा से वॉकआउट किया.
रेवंत रेड्डी ने घोषणा की कि केंद्रीय बजट में तेलंगाना के साथ किए गए अन्याय के विरोध में राज्य सरकार 27 जुलाई को केंद्र द्वारा आयोजित नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार करेगी.
प्रस्ताव में आगे कहा गया कि आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के अनुसार, केंद्र को दोनों तेलुगु राज्यों के सतत विकास के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने की जिम्मेदारी है. लेकिन केंद्र अधिनियम में किए गए वादों को पूरा करने में विफल रहा है, जिसका तेलंगाना के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है.
यह अधिनियम एक ऐसा कानून था जिसने दस साल पहले तत्कालीन आंध्र प्रदेश को तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में विभाजित कर दिया था. विभाजन के प्रभाव को दूर करने के लिए इसमें दोनों राज्यों से लगभग 35 वादे किए गए थे.
मुख्यमंत्री ने याद दिलाया कि उन्होंने और उनके कैबिनेट सहयोगियों के प्रतिनिधिमंडल ने कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात की और उनसे आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम में किए गए वादों को पूरा करने की अपील की.
रेवंत रेड्डी ने प्रस्ताव में कहा, ‘हमने केंद्र सरकार से परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता देने, अधिनियम के अनुसार धन जारी करने और लंबे समय से लंबित अंतर-राज्यीय मुद्दों को हल करने का अनुरोध किया. केंद्र सरकार ने राज्य सरकार की दलीलों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया और बजट आवंटन में तेलंगाना के साथ भेदभाव किया.’
प्रस्ताव में कहा गया, ‘राज्य विधानसभा ने तेलंगाना के प्रति केंद्र की उपेक्षा पर कड़ा विरोध दर्ज कराया है और नाखुशी जाहिर की है.’
इस दौरान सत्तारूढ़ कांग्रेस और बीआरएस सदस्यों के बीच बहस हुई. बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष और सिरिसिला विधायक केटी रामाराव ने मांग की कि रेवंत रेड्डी कांग्रेस विधायकों के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करें और विधानसभा में प्रस्ताव पारित करने के बजाय तेलंगाना के साथ न्याय करने के लिए केंद्र पर दबाव बनाने के लिए नई दिल्ली में धरना दें.
जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा कि वह नई दिल्ली में जंतर-मंतर पर आमरण अनशन करने के लिए तैयार हैं, बशर्ते विपक्ष के नेता और बीआरएस अध्यक्ष के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) भी उनके साथ शामिल हों. उन्होंने कहा, ‘हम आंदोलन शुरू करके तय करेंगे कि तेलंगाना को केंद्रीय धन मिलेगा या नहीं.’
मुख्यमंत्री ने याद दिलाया कि बीआरएस ने अतीत में कई बार नरेंद्र मोदी सरकार का समर्थन किया है, जिसमें लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव का बहिष्कार, पीएम की नोटबंदी नीति और आरटीआई संशोधन अधिनियम का समर्थन और ट्रिपल तलाक बिल के पक्ष में मतदान शामिल है.
उन्होंने कहा, ‘मैं बीआरएस नेताओं से अपील करता हूं कि वे अपनी मानसिकता बदलें और राज्य के विकास में मदद के लिए आगे आएं.’
मालूम हो कि केंद्रीय बजट में आंध्र प्रदेश और बिहार को आवंटन में प्रमुखता दी गई है. बिहार को जहां विभिन्न विकास कार्यों और योजनाओं के लिए करीब 58,900 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है, वहीं आंध्र प्रदेश के लिए 15,000 करोड़ रुपये के विशेष पैकेज की घोषणा की है.
रिपोर्ट के अनुसार, अधिनियम के तहत औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए विशाखापत्तनम-चेन्नई औद्योगिक गलियारे पर कोप्पार्थी नोड और हैदराबाद-बेंगलुरु औद्योगिक गलियारे पर ओर्वाकल नोड में पानी, बिजली, रेलवे और सड़क जैसे आवश्यक बुनियादी ढांचे के लिए धन उपलब्ध कराया जाएगा. आर्थिक विकास के लिए पूंजी निवेश के लिए इस वर्ष अतिरिक्त आवंटन प्रदान किया जाएगा.
अधिनियम में बताए अनुसार, रायलसीमा, प्रकाशम और उत्तरी तटीय आंध्र प्रदेश के पिछड़े क्षेत्रों के लिए अनुदान भी दिया जाएगा.
इस घोषणा पर रेवंत रेड्डी ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यदि पुनर्गठन अधिनियम आंध्र प्रदेश के पक्ष में था, तो तेलंगाना को उसका हक मिलना चाहिए क्योंकि राज्य को भी विभाजन के कारण उसका हिस्सा देने का वादा किया गया था.
उन्होंने कहा कि वे आंध्र प्रदेश का पक्ष लेने के केंद्र सरकार के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन तेलंगाना को समान शर्तों पर समान विशेषाधिकार न दिए जाने का विरोध करते हैं.
उन्होंने एक मीडिया कॉन्फ्रेंस में गुस्सा जाहिर किया कि केंद्र सरकार ने राज्य के साथ भेदभाव किया है और उसके खिलाफ बदले की भावना से काम किया है. रेड्डी ने कहा कि ऐसा लग रहा था कि सीतारमण से बजट भाषण में तेलंगाना का नाम नहीं लिया गया.
उन्होंने याद दिलाया कि कांग्रेस सरकार ने तेलंगाना से अधिनियम में किए गए वादों पर जोर देने के लिए अठारह बार केंद्र सरकार से संपर्क किया था. उन्होंने खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से तीन बार आश्वासन मांगा था.
तेलंगाना से किए गए जिन वादों को पूरा नहीं किया गया उनमें बयारम में एक स्टील फैक्ट्री, भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) की स्थापना, काजीपेट में एक रेलवे कोच फैक्ट्री, पलामुरु-रंगारेड्डी लिफ्ट सिंचाई योजना को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा और मुलुगु में एक आदिवासी विश्वविद्यालय शामिल हैं.
रेड्डी ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान द्वारा लिखे गए एक पत्र भी दिखाया जिसमें कहा गया था कि तेलंगाना में आईआईएम स्थापित करना संभव नहीं है. उन्होंने कोयला मंत्री और तेलंगाना भाजपा अध्यक्ष जी. किशन रेड्डी से राज्य के प्रति केंद्र सरकार की उदासीनता की जिम्मेदारी लेने को कहा. किशन रेड्डी के इस्तीफे की मांग करते हुए मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार पर राज्य के लोगों को वोट देने वाली मशीनरी मानने का आरोप लगाया.