नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (24 जुलाई) को पंजाब-हरियाणा सीमा पर किसानों के विरोध प्रदर्शन के छठवें महीने में प्रवेश करने पर सौहार्दपूर्ण समाधान खोजने के लिए ‘प्रतिष्ठित व्यक्तियों वाली एक स्वतंत्र समिति के गठन’ का आदेश दिया.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पंजाब-हरियाणा सीमा पर प्रदर्शन कर रहे किसानों और सरकार के बीच विश्वास की कमी है और सरकार को उन तक पहुंचने के लिए कदम उठाने चाहिए. शीर्ष अदालत किसानों के विरोध प्रदर्शन और शंभू बॉर्डर पर नाकाबंदी से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रही थी.
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा, ‘आपको किसानों तक पहुंचने के लिए कुछ कदम उठाने होंगे. वरना वे दिल्ली क्यों आना चाहेंगे? आप यहां से मंत्रियों को भेज रहे हैं और उनके (किसानों) अच्छे इरादों के बावजूद, विश्वास की एक कमी बनी हुई है. उन्हें लगेगा कि आप केवल स्वार्थ की बात कर रहे हैं और स्थानीय मुद्दों की अनदेखी कर रहे हैं. आप कोई तटस्थ व्यक्ति क्यों नहीं भेजते?’
हरियाणा सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार को किसानों के दिल्ली कूच से कोई समस्या नहीं है. उन्होंने 2020-21 में किसानों के विरोध प्रदर्शन, जिसने केंद्र को तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर किया था, का जिक्र करते हुए कहा, ‘लेकिन टैंकों और जेसीबी मशीनों के साथ आने से टकराव होता है. इससे पहले, यह कृषि कानूनों के बहाने हुआ था.’
हरियाणा सरकार ने शंभू बॉर्डर पर एक सप्ताह के भीतर बैरिकेड्स हटाने के हाईकोर्ट के आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है. कई किसान संगठनों द्वारा फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी सहित कई मांगों को लेकर दिल्ली तक मार्च निकालने की घोषणा के बाद इस साल फरवरी में बैरिकेड्स लगाए गए थे. सीमा पार करने पर प्रदर्शनकारी किसानों और उनका रास्ता रोकने वाले सुरक्षाकर्मियों के बीच झड़पें भी हुई.
बता दें कि केंद्रीय मंत्रियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने शुरू में प्रदर्शनकारी किसानों से बातचीत की थी. वार्ता बेनतीजा रही और किसानों ने अपना विरोध जारी रखने का फैसला किया. इस बीच, शंभू बॉर्डर पर हरियाणा पुलिस की कार्रवाई में कई किसान और पुलिसकर्मी घायल हो गए. एक किसान की गोली लगने से मौत भी हो गई थी, जिसकी अलग से जांच चल रही है.
फिलहाल, स्थिति में गतिरोध है और किसानों ने सीमा नहीं छोड़ने तथा राष्ट्रीय राजधानी की ओर अपना मार्च शुरू करने और 2020 के ऐतिहासिक किसान आंदोलन की तर्ज पर देशव्यापी प्रदर्शन करने के लिए किसी भी संभावित अवसर की प्रतीक्षा करने का संकल्प लिया है.
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि राजमार्ग को कई दिनों तक अवरुद्ध नहीं रखा जा सकता. सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वह केवल हरियाणा को दिए गए हाईकोर्ट के निर्देश पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘एक कल्याणकारी राज्य के रूप में भी हम संवेदनशील मामलों से निपटने के दौरान अप्रिय चीजों को बर्दाश्त नहीं कर सकते. ये केवल राष्ट्रीय राजमार्ग पर प्रतिबंधित हैं. कोई भी अधिनियम इसकी अनुमति नहीं देता. एमवी (मोटर वाहन) अधिनियम प्रतिबंधित करता है.’
जब न्यायालय ने पूछा कि क्या मशीनों और ट्रैक्टरों के सीमा पार करने पर प्रतिबंध है, तो सॉलिसिटर जनरल ने जवाब दिया, ‘जेसीबी को वर्चुअल युद्धक टैंक में बदल दिया गया है. मैं यह जिम्मेदारी की भावना से कह रहा हूं. हमारे पास ऐसे बख्तरबंद वाहनों की तस्वीरें हैं.’
पंजाब के अटॉर्नी जनरल गुरमिंदर सिंह ने कहा कि राजमार्ग की नाकाबंदी का राज्य की अर्थव्यवस्था पर बहुत बड़ा असर पड़ता है.
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने किसानों से संपर्क करने और उनके, हरियाणा सरकार और केंद्र के बीच आम सहमति बनाने के लिए एक समिति का प्रस्ताव रखा. न्यायालय ने कहा कि समिति का काम ‘उनके विचार जानना और उन्हें बताना है कि वे कहां सही हैं और कहां गलत.’
न्यायालय ने कहा, ‘हम पंजाब और हरियाणा के बीच लड़ाई नहीं चाहते हैं.’
अदालत ने निर्देश दिया कि एक सप्ताह के भीतर उचित निर्देश लिए जाएं और सभी पक्षों से तब तक यथास्थिति बनाए रखने को कहा, ताकि किसी भी तरह की झड़प को रोका जा सके.
आदेश में कहा गया है, ‘दोनों राज्य चरणबद्ध तरीके से बैरिकेड्स हटाने के बारे में भी चर्चा करेंगे और कदम उठाएंगे ताकि जनता को असुविधा न हो.’
शंभू बॉर्डर पर मौजूद किसानों के विरोध प्रदर्शन के नेताओं में से एक जगजीत सिंह दल्लेवाल ने आदेश पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए द वायर से कहा कि वे आदेश का ध्यानपूर्वक अध्ययन करने के बाद विस्तृत टिप्पणी करेंगे, लेकिन एक पहलू बहुत स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट को भाजपा सरकार पर कोई भरोसा नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप सभी हितधारकों के साथ परामर्श करने के लिए एक स्वतंत्र समिति के गठन की बात की गई है.
उन्होंने कहा कि हरियाणा और केंद्र में भाजपा की सरकारें उनके शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की छवि खराब करने के प्रयास में कई मुद्दों पर अदालत को लगातार गुमराह कर रही हैं. लेकिन हम पीछे नहीं हटेंगे क्योंकि एमएसपी गारंटी कानून किसानों के अस्तित्व के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है.