नई दिल्ली: राष्ट्रपति भवन में दरबार हॉल और अशोक हॉल अब क्रमशः गणतंत्र मंडप और अशोक मंडप के नाम से जाने जाएंगे. अधिकारियों ने इस कदम को भारत की लोकतांत्रिक परंपराओं के अनुरूप और ‘अंग्रेजीकरण’ तथा औपनिवेशिक परंपराओं से दूर रहने की आवश्यकता के तौर पर दर्शाया है.
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, मूल रूप से सिंहासन कक्ष के रूप में जाना जाने वाला दरबार हॉल वह स्थान था जहां स्वतंत्र भारत की पहली सरकार ने सन 1947 में शपथ ली थी और सी. राजगोपालाचारी ने 1948 में भारत के पहले गवर्नर-जनरल के रूप में शपथ ली थी. यह वह स्थान भी था जहां 1977 में राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद का पार्थिव शरीर रखा गया था. नागरिक और सैन्य पुरस्कारों का आवंटन और भारत के मुख्य न्यायाधीशों का शपथ ग्रहण इसी हॉल में होता है.
अशोक हॉल का उपयोग विदेशी अभियानों के प्रमुखों का परिचय कराने के लिए किया जाता रहा है. यह वह स्थान भी है जहां राष्ट्रपति द्वारा आयोजित राजकीय भोज से पहले विदेशी प्रतिनिधिमंडलों का औपचारिक तौर पर परिचय कराया जाता है.
राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार, ‘राष्ट्रपति भवन, भारत के राष्ट्रपति का कार्यालय और निवास, राष्ट्र का प्रतीक है और लोगों की अमूल्य विरासत है. इसे लोगों के लिए और अधिक सुलभ बनाने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं. राष्ट्रपति भवन के माहौल को भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों और लोकाचार को प्रतिबिंबित करने वाला बनाने का लगातार प्रयास किया गया है.’
बयान में कहा गया, ‘दरबार शब्द का अर्थ भारतीय शासकों और अंग्रेजों के दरबार और सभाओं से है. भारत के गणतंत्र बनने के बाद इन्होंने अपनी प्रासंगिकता खो दी. ‘गणतंत्र’ की अवधारणा प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में गहराई से निहित है, इसलिए ‘गणतंत्र मंडप’ इस स्थान के लिए एक उपयुक्त नाम है.’
इसमें आगे कहा गया, ‘अशोक हॉल’ मूल रूप से एक बॉलरूम था. ‘अशोक’ शब्द का अर्थ है कोई ऐसा व्यक्ति जो ‘सभी दुखों से मुक्त’ हो या ‘किसी भी दुख से रहित’ हो. साथ ही, ‘अशोक’ सम्राट अशोक को संदर्भित करता है, जो एकता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के प्रतीक थे.’
इसमें कहा गया है, ‘भारतीय गणराज्य का राष्ट्रीय प्रतीक सारनाथ स्थित अशोक के सिंह स्तंभ से लिया गया है. यह शब्द अशोक वृक्ष को भी संदर्भित करता है जिसका भारतीय धार्मिक परंपराओं के साथ-साथ कला और संस्कृति में भी गहरा महत्व है. ‘अशोक हॉल’ का नाम बदलकर ‘अशोक मंडप’ करने से भाषा में एकरूपता आएगी और अंग्रेजीकरण के चिह्न मिटेंगे, साथ ही ‘अशोक’ शब्द से जुड़े प्रमुख मूल्यों को भी बरकरार रखा जाएगा.’
ज्ञात हो कि पिछले साल राष्ट्रपति भवन में मुगल गार्डन का नाम बदलकर अमृत उद्यान कर दिया गया था. इसके अलावा, 2022 में राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक जाने वाली सड़क राजपथ का नाम बदलकर कर्त्तव्य पथ कर दिया गया था.
इन नाम परिवर्तनों पर प्रतिक्रिया के लिए पूछे जाने पर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने संसद के बाहर संवाददाताओं से कहा, ‘दरबार की अवधारणा अब नहीं रही, लेकिन शहंशाह (राजाओं के राजा) की अवधारणा मौजूद है.’
लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान के दौरान प्रियंका ने अपने भाई और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बार-बार ‘शहजादे’ कहे जाने के जवाब में मोदी को ‘शहंशाह’ बताया था.
दरबार हॉल में लाल मखमली पृष्ठभूमि के सामने बुद्ध की पांचवीं शताब्दी की मूर्ति है. राष्ट्रपति भवन की वेबसाइट कहती है, ‘इस प्रतिमा के सामने राष्ट्रपति की कुर्सी रखी गई है. पहले, इस स्थान पर दो सिंहासन रखे गए थे, एक वायसराय के लिए और दूसरा उनकी पत्नी के लिए.
अशोक हॉल में कई कलाकृतियां हैं. वेबसाइट कहती है, ‘छत के केंद्र में एक चमड़े की पेंटिंग है जिसमें फारस के सात कजर शासकों में से दूसरे, फतह अली शाह का घुड़सवारी चित्र दिखाया गया है, जो अपने बाईस बेटों की मौजूदगी में एक बाघ का शिकार कर रहे हैं. यह पेंटिंग, जिसकी लंबाई 5.20 मीटर और चौड़ाई 3.56 मीटर है, फतह शाह ने स्वयं इंग्लैंड के जॉर्ज चतुर्थ को उपहार में दी थी.’