नई दिल्ली: केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने गुरुवार को राज्यसभा को बताया कि आने वाले वर्षों में छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य जंगलों में लगभग 2,73,757 पेड़ काटे जाएंगे. साथ ही, उसने ग्रेट निकोबार द्वीप में बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाओं को अंजाम देने की योजनाओं का भी बचाव किया, जहां करीब दस लाख पेड़ काटे जाने की जानकारी उसने एक अलग खुलासे में दी.
हसदेव अरण्य जंगलों से संबंधित खुलासा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मध्य भारत में बहुत घने जंगलों का सबसे बड़ा क्षेत्र है और इसके नीचे विशाल कोयला भंडार भी है. इन जंगलों में दो कोयला खदानें पहले ही स्थापित की जा चुकी हैं – चोटिया I तथा II और परसा ईस्ट एवं केते बासन (पीईकेबी), और दो खदानें और प्रस्तावित हैं – परसा और केते एक्सटेंशन.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, कार्यकर्ताओं का कहना है कि काटने के लिए मूल रूप से जितने पेड़ स्वीकृत किए गए थे, उनकी तुलना में कई गुना अधिक पेड़ पहले ही काटे जा चुके हैं.
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संदीप कुमार पाठक के प्रश्न पर केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्री भूपेंद्र यादव द्वारा हस्ताक्षरित जवाब में कहा गया है कि परसा ईस्ट केते बासन के लिए 2023 तक 94,460 पेड़ पहले ही काटे जा चुके हैं.
हसदेव अरण्य 170,000 हेक्टेयर में फैला है और इसमें 23 कोयला ब्लॉक हैं.
छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने भारतीय वानिकी, अनुसंधान और शिक्षा परिषद (देहरादून) के एक अध्ययन का हवाला दिया, जिसे छत्तीसगढ़ सरकार ने सभी हसदेव अरण्य कोयला क्षेत्रों में कराया था.
यादव ने कहा कि रिपोर्ट 14 जून, 2021 को केंद्रीय वन मंत्रालय को भेजी गई थी. आम आदमी पार्टी (आप) के नेता और सांसद संदीप कुमार पाठक के एक सवाल के जवाब में कहा गया, ‘उक्त रिपोर्ट में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध की सिफारिश नहीं की गई थी.’
मंत्री ने क्षेत्र में प्रतिपूरक वनरोपण प्रयासों के बारे में भी जानकारी दी. यादव ने कहा, ‘छत्तीसगढ़ सरकार से प्राप्त जानकारी के अनुसार, परसा ईस्ट केते बासन खदान में 94,460 पेड़ काटे गए हैं और प्रतिपूरक वनरोपण, खदान सुधार और स्थानांतरण के रूप में 53,40,586 पेड़ लगाए गए हैं. छत्तीसगढ़ सरकार ने बताया कि लगभग 40,93,395 नए लगाए गए पेड़ बच गए हैं.’
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन (सीबीए) के संयोजक और 2024 के गोल्डमेन पर्यावरण पुरस्कार विजेता आलोक शुक्ला ने कहा, ‘हम साल के बहुत जंगलों की बात कर रहे हैं. यहां के ज़्यादातर पेड़ 200 साल से ज़्यादा पुराने हैं. मुझे लगता है कि काटे गए पेड़ों की संख्या 94,460 से ज़्यादा है. ऐसा इसलिए है क्योंकि भारतीय वन्यजीव संस्थान ने पहले ही आकलन कर लिया है कि इस क्षेत्र में प्रति हेक्टेयर 400 पेड़ हैं. अगर परसा और केते एक्सटेंशन समेत तीनों खदानें चालू रहीं तो हसदेव बांगो जलाशय नष्ट हो जाएगा और इस क्षेत्र की जैव विविधता हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी. इसका खामियाजा कभी पूरा नहीं किया जा सकेगा.’
हसदेव अरण्य एक घना जंगल है, जो 1,500 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों का निवास स्थान है. इस घने जंगल के नीचे अनुमानित रूप से पांच अरब टन कोयला दबा है. इलाके में खनन बहुत बड़ा व्यवसाय बन गया है, जिसका स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं.
हसदेव अरण्य जंगल को 2010 में कोयला मंत्रालय एवं पर्यावरण एवं जल मंत्रालय के संयुक्त शोध के आधार पर पूरी तरह से ‘नो गो एरिया’ घोषित किया था. हालांकि, इस फैसले को कुछ महीनों में ही रद्द कर दिया गया था और खनन के पहले चरण को मंजूरी दे दी गई थी. बाद में 2013 में खनन शुरू हो गया था.
ग्रेट निकोबार मेगा प्रोजेक्ट
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में ग्रेट निकोबार द्वीप पर प्रस्तावित विकास कार्यों के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब जूनियर पर्यावरण मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने दिया. उन्होंने कहा कि यहां लगभग 9,64,000 पेड़ काटे जाएंगे. सरकार ने जवाब में आश्वासन दिया कि योजनाओं – जिसमें एक टाउनशिप, एक बिजली संयंत्र और एक हवाई अड्डा शामिल है – लैदरबैक कछुओं (leatherback turtles) के प्रजनन स्थलों को प्रभावित नहीं करेगी.
मालूम हो कि इस परियोजना में ग्रेट निकोबार द्वीप की 16,610 हेक्टेयर भूमि पर एक अंतरराष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल (आईसीटीटी), एक ग्रीनफील्ड अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, एक टाउनशिप और 450 एमवीए गैस और सौर-आधारित बिजली संयंत्र आदि विकसित करना शामिल है.
इन विकास परियोजनाओं के निर्माण के लिए 130 वर्ग किलोमीटर जंगल को परिवर्तित करना भी शामिल है. यह द्वीप पर रहने वाले स्वदेशी शोम्पेन और निकोबारी समुदायों को भी प्रभावित करेगा.
सिंह ने बताया, ‘केंद्र सरकार ने 27 अक्टूबर 2022 को जारी पत्र के माध्यम से ग्रेट निकोबार द्वीप में सतत विकास के लिए 130.75 वर्ग किलोमीटर वन भूमि के डायवर्जन के लिए सैद्धांतिक/चरण-1 की मंजूरी दे दी है. डायवर्ट की गई वन भूमि के बदले में प्रतिपूरक वनरोपण किया जाता है.’
उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा डायवर्जन के लिए प्रस्तावित क्षेत्र का 50% से अधिक यानी 65.99 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र हरित विकास के लिए आरक्षित है, जहां किसी भी पेड़ को काटने की योजना नहीं है. यह उम्मीद की जाती है कि विकास क्षेत्र का लगभग 15% हिस्सा हरा और खुला स्थान बना रहेगा और इसलिए प्रभावित होने वाले पेड़ों की संख्या 9.64 लाख (964,000) से कम होने वाली है.’
सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि परियोजना में पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के उपाय शामिल हैं. उन्होंने कहा, ‘केंद्र सरकार द्वारा दी गई मंजूरी में निर्धारित शर्तों के अनुसार, वनस्पतियों और जीव-जंतुओं पर विकास के प्रभाव की भरपाई के लिए पर्याप्त निवारण उपाय पर्यावरण/वन मंजूरी की शर्तों का हिस्सा हैं.’
मंत्री ने वन्यजीवों पर परियोजना के प्रभाव के बारे में चिंताओं को भी संबोधित किया. उन्होंने कहा, ‘परियोजना के कारण लैदरबैक कछुए के प्रजनन स्थलों में किसी भी तरह का बदलाव नहीं किया जा रहा है. कछुओं के घोंसले के लिए बड़े घोंसले के क्षेत्रों (पश्चिमी भाग) को वैसे ही बनाए रखा गया है.’
सिंह ने चल रहे अनुसंधान और निगरानी प्रयासों के महत्व का जिक्र करते हुए कहा, ‘अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में समुद्री कछुओं से संबंधित अनुसंधान करने और उसकी निगरानी करने के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) द्वारा स्थापित अनुसंधान इकाई पर्यावरणीय मंजूरी की विशेष शर्तों का एक महत्वपूर्ण घटक है.’