नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (26 जुलाई) को कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों के लिए जारी पुलिस निर्देश पर अंतरिम रोक को बढ़ाते हुए कहा कि किसी भी दुकानदार को दुकान के बाहर अपना नाम लिखने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इससे पहले कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों को अपने मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के लिए राज्य पुलिस द्वारा जारी निर्देशों का समर्थन करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि इन निर्देशों के पीछे का विचार ‘यात्रा की अवधि के दौरान उपभोक्ता/कांवड़ियों द्वारा खाए जाने वाले भोजन के बारे में पारदर्शिता और सूचित विकल्प प्रदान करना है, जिसमें उनकी धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखा गया है ताकि वे गलती से भी अपनी आस्था के विरुद्ध न जाएं.’
यूपी सरकार ने कहा कि ऐसा न करने पर तनाव पैदा हो सकता है.
यूपी सरकार ने कहा, ‘कांवड़िए सख्त शाकाहारी, सात्विक आहार का पालन करते हैं. प्याज, लहसुन और सभी अन्य तामसिक खाद्य पदार्थों से परहेज करते हैं. सरकार ने यह भी बताया कि ‘सात्विक भोजन का मतलब सिर्फ प्याज और लहसुन के बिना खाना बनाना नहीं है, बल्कि भोजन तैयार करने का तरीका भी है, जो अन्य त्योहारों पर व्रत रखने के दौरान बनाए जाने वाले फलहार की तरह होता है.’
सरकार ने कहा कि कांवड़ियों द्वारा अनजाने में किसी ऐसे स्थान, जो उनकी पसंद का नहीं होता, पर भोजन करने जैसी दुर्घटना उनकी संपूर्ण यात्रा को प्रभावित कर सकती है. साथ ही, क्षेत्र में शांति और सौहार्द्र को बिगाड़ सकती है, जिसे बनाए रखना राज्य का परम कर्तव्य है.
यूपी सरकार ने कहा कि ‘यह स्पष्ट है कि ऐसे करोड़ों तीर्थयात्रियों, जिनमें से कई साक्षर नहीं हैं और जो धार्मिक उत्साह के साथ नंगे पैर चल रहे हैं, को परोसे जाने वाले भोजन के प्रकार के बारे में छोटी सी भी उलझन उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और तनाव पैदा करने की क्षमता रखती है, विशेष रूप से मुजफ्फरनगर जैसे सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में.’
हलफनामे में निर्देशों का उद्देश्य कांवड़ यात्रा के दौरान सार्वजनिक सुरक्षा और व्यवस्था सुनिश्चित करना तथा शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण तीर्थयात्रा सुनिश्चित करने के लिए निवारक उपाय करना बताया गया है.
सरकार ने कहा, ‘पिछली घटनाओं से पता चला है कि बेचे जा रहे भोजन के प्रकार के बारे में गलतफहमी के कारण तनाव और अशांति हुई है. निर्देश ऐसी स्थितियों से बचने के लिए एक सक्रिय उपाय है.’
अपने निर्णय के भेदभावपूर्ण या प्रतिबंधात्मक होने को खारिज करते हुए यूपी सरकार ने कहा, ‘जैन त्योहार के दौरान 9 दिनों की अवधि के लिए गुजरात में बूचड़खानों को पूरी तरह से बंद करने को भी सर्वोच्च न्यायालय ने श्रद्धालुओं की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए बरकरार रखा है.’
सरकार ने कहा, ‘ये निर्देश अस्थायी हैं और केवल कांवड़ यात्रा की अवधि के लिए जारी किए गए हैं, जो 22 जुलाई से 6 अगस्त तक चलनी है. इसके अलावा, उक्त दिशा-निर्देश केवल एक सीमित भौगोलिक सीमा के लिए जारी किए गए हैं. निर्देश धर्म, जाति या समुदाय के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करते हैं. मालिकों के नाम और पहचान प्रदर्शित करने की आवश्यकता कांवड़ यात्रा मार्ग पर सभी खाद्य विक्रेताओं पर समान रूप से लागू होती है, चाहे उनका धार्मिक या सामुदायिक जुड़ाव कुछ भी हो.’
हलफनामे में कहा गया है कि राज्य संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध है और प्रत्येक व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं की रक्षा करता है, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो, और इसी उद्देश्य से हमेशा यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाता है कि सभी धार्मिक संप्रदायों के सभी धार्मिक त्योहार/कार्य शांतिपूर्ण तरीके से मनाए/संपन्न किए जाएं, जहां लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचे. इसलिए सरकार किसी भी अप्रिय कानून और व्यवस्था की स्थिति को रोकने के लिए उपाय करती है.
सरकार ने अपने पक्ष में मुस्लिम त्यौहार मुहर्रम और ईद का हवाला दिया है कि वह इस दौरान पूरे राज्य में यातायात प्रतिबंध लगाती है और सुअरों की आवाजाही भी प्रतिबंधित कर देती है, ताकि अल्पसंख्यक समुदाय की धार्मिक भावना को ठेस न पहुंचे क्योंकि वह सुअर को अशुद्ध मानते हैं और इसका मांस भी नहीं खाते हैं. हज के दौरान प्रदान की जाने वाली सुविधाओं का भी यूपी सरकार के हलफनामे में जिक्र है.
बहरहाल, सरकार का कहना है कि ये निर्देश ‘दुकानों और भोजनालयों के नामों के कारण होने वाले भ्रम के बारे में कांवड़ियों से प्राप्त शिकायतों के जवाब में पारित किए गए थे. पुलिस अधिकारियों ने ऐसी शिकायतें प्राप्त होने पर तीर्थयात्रियों की चिंताओं को दूर करने और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए यह कार्रवाई की.
लाइव लॉ के मुताबिक, इस दौरान जस्टिस ऋषिकेश रॉय और एसवीएन भट्टी की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि उसने किसी को भी मालिकों और कर्मचारियों के नाम स्वेच्छा से प्रदर्शित करने से नहीं रोका है तथा रोक केवल किसी को ऐसा करने के लिए बाध्य करने के खिलाफ है.
बहस के दौरान यूपी सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि केंद्रीय कानून खाद्य एवं सुरक्षा मानक अधिनियम, 2006 के तहत ढाबों सहित हर खाद्य विक्रेता को मालिकों के नाम प्रदर्शित करने की आवश्यकता होती है. रोहतगी ने कहा कि मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के निर्देश पर रोक लगाने वाला न्यायालय द्वारा पारित अंतरिम आदेश इस केंद्रीय कानून के अनुरूप नहीं है.
इस पर पीठ ने कहा कि यदि ऐसा कोई कानून है तो सरकार को इसे सभी क्षेत्रों में लागू करना चाहिए, केवल कुछ क्षेत्रों में नहीं.
बता दें कि पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर पुलिस और उत्तराखंड की हरिद्वार पुलिस ने कांवड़ यात्रा के मार्ग पर स्थित भोजनालयों को अपने मालिकों के नाम प्रतिष्ठान के बाहर प्रदर्शित करने के निर्देश दिए थे. जिन पर बीते 22 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी.
यूपी और उत्तराखंड, दोनों ही जगह भाजपा सरकारें हैं. लिहाजा, भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के सहयोगी दलों ने भी इन फैसलों की निंदा की थी.