भारत में इस साल हीटस्ट्रोक के 40,000 से अधिक मामले सामने आए, सैकड़ों की मौत हुई: रिपोर्ट

कॉल टू एक्शन ऑन एक्सट्रीम हीट अपनी तरह की पहली रिपोर्ट है जिसमें अत्यधिक गर्मी को लेकर दस संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों के हालात के बारे में बताया गया है. इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में इस साल गर्मियों की शुरुआत के बाद से जून के मध्य तक 100 से अधिक मौतें गर्मी के चलते हुईं.

(फोटो: अतुल अशोक होवाले/द वायर)

नई दिल्ली: भारत में इस साल गर्मी का भीषण प्रकोप देखने को मिला है. गुरुवार (25 जुलाई) को जारी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ‘कॉल टू एक्शन ऑन एक्सट्रीम हीट’ के अनुसार, भारत में इस साल गर्मियों की शुरुआत के बाद से जून के मध्य तक 100 से अधिक मौतें गर्मी के चलते हुईं, वहीं हीटस्ट्रोक के 40,000 से ज्यादा मामले सामने आए.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, यह अपनी तरह की पहली रिपोर्ट है, जिसमें अत्यधिक गर्मी को लेकर संयुक्त राष्ट्र के दस सदस्य देशों के हालात के बारे में बताया गया है. इस रिपोर्ट में भारत से लेकर सऊदी अरब में बीते 100 दिनों में गर्मी से हुई मौतों की भी जानकारी दी गई है.

मालूम हो कि संयुक्त राष्ट्र की ये रिपोर्ट ऐसे समय में सामने आई है, जब हाल ही में भारत के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा संसद में ये कहा गया है कि भीषण गर्मी अभी ऐसी कोई प्राकृतिक आपदा नहीं है, जिसके लिए आर्थिक मदद की जरूरत है.

इसके अलावा, मंत्रालय ने ये भी बताया कि मौसम विभाग की बेहतर भविष्यवाणी के कारण लू से होने वाली मौतों में कमी आ रही है.

हालांकि, संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट का कहना है कि विश्वभर में गर्मी के चलते साल 2000 से 2019 के बीच 4,89,000 मौतें हुई हैं. इसमें 45% मौतें एशिया में और 36 प्रतिशत यूरोप में हुई हैं. इतना ही नहीं, अत्यधिक गर्मी के चलते साल 2022 में 86,300 करोड़ डॉलर के बराबर संभावित आय का भी नुकसान हुआ है.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के आंकड़ों में ये चेतावनी दी गई है कि वैश्विक कार्यबल (workforce) का 70% से अधिक यानी 2.4 अरब लोग बेहद गर्मी के चलते संकट में हैं. नतीजतन, सालाना 22.85 मिलियन लोग घायल होते हैं और 18,970 श्रमिकों की मौत हो जाती है. अफ्रीका, अरब राज्य और एशिया-प्रशांत में ये ज्यादा है.

इस रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र महासचिव की ओर से चार महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अत्यधिक गर्मी को लेकर कार्रवाई के लिए वैश्विक आह्वान किया गया है. इसमें कमजोर लोगों की देखभाल, श्रमिकों की रक्षा, डेटा और विज्ञान का उपयोग करके अर्थव्यवस्था और समाज के लचीलेपन को बढ़ावा देने के साथ तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की बात शामिल है.

रिपोर्ट के मुताबिक, अफ्रीका, अरब राज्यों, एशिया और एशिया-प्रशांत में श्रमिकों को अत्यधिक गर्मी का सबसे ज्यादा सामना करना पड़ता है. इन क्षेत्रों में, क्रमशः 93 प्रतिशत, 84 प्रतिशत और 75% कार्यबल प्रभावित होते हैं, जैसे ही दिन का तापमान 34 डिग्री सेल्सियस से ऊपर बढ़ जाता है, श्रम उत्पादकता 50% तक गिरना शुरू हो जाती है.’

यूनिसेफ ने पाया है कि 2050 तक लगभग 2.2 बिलियन बच्चे अत्यधिक गर्मी के संपर्क में आ सकते हैं, जो 2020 में केवल 24% है. 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए गर्मी से संबंधित मृत्यु दर 2000-2004 और 2018-2022 के बीच लगभग 85% बढ़ गई है.

यूएन-हैबिटेट और अर्शट-रॉक रेजिलिएंस सेंटर की ग्लोबल चीफ हीट ऑफिसर एलेनी मायरिविली ने बताया कि अत्यधिक गर्मी को अक्सर कम करके आंका जाता है और नजरअंदाज कर दिया जाता है, लेकिन इसके प्रभाव निश्चित और दूरगामी हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘हमें जीवन, आजीविका और हमारी महत्वपूर्ण प्रणालियों, जैसे स्वास्थ्य, पानी, ऊर्जा, भोजन और परिवहन पर अत्यधिक गर्मी के बहु-क्षेत्रीय प्रभावों को बेहतर ढंग से संबोधित करने के लिए स्थानीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय तक हर स्तर पर अपने प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है.

संयुक्त राष्ट्र ने सिफारिश की है एक्सट्रीम हीट से निपटने के लिए देश अपने सबसे कमजोर लोगों को सुरक्षा प्रदान करे. इसके लिए साक्ष्य-आधारित नीति-निर्देश बनाए जाएं, बहुआयामी जोखिम का अनुमान लगाया जाए (multi-dimensional risk assessments) और समुदाय-संचालित कार्रवाई (community-driven actions) की जाए.

इसके अलावा अत्यधिक गर्मी के खतरों से निपटने में मदद करने वाले विशेष उपायों को एकीकृत करने के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को बढ़ाना, अधिकार-आधारित दृष्टिकोण के जरिये दुनिया के सभी प्रभावित क्षेत्रों और सभी श्रमिकों के स्वास्थ्य और जीवन की रक्षा के लिए तत्काल उपाय लागू करना शामिल है. इसके साथ ही व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य पर कानूनों और निर्देशों की तत्काल समीक्षा और सभी देशों और सभी क्षेत्रों में व्यापक, हीट एक्शन प्लान और कूलिंग योजना विकसित करने की बात कही गई है.

भारत में मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, 1901 में रिकॉर्ड रखने की शुरुआत के बाद से देश ने उत्तर-पश्चिम भारत के लिए इस बार सबसे गर्म जून दर्ज किया. इस क्षेत्र में जून के महीने में 10 से 18 दिन लू देखी गई, जबकि सामान्य तौर पर यह 3-4 दिन होती है.

वहीं, उत्तर पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों में भीषण गर्मी से कम से कम 100 लोगों की मौत हो गई. पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में भी रात के तापमान के मामले में जून सबसे गर्म महीना दर्ज किया गया. औसत न्यूनतम तापमान 25.14 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो सामान्य से लगभग 1 डिग्री अधिक था.