दिल्ली: ठोस कचरा प्रबंधन पर एमसीडी को फटकारते हुए कोर्ट ने ‘हेल्थ इमरजेंसी’ की ओर इशारा किया

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली में रोजाना 3,000 टन से अधिक कचरे का निपटान नहीं हो पा रहा है. इससे लोगों के स्वास्थ्य पर खराब असर पड़ सकता है और सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति खड़ी हो सकती है.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (26 जुलाई) को राजधानी दिल्ली में ठोस कचरा प्रबंधन को लेकर चिंता जाहिर की. अदालत ने दिल्ली नगर निगम को फटकार लगाते हुए कहा कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियमों के कार्यान्वयन को लेकर दिल्ली की स्थिति दयनीय है.

समाचार एजेंसी पीटीआई की खबर के मुताबिक, शीर्ष अदालत ने कहा कि दिल्ली में रोजाना 3,000 टन से अधिक कचरे का निपटान नहीं हो पा रहा है. इससे लोगों के स्वास्थ्य पर खराब असर पड़ सकता है. अनुपचारित (untreated) ठोस कचरे से सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति पैदा हो सकती है,

मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने ये बातें दिल्ली-एनसीआर में ठोस कचरे के निपटान संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान कहीं. अदालत ने राजधानी के मौजूदा हालात पर चिंता जताते हुए दुख व्यक्त किया.

जस्टिस एएस ओका और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने कहा कि दिल्ली में प्रतिदिन 11 हजार टन से अधिक ठोस कचरा पैदा होता है, मगर दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) द्वारा उपलब्ध कराए गए प्रसंस्करण संयंत्रों (प्रोसेसिंग प्लांट) की निपटारे की क्षमता हर दिन सिर्फ 8,073 टन है.

पीठ ने आगे कहा, ‘हम न्याय मित्र (amicus curiae) से सहमत हैं कि वर्तमान हालात से सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल खड़ा हो सकता है.  राजधानी शहर में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के लागू होने की बात आती है तो यह एक दुखद स्थिति है.’

अदालत ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के सचिव को इस मुद्दे का तत्काल समाधान निकालने के लिए एमसीडी और दिल्ली सरकार के अधिकारियों की बैठक बुलाने का निर्देश दिया है. अब इस मामले में अगली सुनवाई 6 सितंबर को होगी.