यूपी: प्रस्तावित कांवर मार्ग जैसा एक एक्सप्रेसवे 2010-11 में अस्वीकृत कर दिया गया था

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) उत्तर प्रदेश की प्रस्तावित कांवर मार्ग सड़क परियोजना की जांच कर रहा है. यह मार्ग गाजियाबाद, मेरठ और मुज़फ़्फ़रनगर से होकर गुजरेगा. इसके लिए 222.98 हेक्टेयर संरक्षित वन भूमि के डायवर्जन की आवश्यकता होगी और तकरीबन 1,12,722 पेड़ों को काटना होगा. 

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक/Official.NHAI)

नई दिल्ली: साल 2010-11 में ऊपरी गंगा नहर के किनारे एक एक्सप्रेसवे परियोजना को इससे होने वाली संभावित पर्यावरण क्षति के कारण पर्यावरण मंत्रालय द्वारा खारिज कर दिया गया था. प्रस्तावित कांवर मार्ग से संबंधित एक मामले में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के समक्ष प्रस्तुत हलफनामे में यह जानकारी सामने आई है. 

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, एनजीटी स्वतः संज्ञान लेते हुए एक ऐसी ही सड़क परियोजना की जांच कर रही है, जिसे कांवर मार्ग के नाम से जाना जाता है. पुराने मामले का विवरण पर्यावरण कार्यकर्ताओं और गाजियाबाद के राजनगर से पूर्व भाजपा पार्षद द्वारा एनजीटी के समक्ष दायर एक हलफनामे में सामने लाया गया है. 

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित 111 किलोमीटर लंबी सड़क उत्तराखंड के नजदीक मुरादनगर से पुरकाजी तक ऊपरी गंगा नहर की दाहिनी शाखा के साथ बनाई जाएगी. प्रस्तावित कांवर मार्ग गाजियाबाद, मेरठ और मुजफ्फरनगर से होकर गुजरेगा. इसके लिए 222.98 हेक्टेयर संरक्षित वन भूमि के डायवर्जन की आवश्यकता होगी और तकरीबन 1,12,722 पेड़ों को काटना होगा. 

हलफनामे में कहा गया है, ‘उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा साल 2010-11 में, ऊपरी गंगा नहर के दाहिने किनारे पर एक एक्सप्रेसवे की कल्पना की गई थी. हालांकि, गंभीर पर्यावरण संबंधी खतरों को देखते हुए उक्त परियोजना का मूल्यांकन किया गया था, जिसके बाद पर्यावरण और वन मंत्रालय ने वन भूमि के डायवर्जन और पेड़ काटने के राज्य सरकार के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था.  

हलफनामा दायर करने वालों ने, मध्य क्षेत्र के उप वन संरक्षक (डीसीएफ) की जून 2010 की रिपोर्ट पर भरोसा किया है, जिसमें कहा गया था, ‘पहले से ही दो सड़कें हैं जो गाजियाबाद, मेरठ और मुजफ्फरनगर को उत्तराखंड से जोड़ रही हैं. वे सड़कें हैं- ऊपरी गंगा नहर के बाएं किनारे पर एनएच -58 और कांवर रोड. सड़कों को चौड़ा करके इन दोनों सड़कों में भी सुधार किया जा रहा है.’ 

डीसीएफ की रिपोर्ट में यह भी जोड़ा गया था कि यदि नए सड़क का निर्माण किया जाता है तो नहर के किनारे स्थित वनस्पतियों और वन्यजीवों के आवास को नुकसान पहुंचेगा.

आवेदकों ने यह दावा किया है कि जून और जुलाई के महीने में परियोजना स्थल के दौरे के दौरान उन्होंने जेसीबी मशीनों द्वारा हजारों पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई होते देखी.

आवेदकों ने हलफनामा दायर कर तर्क दिया है कि नहर के किनारे बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई से पश्चिमी यूपी में पानी की उपलब्धता और कृषि पर असर पड़ेगा.  

सरकार ने आवेदकों के पेड़ कटाई के आरोप से इनकार किया है और एनजीटी के समक्ष कहा कि सड़क की चौड़ाई कम होने के कारण अब तक लगभग 3,000 पेड़ों को काटने से बचाया गया है.