नई दिल्ली: देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के साल 2020 में न्यूनतम राशि न रखने पर लिए जाने वाले शुल्क (मिनिमम बैलेंस पेनल्टी) को बंद करने के बावजूद अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने पिछले पांच वर्षों में खाताधारकों के एकाउंट में मिनिमम बैलेंस न होने पर 8,500 करोड़ रुपये जुर्माने के तौर पर वसूले हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, लोकसभा में एक सवाल के जवाब में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने जानकारी दी कि बीते पांच सालों में सरकारी बैंकों की मिनिमम बैलेंस पेनल्टी की राशि में 35 प्रतिशत से अधिक बढ़ोत्तरी हुई है.
द हिंदू बिज़नेस लाइन की खबर के अनुसार, वित्त राज्य मंत्री द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के पता चलता है कि देश के 11 सरकारी बैंकों के पास मिनिमम बैलेंस जुर्माना वसूलने के लिए अलग-अलग व्यवस्थाएं हैं. छह बैंक- पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब एंड सिंध बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया बैंक और यूको बैंक मिनिमम क्वार्टरली एवरेज बैलेंस (क्यूएबी) नहीं होने पर जुर्माना वसूलते हैं. जबकि, अन्य चार बैंक- इंडियन बैंक, केनरा बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया मिनिमम एवरेज मंथली बैंलेस (एएमबी) नहीं रखने पर जुर्माना लगाते हैं.
मालूम हो कि ग्राहकों के लिए मिनिमम बैलेंस की सीमा शहरों और गांवों में अलग-अलग है. ये जुर्माना बैंक और ग्राहक के स्थान के आधार पर 25 रुपये से 600 रुपये तक लगाया जाता है.
वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने इस व्यवस्था में पारदर्शिता के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि बैंकों को खाता खोलते समय ग्राहकों को मिनिमम बैलेंस की जरूरत के बारे में बताना चाहिए. इसके साथ ही किसी भी बदलाव के संबंध में उन्हें सूचित किया जाना चाहिए.
इसके अलावा अगर किसी के खाते में तय रकम से कम पैसे होते हैं, तो बैंक उन्हें पहले ही बता दें, अगर ग्राहक एक महीने के अंदर अपने खाते में पैसे नहीं जमा करा पाते हैं, तो बैंक उनसे जुर्माना ले सकते हैं. लेकिन बैंक ये भी सुनिश्चित करें कि जुर्माने की वजह से किसी के खाते में नेगेटिव बैलेंस में न पहुंच जाएं.
बिजनेसलाइन ने चौधरी के हवाले से कहा, ‘यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि बचत खाता केवल मिनिमम बैलेंस न रखने के कारण घाटे में न चला जाए.’