मध्य प्रदेश: स्वतंत्रता दिवस समारोह के बैंड अभ्यास में शामिल न होने पर 19 पुलिसकर्मी निलंबित

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव हर ज़िले में पुलिस बैंड की स्थापना करने के निर्देश दिए हैं. इसका उद्देश्य जनता की नज़रों में पुलिस की सकारात्मक छवि बनाना है.

बीते 29 जुलाई को उज्जैन में महाकाल सवारी के दौरान प्रस्तुति देता पुलिस बैंड. (फोटो साभार: एक्स/@DrMohanYadav51)

नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव की हर जिले में पुलिस बैंड स्थापित करने की पहल अब खटाई में पड़ती नज़र आ रही हैं, क्योंकि कई पुलिसकर्मियों ने इससे असहमति जताते हुए अदालत का रूख किया है.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, स्वतंत्रता दिवस समारोह के लिए बैंड अभ्यास में शामिल न होने पर जुलाई में प्रदेश के 19 पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया. इस संबंध में 25 जुलाई को रायसेन, मंदसौर, खंडवा, सीधी और हरदा जिलों के पुलिस अधीक्षकों ने एक नोटिस के जरिए उन पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया, जिनका नाम सूची में होने के बावजूद वे स्वतंत्रता दिवस समारोह के लिए बैंड अभ्यास में शामिल नहीं हुए थे.

इस निलंबन आदेश में पुलिसकर्मियों पर ‘घोर अनुशासनहीनता और अवज्ञा’ का आरोप लगाया गया था. इसके अलावा नोटिस में कहा गया था कि निलंबन अवधि के दौरान वे नियमों के अनुसार निर्वाह भत्ता पाने के हकदार होंगे, वे एसपी की अनुमति के बिना मुख्यालय नहीं छोड़ेंगे और नियमों के अनुसार अपनी हाजिरी दर्ज कराएंगे.

रायसेन एसपी विकास कुमार ने अखबार को बताया कि अधिकारियों को उनका प्रदर्शन दिखाने के लिए बुलाया गया था लेकिन वे गायब हो गए. फिर उन्हें निलंबन नोटिस दिए गए और पुलिस लाइन में रहने का आदेश दिया गया. वे अभी तक नहीं आए हैं.

कई पुलिसकर्मी इस निलंबन के फैसले के खिलाफ मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की जबलपुर और ग्वालियर पीठ भी पहुंचे. हालांकि, यहां उन्हें निराशा ही हाथ लगी.

पुलिसकर्मियों का कहना था कि उन्होंने पुलिस बैंड में शामिल होने के लिए अपनी सहमति नहीं दी थी और न ही इस संबंध में कोई आवेदन किया था, क्योंकि वे बैंड अभ्यास नहीं कानून व्यवस्था और अन्य नियमित कार्यों का निर्वहन करके अपने कर्तव्यों का पालन करने में रुचि रखते हैं.

उन्होंने तर्क दिया था कि पुलिस बैंड के हिस्से के रूप में उनके नाम का उल्लेख करने वाला आदेश ‘मनमाना और अवैध’ था. पुलिसकर्मियों का आरोप था कि इसके बारे में उनकी राय नहीं ली गई थी. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इस मामले में उन्हें सीनियर अधिकारियों का दबाव झेलना पड़ रहा है.

मध्य प्रदेश पुलिस ने हाईकोर्ट में अपने जवाब में कहा कि पहले लिखित सहमति मांगी गई थी, लेकिन कोई भी सहमति देने के लिए उपस्थित नहीं हुआ. इस कारण एक आम सूची तैयार की गई.

मालूम हो कि इस पहल की घोषणा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने की थी, जिन्होंने विभिन्न जिलों में स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए पुलिस बैंड बनाने की परिकल्पना की थी. इस संबंध में 18 दिसंबर, 2023 को पुलिस मुख्यालय (भोपाल) द्वारा एक परिपत्र जारी किया गया था, जिसमें हर बटालियन में पुलिस बैंड बनाने के निर्देश जारी किए गए थे. इसके पीछे की वजह जनता की नजरों में पुलिस की सकारात्मक छवि बनाना बताया गया था. इसमें भाग लेने वाले पुलिसकर्मियों की उम्र 45 वर्ष से कम होना तय की गई थी.

29 मई को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर पीठ के जज जस्टिस आनंद पाठक ने पांच पुलिसकर्मियों की याचिका खारिज कर दी थी. उन्होंने स्कॉटिश निबंधकार और इतिहासकार थॉमस कार्लाइल को उद्धृत करते हुए कहा था कि संगीत को देवदूतों की भाषा माना जाता है.

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि जनता के सांस्कृतिक और औपचारिक कार्यक्रमों में पुलिस बैंड की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है. सहमति के अभाव पर अदालत ने कहा कि पुलिस बैंड प्रशिक्षण को ‘निरंतर कौशल वृद्धि कार्यक्रम के रूप में माना जा सकता है, इसलिए याचिकाकर्ताओं से कोई पूर्व सहमति लेने की आवश्यकता नहीं है.

इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि पुलिस एक अनुशासित बल है और इसलिए याचिकाकर्ताओं द्वारा यह दलील नहीं दी जा सकती है कि वे अपनी सहमति के अनुसार कर्तव्यों का पालन करने के हकदार हैं. यह अनुशासित बल के विपरीत होगा.

गौरतलब है कि 1 अगस्त को जबलपुर के तीन कांस्टेबलों ने ग्वालियर पीठ के आदेश से अवगत होने के बाद अपनी याचिकाएं वापस ले लीं. उनके मामले में अदालत ने पुलिस को चेतावनी दी कि वह याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आगे कार्रवाई न करे. यदि याचिकाकर्ता निलंबन के आदेश के खिलाफ अपील करना पसंद करते हैं, तो उस पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाएगा.