कैग रिपोर्ट में कहा गया- तेलंगाना की वित्तीय हालत ख़राब

कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल देनदारियों में ख़तरनाक वृद्धि और ऋण का बढ़ता बोझ तेलंगाना की वित्तीय स्थिति ख़राब होने का संकेत देता है. राज्य का बकाया कर्ज़ राज्य के सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 35.64% है, जो 15वें वित्त आयोग द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक है.

तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी. (फोटो साभार: फेसबुक/@rrevanthofficial)

नई दिल्ली: भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कुल देनदारियों में खतरनाक वृद्धि, ऋण चुकौती की अस्थिरता और ऋण सेवा का बढ़ता बोझ तेलंगाना की वित्तीय स्थिति खराब होने का संकेत देता है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, शुक्रवार को वित्त मंत्री मल्लू भट्टी विक्रमार्क द्वारा राज्य विधानसभा में पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022-23 तक राज्य की कुल बकाया देनदारियां 4.68 लाख करोड़ रुपये थीं. इसमें बजट में शामिल 3.49 लाख करोड़ रुपये की देनदारियां और 1.18 लाख करोड़ रुपये की ऑफ-बजट उधारी शामिल हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘बकाया ऋण राज्य के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 35.64% है, जो 15वें वित्त आयोग द्वारा निर्धारित 29.70% की अनुमत सीमा से अधिक है.’

रिपोर्ट में राज्य द्वारा सामना किए जा रहे बढ़ते ऋण के बोझ पर भी प्रकाश डाला गया है. कैग ने कहा कि अगले 10 वर्षों में तेलंगाना को बाजार से लिए गए कर्ज पर मूलधन और ब्याज के रूप में 2.67 लाख करोड़ रुपये चुकाने होंगे और इस आंकड़े में अन्य वित्तीय संस्थानों से लोन को चुकाने के लिए देय 19,210 करोड़ रुपये का मूलधन शामिल नहीं है.’

इसमें कहा गया है कि बाजार से लिए गए लोन का एक बड़ा हिस्सा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू), विशेष प्रयोजन वाहनों (एसपीवी) और स्वायत्त निकायों (एबी) को ऋण के लिए उपयोग किया गया था, ताकि ऑफ-बजट उधारी पूरी की जा सके. कैग की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘यह प्रथा राज्य के ऋण की स्थिरता के बारे में चिंता पैदा करती है.’

कैग ने कहा कि समग्र ऋण स्थिरता से पता चलता है कि सरकार के पास उपलब्ध शुद्ध सार्वजनिक ऋण, ऑफ-बजट उधार चुकाने  के बाद नकारात्मक होगा. इसने कहा, ‘इससे राज्य के वित्त पर महत्वपूर्ण दबाव पड़ सकता है और राज्य की ऋण स्थिरता अवांछनीय स्तर तक पहुंच सकती है.’

बढ़ते कर्ज स्तर और इन्हें चुकाने के दायित्वों को पूरा करने में संभावित चुनौतियों के कारण राज्य की वित्तीय स्थिति चिंताजनक बताते हुए कैग ने कहा कि राज्य सरकार की बजट से इतर कर्ज पर निर्भरता और कर्ज चुकाने के लिए बाजार से उधारी का आवंटन इसके वित्तीय तौर-तरीकों की दीर्घकालिक स्थिरता पर सवाल उठाता है.

कैग ने कहा कि राज्य ने तीन वर्षों के बाद 5,944 करोड़ रुपये का राजस्व अधिशेष (सरप्लस) दर्ज किया है और 2022-23 तक राजकोषीय घाटे का लक्ष्य जीएसडीपी का 5% है.

सिंचाई परियोजनाओं में देरी से को 1 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त नुकसान

बिजनेस स्टैंडर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि तेलंगाना में 1983 से 2018 के बीच शुरू की गई 20 सिंचाई परियोजनाओं की लागत मार्च 2023 तक 1 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2 लाख करोड़ रुपये हो गई है, क्योंकि ये परियोजनाएं पूरी नहीं हो पाईं.

कैग की रिपोर्ट (2022-23) के अनुसार, परियोजनाओं के पूरा न होने से राज्य आर्थिक विकास के अपेक्षित लाभों से वंचित हो जाता है और सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण में निवेश से मिलने वाले रिटर्न पर कोई आश्वासन नहीं है, क्योंकि राज्य सरकार ने किसी भी सिंचाई परियोजना के वित्तीय परिणामों का खुलासा नहीं किया है.

इसने कहा, ‘वर्ष 2023 तक 20 अधूरी सिंचाई परियोजनाएं (1983 से 2018 के बीच शुरू) पूरी होनी थीं. इन परियोजनाओं की मूल लागत 1,02,388 करोड़ रुपये से बढ़कर 2,06,977 करोड़ रुपये हो गई है, यानी 1,04,589 करोड़ रुपये (102 प्रतिशत) की वृद्धि हुई है.’

रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च 2023 तक इन परियोजनाओं पर 1,73,564 करोड़ रुपये का व्यय हुआ. इसके अलावा, सरकार पर 13 अधूरी सिंचाई परियोजनाओं के संबंध में 8,971 करोड़ रुपये की देनदारी लंबित है.

कैग रिपोर्ट कहती है, ‘इन परियोजनाओं/कार्यों के पूरा होने में अत्यधिक देरी से न केवल सरकार का वित्तीय बोझ साल दर साल बढ़ता जा रहा है, बल्कि जनता को इच्छित लाभ से भी वंचित होना पड़ रहा है.’

कैग ने यह भी कहा कि हैदराबाद शहरी समूह एक ऐसा मामला है, जहां मुसी नदी शुद्धिकरण और मुसी रिवर फ्रंट परियोजना आदि के लिए 2020-21 के बजट में 10,000 करोड़ रुपये प्रस्तावित किए जाने के बावजूद कोई खर्च नहीं हुआ है, अनुमान है कि अगले पांच वर्षों (2020-21 से आगे) के लिए 50,000 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी.

रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि, 2020-21 के दौरान 10,000 करोड़ रुपये पूरी तरह इस्तेमाल ही नहीं हुआ (unutilised) और अगले वर्ष (2021-22) बजट को काफी कम करके 2,600 करोड़ रुपये कर दिया गया और अगले वर्ष (2022-23) इसे और भी कम करके 200 करोड़ रुपये कर दिया गया लेकिन कम किया गया आवंटन भी इस्तेमाल नहीं हुआ.