नई दिल्ली: पुराने दिनों को याद करते वक्त वह कसकने लगती हैं. कहने को झेलम ने पांच सर्दियां देख लीं, उनका अपना जीवन कई रास्ते पार कर आया लेकिन अगस्त का वह महीना अभी भी गूंजता है जब अनुच्छेद 370 को हटा दिया गया था.
इसके बाद उनके जीवन में क्या परिवर्तन आया?
‘परिवर्तन? अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के कारण जन्मी शून्यता और असहायता का वर्णन करने के लिए यह बहुत छोटा शब्द है,’ 24 वर्षीय शाज़िया* कहती हैं.
वह डोडा जिले की निवासी हैं. लॉ की पढ़ाई के लिए 2018 में दिल्ली आ गई थीं. इन दिनों दिल्ली में ही वकालत करती हैं.
‘मैं दिल्ली में थी. मुझे अपने ही सहपाठियों द्वारा मानसिक रूप से प्रताड़ित होना पड़ता था. यह जानते हुए भी कि मैं 5 अगस्त से अपने परिवार वालों से अलग हो गई हूं, वे हर दिन टिप्पणियां करते थे कि 370 हटाना कितना बड़ा कदम है. एक बार तो उन्होंने क्लास रूम में समाचार चला दिया, जिसमे एंकर बता रहा था कि कैसे कश्मीर के भारत में मिलने पर पूरे देश में लोग खुशी मना रहे हैं.’
उनका दरकता स्वर बताता है कि उन दिनों को याद करना आसान नहीं है. ‘इंटरनेट बंद कर दिया गया था, फोन या एसएमएस तक नहीं कर सकते थे अपने घर वालों को. मेरी हॉस्टल की रूममेट कहा करती थी कि क्या हुआ अगर घर में बात नहीं हो रही है? तुम बड़ी तस्वीर की ओर देखो, आने वाले समय में तुम खुद इस फैसले का स्वागत करोगी.’
आज तक इस तरह की बातें लगभग हर कश्मीरी को सुननी पड़ती है, और ये कितनी मानसिक यातना दे सकती है इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता, वह कहती हैं.
370 हटने के आर्थिक प्रभावों के बारे में वह कहती हैं, ‘हम अभी भी इससे निपट रहे हैं. सबसे बड़ी समस्या यह है कि जम्मू कश्मीर में पढ़े-लिखे लोगों के लिए भी नौकरियां नहीं है.’
‘उस घटना ने हमें केवल एक चीज़ सिखाई है और वह यह है कि हम जीवन के किसी भी मोड़ पर अपने प्रियजन से अलग हो सकते हैं, और हम इसके बारे में किसी से सवाल तक नहीं कर पाएंगे, क्योंकि हमारे साथ जो कुछ भी किया जाता है वह हमारी ‘बेहतरी’ के लिए होता है.’
अनुच्छेद 370 के हटाए जाने की पांचवी वर्षगांठ पर द वायर हिंदी ने कई कश्मीरियों से बात की और पता चला कि यह भाव तमाम कश्मीरी साझा करते हैं. वे एक ऐसी पीड़ा को लेकर जी रहे हैं जिसे वे किसी ‘बाहरी’ इंसान को सुना भी नहीं सकते.
ठीक पांच साल पहले, 5 अगस्त 2019 को केंद्र की भाजपा सरकार ने जम्मू-कश्मीर को आज़ाद भारत में शामिल करने की शर्त के रूप में अनुच्छेद 370 के तहत दिए गए विशेष दर्जे को निरस्त कर दिया था. साथ ही राज्य को दो केंद्रीय शासित प्रदेशों में तब्दील कर दिया- जम्मू कश्मीर और लद्दाख.
सरकार कहती है कि यह कश्मीरियों की शिकायतें हैं, जम्मू में स्थिति बेहतर है. लेकिन जम्मू के कई निवासियों की पीड़ा कश्मीर से भिन्न नहीं है.
जम्मू की 24 वर्षीय सपना* पिछले सात सालों से दिल्ली में रह रही हैं. पहले पढ़ाई और फिर रोजगार के लिए. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय और जामिया से पढ़ाई की है. रोजगार की ख़राब स्थिति पर सपना कहती हैं, ‘जो नौकरियां राज्य के युवाओं के लिए थीं, अनुच्छेद 370 के हटने के बाद कम हो गईं हैं, जिसके कारण युवा तेजी से पलायन कर रहे हैं.’
सपना कहती हैं कि उनके परिवार के तक़रीबन सभी युवा सदस्य रोजगार की तलाश में जम्मू छोड़ चुके हैं. वह स्वीकारती हैं कि कश्मीर की तुलना में जम्मू में सेना की मौजूदगी कम है, जिसके कारण लोगों को घूमने की अधिक स्वतंत्रता है, लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अभी भी सीमित है कि लोकप्रिय राय के विपरीत किसी भी चीज़ को सेंसर किया जाता है जिसके चलते लोगों के अंदर डर बना रहता है.
हालांकि संचिता* जैसे जम्मू के कई निवासी इस फैसले को सराहनीय बताते हैं. उन्होंने कहा, ‘अनुच्छेद 370 को बहुत पहले ही हटा देना चाहिए था. उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 कश्मीर को बाकी देश से अलग करती थी, इसके हटने के बाद कश्मीर सही मायने में भारत का हिस्सा बन पाया है.
संचिता कश्मीरी पंडित हैं. उनके परिवार को नब्बे के दशक में घाटी में अपना घर छोड़कर जम्मू में पुनर्वासित होना पड़ा था. उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 के हटने से जम्मू पर कुछ विशेष असर नहीं पड़ा है, लेकिन कश्मीर के लोगों में इसको लेकर नाराजगी है.
कश्मीर में यह आक्रोश एकदम जाहिर है. इंटरनेट शटडाउन अभी भी जारी हैं. शाज़िया कहती हैं, ‘अभी भी कश्मीर में इंटरनेट बंद कर दिया जाता है. कुछ दिन पहले मैं कश्मीर में थी और एक नौकरी के सिलसिले में मेरा ऑनलाइन इंटरव्यू था. तभी अचानक से इंटरनेट बंद कर दिया गया. लेकिन यह नया नहीं है. कश्मीर में कुछ भी नया नहीं होता, हम मानवाधिकार के हनन के आदि हो गए हैं.’
अनुच्छेद 370 ने राज्य को उसका अपना संविधान, एक अलग ध्वज और कानून बनाने की स्वतंत्रता दी. इसके परिणामस्वरूप, जम्मू-कश्मीर स्थायी निवास, संपत्ति के स्वामित्व और मौलिक अधिकारों से संबंधित अपने अलग नियम बना सकता था. हालांकि, विदेशी मामले, रक्षा और संचार केंद्र सरकार के अधीन रहे, और तमाम अन्य केंद्रीय कानून समय के साथ कश्मीर में लागू होते गए थे.
370 के हटने से बाहरी लोगों को फायदा हुआ, कश्मीरियों को क्या मिला ?
श्रीनगर के 65 वर्षीय मोहम्मद आफ़ताब* गद्दे बनाने का व्यवसाय करते हैं. उनके अनुसार सरकार दावे करती थी कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद कश्मीरी व्यापारियों को फायदा होगा, व्यापार करने में आसानी होगी. लेकिन बढ़े हुए टैक्स और बिजली बिल के कारण उनकी दिक्कतें बढ़ गई हैं. उनका व्यवसाय पहले टैक्स फ्री हुआ करता था, लेकिन सरकार ने उस पर भी जीएसटी लगाकर उनकी दिक्कतें बढ़ा दी.
उन्होंने यह भी कहा कि बीते कुछ सालों में घाटी के युवा नशे की गिरफ्त में आ चुके हैं. राज्य में भारी मात्रा में ड्रग्स की सप्लाई युवाओं का भविष्य बर्बाद कर रही है.
कश्मीर में मिलिटेंसी कम होने के दावे पर उन्होंने कहा, ‘मिलिटेंसी कम हुई है, लेकिन डर के कारण कम हुई है. मिलिटेंसी के शक में किसी को भी कहीं से भी उठा लिया जाता है, जिसके कारण लोगों के अंदर डर पैदा हो गया है.
माता-पिता डरते हैं कि उनका बच्चा सुबह को घर से निकला शाम को वापिस आएगा या नहीं. कहीं वह ऐसा न कुछ बोल दे कि जिसके बाद पुलिस उन्हें उठा के ले जाएं.
जिस कश्मीर घाटी में भाजपा का कोई निशान नहीं था, 370 हटने के बाद भाजपा वहां अपने पैर पसार रही है. नौकरी और पैसों के लिए स्थानीय लोग भाजपा के साथ जुड़ रहे हैं.
आफ़ताब सवाल उठाते हैं, ‘श्रीनगर को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए जितने भी ठेकेदारों को ठेके दिए गए, वो सभी बाहरी थे. हुकूमत कहती है कि 370 के हटने के बाद बाहरी लोग आकर बस सकते हैं, सब कुछ तो बाहरियों के लिए है, फिर कश्मीरियों के लिए क्या है ? उन्हें क्या फायदा हुआ?’
लेकिन वह स्वीकारते हैं कि 370 हटाने से कुछ फायदे भी हुए हैं. ‘पहले स्कूलों और कॉलेजों में दाखिले के लिए डोनेशन देना पड़ता था, बच्चों के मां-बाप से मोटी रकम वसूली जाती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं होता.’
अवंतीपोरा की एक छात्रा ने भी 370 हटाने के फायदे के रूप में शिक्षा व्यवस्था में हुए सुधार को गिनाया.
झूठी शांति के साथ जी रही झेलम
श्रीनगर की एक फिजियोथेरेपिस्ट ने कहा, ‘दुर्भाग्यवश, हम कश्मीरी लोगों को इस देश में कभी भी अपनेपन की भावना महसूस नहीं हुई, न ही 370 के निरस्त होने से पहले और न ही उसके बाद. भारत के अन्य हिस्सों में लोगों से हमें केवल शत्रुता का सामना करना पड़ा है.’
दिल्ली में कार्यरत कश्मीरी महिला आलिमा कहती हैं कि रोजगार की कमी के चलते कश्मीर छोड़ने के अलावा उनके पास कोई और विकल्प नहीं था. 6 साल पहले वह शिक्षा के लिए कश्मीर छोड़ कर पहले चंडीगढ़, फिर दिल्ली आईं थी. उन्हें लगा था कि 6 सालों में बहुत कुछ बदल जाएगा और कश्मीर में उन्हें ढंग की नौकरी मिल जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
‘370 के बाद से कोई भी कभी भी गिरफ्तार हो सकता है. जिसके कारण कश्मीर में विरोध प्रदर्शन पूरे तरीके से बंद हो गए हैं. वहां कोई अब स्थानीय मुद्दों को लेकर भी विरोध प्रदर्शन नहीं कर सकता. अभिव्यक्ति की आज़ादी पर ताला लग गया है. आप इंटरनेट पर कुछ भी लिखते हैं, जो सरकार को पसंद नहीं आया, तो आपको पकड़ लिया जा सकता है.’
वह कहती हैं कि अनुच्छेद 370 के निष्प्रभाव होने के बाद से उनके घर वाले उन्हें सोशल मीडिया पर कुछ भी लिखने से रोकते हैं.
370 हटने के बाद से घाटी में शांति आ जाने के बारे में वह कहती हैं कि लोगों से जबरन भुलवाया जा रहा है कि उनके साथ क्या हुआ है, और वो किस मुद्दे के लिए लड़ रहे थे.
वह इसकी बड़ी वजह बेरोजगारी को मानती हैं. ‘घाटी में लोग अभी भी भयंकर बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं. 10 में से 9 लोग आपस में लड़ रहे हैं नौकरी पाने की चाहत में. लोगों की ज़िन्दगी इतनी अस्थिर हो गई है कि वे कश्मीर के मुद्दे के बारे में बात नहीं कर सकते, पहले अपनी ज़िंदगी व्यवस्थित करने में लगे हैं. यही कारण है कि कश्मीर में शांति दिखाई देती है.’
(* परिवर्तित नाम)