नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार में सत्ता को लेकर मची आपसी खींचतान गुरुवार सदन के भीतर तब उभरकर सामने आ गई जब सत्ता पक्ष के ही सदस्य नजूल संपत्ति (सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए प्रबंधन और उपयोग) विधेयक के विरोध में उतर आए, जिसके बाद गुरुवार (1 जुलाई) को विधान परिषद ने इसे समीक्षा के लिए प्रवर समिति के पास भेज दिया.
बता दें कि एक दिन पहले ही बुधवार (31 जुलाई) को यह विधेयक राज्य विधानसभा ने भारी हंगामे के बीच पारित किया था, जिसके बाद इसे मंजूरी के लिए उच्च सदन यानी विधान परिषद में लाया गया था.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, योगी आदित्यनाथ सरकार के नजूल संपत्ति विधेयक को विधानसभा में पारित होने से पहले ही विपक्षी दलों के साथ-साथ सत्तारूढ़ भाजपा विधायकों के विरोध का भी सामना करना पड़ा था. इलाहाबाद पश्चिम के भाजपा विधायक तथा पूर्व मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह और इलाहाबाद के भाजपा विधायक हर्षवर्धन बाजपेयी ने विधेयक पर आशंकाएं व्यक्त कीं, जिसके बाद भाजपा के सहयोगी दल निषाद पार्टी के अनिल त्रिपाठी भी उनके समर्थन में आ गए.
हालांकि, विधेयक निचले सदन यानी विधानसभा से तो पास हो गया लेकिन अगले ही दिन उच्च सदन यानी विधान परिषद में अटक गया जब इसे सदन में बिना किसी चर्चा के ही समीक्षा के लिए प्रवर समिति के पास भेज दिया गया.
इसकी मांग सबसे पहले उत्तर प्रदेश भाजपा प्रमुख और एमएलसी भूपेंद्र चौधरी ने की, और इसका समर्थन उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने किया जो कथित तौर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ अंदरूनी तौर पर मोर्चा खोले हुए हैं.
बता दें कि नजूल भूमि वह होती है जिसे औपनिवेशिक काल के दौरान सार्वजनिक उपयोगिताओं, प्रशासनिक कार्यों या विस्थापित व्यक्तियों को बसाने जैसे विशिष्ट उद्देश्यों के लिए अधिग्रहित किया गया था. समय के साथ, इस भूमि को विभिन्न सार्वजनिक और निजी कार्यों के लिए इस्तेमाल किया गया या पट्टे पर दिया गया.
प्रस्तावित विधेयक में नजूल भूमि का इस्तेमाल केवल सार्वजनिक कार्यों के लिए ही किए जाने की बात कही गई थी. साथ ही, कहा गया था कि नजूल भूमि के स्वामित्व को निजी व्यक्तियों या संस्थाओं को हस्तांतरित करने का अनुरोध करने वाली कोई भी अदालती कार्यवाही या आवेदन रद्द कर दिए जाएंगे और स्वत: ही अस्वीकृत हो जाएंगे. यदि ऐसे स्वामित्व परिवर्तनों के लिए कोई भुगतान किया गया है, तो वह राशि वापस कर दी जाएगी.
विधेयक में यह भी प्रावधान था कि सरकार नजूल भूमि के वर्तमान पट्टाधारकों के पट्टे को बढ़ाने का विकल्प चुन सकती है, बशर्ते कि उनकी स्थिति अच्छी हो, वे नियमित रूप से किराया दे रहे हों, और उन्होंने पट्टे की शर्तों का उल्लंघन न किया हो.
यह विधेयक उस अध्यादेश की जगह लेने वाला था जो इस साल मार्च से लागू है. गौरतलब है कि जब अध्यादेश पारित किया गया था, तब इसका कोई खास विरोध नहीं हुआ था.
वहीं, राज्य के दोनों सदनों में भाजपा को स्पष्ट बहुमत प्राप्त है. विधानसभा में आदित्यनाथ भाजपा के नेता हैं तो विधान परिषद में मौर्य भाजपा दल का नेतृत्व करते हैं. इसके बावजूद विधेयक के सदन से पारित न हो पाने, और वो भी सत्ता पक्ष की मांग पर, ने यूपी में भाजपा के भीतर मची खींचतान को फिर से हवा दे दी, जबकि कुछ ही दिनों पहले पार्टी ने मानसूत्र से पहले बुलाई गई विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री और दोनों मुख्यमंत्रियों की मौजूदगी एक साथ दिखाकर एकजुटता दिखाने का प्रयास किया था, जो अब नाकाम होता नजर आता है.
इसी लिए गुरुवार को जब प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने विधेयक को प्रवर समिति को भेजने का प्रस्ताव रखा तो विपक्षी सदस्य भी अचंभित रह गए. उन्होंने चौधरी के प्रस्ताव का न तो समर्थन किया और न ही विरोध, लेकिन भाजपा नेताओं ने जरूर चौधरी के प्रति समर्थन जताया, मौर्य ने तो समर्थन में हाथ तक उठा दिया.
विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजे जाने पर मौर्य और दूसरे उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक हाथ मिलाते भी दिखे.
एक भाजपा एमएलसी ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘जब संगठन प्रमुख कोई प्रस्ताव देते हैं, तो हमें उसका पालन करना होता है. वह (भूपेंद्र चौधरी) न केवल विधान परिषद के सदस्य हैं, बल्कि पार्टी की प्रदेश इकाई के प्रमुख भी हैं. हमारे सदन के नेता और उपमुख्यमंत्री केशव जी ने भी इसका समर्थन किया. कई लोग प्रावधानों के खिलाफ हमसे संपर्क कर रहे हैं क्योंकि इससे उन गरीब लोगों को विस्थापित होना पड़ेगा जो पीढ़ियों से नजूल की जमीन पर रह रहे हैं… नए कानून से सरकार को इसे अपनी मर्जी से वापस लेने की शक्ति मिल जाएगी.’
इस बीच, समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव ने शुक्रवार को विधेयक को अमानवीय करार देते हुए इसे हमेशा के लिए वापस लेने की मांग की.
उन्होंने एक्स पर भाजपा पर कटाक्ष करते हुए कहा, ‘नज़ूल भूमि का मामला पूरी तरह से ‘घर उजाड़ने’ का फ़ैसला है क्योंकि बुलडोज़र हर घर पर नहीं चल सकता है. भाजपा घर-परिवार वालों के ख़िलाफ़ है. जब से भाजपा आई है, तब से जनता रोजी-रोटी-रोज़गार के लिए भटक रही है, और अब भाजपाई मकान भी छीनना चाहते हैं… बसे बसाये घर उजाड़कर भाजपा वालों को क्या मिलेगा. क्या भू-माफ़ियाओं के लिए भाजपा जनता को बेघर कर देगी?’
इससे पहले, एक्स पर एक अन्य पोस्ट में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ पर निशाना साधते हुए उन्होंने लिखा था, ‘नज़ूल ज़मीन विधेयक दरअसल भाजपा के कुछ लोगों के व्यक्तिगत फ़ायदे के लिए लाया जा रहा है जो अपने आसपास की ज़मीन को हड़पना चाहते हैं. गोरखपुर में ऐसी कई ज़मीने हैं जिन्हें कुछ लोग अपने प्रभाव-क्षेत्र के विस्तार के लिए हथियाना चाहते हैं. आशा है कि मुख्यमंत्री जी स्वत: संज्ञान लेते हुए ऐसे किसी भी मंसूबे को कामयाब नहीं होने देंगे, खासतौर से गोरखपुर में.’