एनडीए के चिराग पासवान, रामदास अठावले ने एससी/एसटी उप-वर्गीकरण के फैसले का विरोध किया

सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिनों अपने एक फैसले में कहा है कि किन्हीं समुदायों के अधिक पिछड़े लोगों को अलग कोटा देने के उद्देश्य से अनुसूचित जातियों और जनजातियों का उप-वर्गीकरण किया जा सकता है.

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चिराग पासवान और रामदास अठावले. (फोटो साभार: एक्स)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (2 अगस्त) को अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को उप-वर्गीकृत करके उन्हें अलग-अलग आरक्षण दिए जाने की राज्यों को अनुमति दे दी, जिसका जाति-विरोधी समूहों और राजनेताओं ने कड़ा विरोध किया है.

सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार के कई सदस्यों ने भी सात जजों की संविधान पीठ के फैसले पर अपना असंतोष व्यक्त किया है, जो 6:1 के बहुमत के साथ दिया गया. फैसले के अंतर्गत अनुसूचित समुदायों में अधिक पिछड़ों के लिए शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी रोजगार में अलग से सीटें आरक्षित करने के उद्देश्य से उप-वर्गीकरण की अनुमति दी गई है. 

इस फैसले का विरोध करने वालों में केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान और रामदास अठावले भी शामिल हैं.

पटना में एक संवाददाता सम्मेलन में, पासवान ने कहा कि उनकी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) इस फैसले के खिलाफ अपील करेगी. 

पीटीआई के मुताबिक, उन्होंने कहा, ‘हमारी पार्टी 15% एससी कोटा के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति देने वाले अपने हालिया फैसले की समीक्षा करने के लिए शीर्ष अदालत से अपील करेगी.’ 

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला समुदाय के भीतर क्रीमीलेयर को आरक्षण से अलग करने के बारे में विचार करता है, जिसमे पीठ की छह अलग-अलग राय शामिल हैं. 

दिलचस्प बात यह है कि किसी भी याचिका में एससी-एसटी वर्ग में क्रीमीलेयर को अलग करने की बात नहीं की गई थी.  

‘क्रीमीलेयर’ शब्द का उपयोग अब तक अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के संदर्भ में किया जाता रहा है, जिसके अंतर्गत ओबीसी वर्ग में जो लोग सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से उन्नत हैं, उन्हें आरक्षण के लाभ से बाहर रखा जाता है. 

अभी के नियमों के अनुसार, क्रीमीलेयर एक निश्चित आय स्तर से ऊपर के व्यक्तियों को संदर्भित करता है, ओबीसी के लिए यह 8 लाख रुपये प्रति वर्ष है. इस आय से ऊपर पैसे कमाने वाले लोगों को कोटा लाभ से बाहर रखा जाता है. 

पीटीआई के अनुसार, पासवान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ‘एससी कोटा में क्रीमीलेयर की अनुमति नहीं दी जा सकती. एससी कोटा के भीतर वर्गीकरण को अनुमति देने से सामाजिक रूप से हाशिए पर रहने वाले वर्ग के उत्थान का उद्देश्य पूरा नहीं होगा जो अस्पृश्यता की प्रथा का शिकार रहा है.’ 

उन्होने कहा कि अनुसूचित जाति के अधिकांश लोग, यहां तक ​​कि अच्छे परिवारों से आने वाले और अच्छी शिक्षा तक पहुंच रखने वाले लोगों को भी छुआछूत का सामना करना पड़ता है, इसलिए एससी  के भीतर वर्गीकरण को अनुमति देना उचित नहीं है. 

अनुसूचित जाति के अंदर वर्गीकरण कोई नई घटना नहीं है. बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (जो पासवान की पार्टी की ही तरह एनडीए का हिस्सा हैं) की सरकार ने एससी वर्ग के भीतर एक अलग ‘महादलित’ श्रेणी बनाई हुई है.

हालांकि, पासवान ने बिहार में मौजूदा उप-वर्गीकरण पर कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन उन्होंने विवादास्पद जातिगत जनगणना आयोजित करने के लिए अपना समर्थन व्यक्त किया, जिसे भाजपा सरकार टाल रही है और विपक्ष जोर-शोर से मांग कर रहा है. 

रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) के नेता रामदास अठावले ने भी सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले का विरोध किया है.  

अठावले की आरपीआई लंबे समय से एनडीए का हिस्सा रही है. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी क्रीमीलेयर तर्क के जरिए एससी/एसटी समुदायों को विभाजित करने के किसी भी कदम का कड़ा विरोध करती है. 

पीटीआई के हवाले से उन्होंने कहा, ‘एससी/एसटी के लिए आरक्षण जाति पर आधारित है, आरपीआई (अठावले) एससी और एसटी के आरक्षण में क्रीमीलेयर के मानदंड लागू करने के किसी भी कदम का कड़ा विरोध करेगी.’

हालांकि, अठावले ने एससी और एसटी समुदायों को उप-वर्गीकृत करने के अदालत के फैसले का स्वागत किया.