मुख्यधारा की मीडिया के एक बड़े हिस्से ने इधर अयोध्या को अपनी खबरों व चर्चाओं से बाहर का रास्ता दिखा रखा है. इसलिए कि लोकसभा चुनाव में अपने को हिंदुत्व के सर्वथा अभेद्य दुर्ग में बदलने की कितनी ही प्रत्यक्ष परोक्ष कोशिशों को मुंह की खिलाकर वह न सिर्फ भाजपा बल्कि मीडिया के इस हिस्से की भी घोर असुविधा का कारण बन गई है.
अब यह तो सुविदित ही है कि यह मीडिया आमतौर पर भाजपा और उसके ‘महानायक’ नरेंद्र मोदी की सारी असुविधाओं को अपनी असुविधाओं के तौर पर देखता है. ऐसे में स्वाभाविक ही है कि उसने ‘त्रेता की वापसी’ के नाम पर अयोध्या में संचालित हजारों करोड़ रुपयों की परियोजनाओं के पहली ही बारिश में धुल जाने की खबरों (जो भाजपा के निकट कोढ़ में खाज पैदा करने वाली थीं) के बाद से उसकी ओर से सायास मुंह मोड़ लिया है- भले ही वह अभी भी हिंदुत्व के स्वयंभू पैरोकारों द्वारा अंजाम दिए गए कई अजब-गजबों के हवाले है.
‘मुहर्रम मुबारक’ और कॉलेज में टैंक!
इन अजब-गजबों की एक मिसाल पिछले दिनों मुहर्रम के वक्त बनी, जब डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के फेसबुक पेज से उसकी कुलपति प्रोफेसर प्रतिभा गोयल की ओर से मुहर्रम की मुबारकबाद दे डाली गई और लोगों के लिए विश्वास करना कठिन हो गया कि कोई कुलपति ऐसा कर सकती है.
ज्ञातव्य है कि प्रोफेसर गोयल नवंबर, 2022 में अपने पद का कार्यभार ग्रहण करने के वक्त से ही अपनी हिंदुत्ववादी छवि को चमकाने के फेर में रहती आई और अपनी एक किताब को इसका माध्यम बनाती आई हैं. फिर भी लोगों की समझ थी कि वे अपने पद की गरिमा को थोड़ा-बहुत तो बचाकर रखेंगी ही.
बाद में चौतरफा लानत-मलामत के बाद विश्वविद्यालय के फेसबुक पेज से ‘मुहर्रम मुबारक’ वाली पोस्ट हटा दी गई, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और लोग हैरानी जता रहे थे कि पौने दो साल से अवध विश्वविद्यालय की कुलपति होने के बावजूद वे अवध की गंगा-जमुनी तहजीब से इस हद तक अपरिचित हैं कि मुहर्रम पर जब उन्हें गमजदा होना चाहिए था, उन्होंने उसकी मुबारकबाद दे डाली!
बहरहाल, इसकी चर्चा थमी तो अयोध्या के हृदयस्थल में स्थित 74 साल पुराने कामताप्रसाद सुन्दर लाल साकेत पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज (जो कभी डीम्ड यूनिवर्सिटी बनने के सपने देखा करता था) अपने गेट पर टैंक की स्थापना को लेकर चर्चा में आ गया. जानकारों के अनुसार 1965 और 1971 की लड़ाइयों में पाकिस्तान के विरुद्ध इस्तेमाल हुए सोवियत संघ निर्मित ‘भीम’ नामधारी इस टी-55 टैंक को सेना से हटाए जाने के बाद डेढ़ लाख रुपये में खरीदा और चार लाख रुपये खर्च करके अयोध्या लाया गया.
गत 25 जुलाई को कॉलेज के स्थापना दिवस पर आयोजित समारोह में इसे उसके गेट पर ‘स्थापित’ करने आए भाजपा के कुरुक्षेत्र के सांसद, द फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और उद्योगपति नवीन जिंदल ने अपने फाउंडेशन की ओर से कॉलेज को दिया गया 108 फुट ऊंचा तिरंगा भी फहराया और दावा किया कि इससे कॉलेज के छात्र-छात्राओं में ही नहीं अयोध्या आने वाले राम मंदिर के दर्शनार्थियों व पर्यटकों में भी राष्ट्रीयता का जोश व जज्बा उफान मारने लगेगा.
दूसरी ओर कई हलकों में कहा जाने लगा कि शिक्षा के इस केंद्र के गेट पर टैंक के बजाय नोबेल व साहित्य अकादमी जैसे पुरस्कारों से सम्मानित ज्ञान-विज्ञान व साहित्य-कला वगैरह की विभूतियों अथवा उन शख्सियतों की प्रतिमाएं लगाने से छात्र-छात्राओं को कहीं ज्यादा उदात्त प्रेरणा मिलती, जिन्होंने इस कॉलेज के लिए धन या भूमि प्रदान की अथवा किसी और तरह से उसकी स्थापना में सहयोग किया. ज्ञातव्य है कि इस कॉलेज के संस्थापकों में आचार्य नरेंद्र देव और उत्तर प्रदेश विधानसभा के 1948 के बहुचर्चित उपचुनाव में उनको हराने वाले बाबा राघवदास भी शामिल हैं.
इसका जवाब यह कहकर दिया गया कि जब कॉलेज में सैन्य विज्ञान भी पढ़ाया जाता है, तो टैंक स्थापना पर ऐतराज क्यों? इस पर प्रतिप्रश्न पूछा गया कि टैंक को उस विभाग के परिसर में ही क्यों नहीं स्थापित किया गया और सारे विभागों व छात्रों की चेतना पर क्यों थोप दिया गया है- सो भी जब कॉलेज की विभिन्न प्रयोगशालाओं मे उपकरणों, पुस्तकालय में अच्छी पुस्तको और छात्राओं तक के लिए शौचालयों व शुद्ध पेयजल की समुचित व्यवस्था नहीं है?
नवीन जिंदल ने अपने संबोधन में कहा कि उन्हें प्रभु राम की कृपा से अयोध्या आने का सौभाग्य मिला है तो यह जानकर खुश हैं कि इस कॉलेज में शिक्षा ग्रहण कर रहे 18,000 शिक्षार्थियों में 60 प्रतिशत छात्राएं हैं. लेकिन सूत्रों के अनुसार उन्हें इस वस्तुस्थिति का भान नहीं था कि पठन-पाठन के उपयुक्त माहौल के अभाव और कई दूसरी समस्याओं के कारण पिछले कई सालों से कॉलेज की छात्र संख्या गिरती जा रही है. एक समय था, जब क्षमता से कई गुने आवेदनों के कारण कॉलेज लंबी-चौड़ी प्रवेश परीक्षा कराता था, लेकिन अब वह इस कदर दुर्दशा का शिकार है कि मेरिट के आधार पर खुले ऑनलाइन प्रवेश के बावजूद उसके कई कोर्सों की पचास प्रतिशत सीटें भी नहीं भरतीं.
पिछले दिनों विभिन्न योजनाओं के लिए भूमि जुटाने के सरकारी गैरसरकारी ‘अभियानों’ के बीच इस चर्चा ने भी बहुत जोर पकड़ लिया था कि इस कॉलेज को अन्यत्र स्थानांतरित करके इसकी भूमि का कोई और इस्तेमाल किया जायेगा. 22 जनवरी के राम मंदिर के बहुप्रचारित प्राण-प्रतिष्ठा समारोह से पहले इसके लंबे-चौड़े मैदान का हेलीकाप्टरों के उड़ने व उतरने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा था.
जगर-मगर पर ग्रहण
इससे पहले गत 16 जुलाई को जिलाधिकारी नीतीश कुमार (स्थानीय भाजपाइयों का एक धड़ा जिन्हें लोकसभा चुनाव में फैजाबाद लोकसभा सीट से भाजपा की हार को लेकर कोस रहा था) की ऐन विदाई के वक्त रामपथ के डिवाइडर पर फैंसी खंबों में लगाई गई जगर-मगर वाली सजावटी लाइटें उतारी जाने लगीं तो लोगों ने उसे भी कारनामे के तौर पर ही देखा. सर्किट हाउस से सआदतगंज के बीच लोगों ने खंबों से इन लाइटों को नदारद देखकर उसका कारण पता लगाना आरंभ किया तो मालूम हुआ कि उन्हें मरम्मत के लिए ले जाया गया है. इसका मतलब था कि वे एक भी बरसात नहीं झेल पाईं.
समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसे लेकर एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा: अयोध्या में जिस तरह विकास का पैसा छू-मंतर हो गया, वैसे ही बिजली के खंबों से लैम्प-लाइट सब कुछ गायब हो गया है. जनता पूछ रही है कि जब लाइट ही नहीं है तो लाइट के पोल के नाम से भुगतान कैसे हुआ? करोडों कमाकर भाजपाई ठेकेदारों के घर तो रौशन हो गए लेकिन जनता के हिस्से आया सिर्फ अंधेरा. ये भाजपा राज है या अंधेर नगरी.
ठगी और छल!
इसी बीच एक ‘अंधेर’ भी हुआ: जन्मभूमि पथ के निकट स्थित रामपथ के फुटपाथ की रेलिंग का एक हिस्सा रातोंरात काट डाला गया और दूसरे पर एंगल लगवा दिए गए. इसका संदेह पास में ही रेस्टोरेंट बनवा रहे ऊंची पहुंच वाले सज्जन पर गया और कहा गया कि उनके द्वारा खुदाई के लिए जेसीबी ले जाने के लिए ऐसा किया गया है तो अधिकारी देर तक तय करते रहे कि इसे लेकर शिकायत और कार्रवाई का जिम्मा उनमें से किस पर आता है? बाद में यह कहकर गला छुड़ा लिया गया कि उन सज्जन ने अतिक्रमण का अपना गुनाह कुबूल कर लिया है और खुद उसे हटवा रहे हैं.
23 जुलाई को लोकसभा में केंद्रीय बजट पेश हुआ तो अयोध्यावासियों को एक और अंधेर होता हुआ दिखा. वे उत्सुक थे कि देखें, अयोध्या के लिए सरकारी खजाना खोले रखने वाली हिंदुत्ववादी सरकारों के दौर में भाजपा के अयोध्या हार जाने के बाद मोदी सरकार उससे क्या सलूक करती है. वे बहुत निराश हुए जब उन्होंने पाया कि बजट में तो अयोध्या का जिक्र तक नहीं है. उनके पास संतोष का एक ही कारण था कि वित्त मंत्री ने बजट में अयोध्या तो अयोध्या कई राज्यों तक का जिक्र छोड़ दिया है.
इस बाबत पूछे जाने पर भाजपा के स्थानीय नेता उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की उन भारी-भरकम योजनाओं-परियोजनाओं को गिनाते रहे, जिनमें कुछ पूरी हो गई हैं और अन्य पर काम चल रहा है. लेकिन उनके पास इस सवाल का जवाब नहीं था कि केंद्रीय बजट में अयोध्या पर फोकस न होने का कारण क्या उसके मतदाताओं द्वारा भाजपा के खाते में लिखी गई शिकस्त ही नहीं है?
अलबत्ता समाजवादी पार्टी के अयोध्या के पूर्व विधायक तेजनारायण पांडे ‘पवन’ ने इसका जवाब यह कहकर दिया कि इस बजट की मार्फत अयोध्या ठगी एक बार फिर ठगी और छली गई है क्योंकि जो उसे हराने चले थे, उसने उन्हें ही हरा दिया है.
प्रतिरोध और विरोध
दूसरी ओर राम मंदिर के पास स्थित जलवानपुरा में बारिश का पानी निकालने के लिए 35 करोड़ रुपये से बनाई जा रही तीन किलोमीटर लंबी पाइप लाइन का ट्रायल शुरू होते ही वह ओवरफ्लो करने लगी तो वहां के निवासी प्रदर्शन पर उतर आए. उन की मानें, तो अयोध्या विकास प्राधिकरण ने समुचित सर्वे व ले-आउट के बगैर इस पाइपलाइन पर काम शुरू करा दिया-इससे अ ने के बावजूद कि पंप हाउस बनाए बगैर इस पाइप लाइन का कोई मतलब नहीं है और जिस भूमि पर पंप हाउस बनना प्रस्तावित है, वह अदालती पचड़े में फंसी है ओर उसके स्वामी को अपने पक्ष में स्थगनादेश हासिल है.
इसके बरक्स अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन के विकास का दूसरे फेज का काम इसलिए अटक गया है कि उससे प्रभावित भूस्वामी अयोध्याधाम विकास समिति के बैनर पर प्रोजेक्ट में संशोधन की मांग करते हुए उसके विरोध पर उतर आए और स्वेच्छा से अपनी जमीनें देने से इनकार कर रहे हैं.
अंत में
हां, आजकल अयोध्या में आम लोग और पत्रकार दोनों बहुत अचंभित होकर पूछ रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार के बाद से इन पंक्तियों के लिखे जाने तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या क्यों नहीं आए हैं, जबकि पहले वे प्रायः उसकी परिक्रमा किया करते थे.
कई हलकों में पूछा जा रहा है कि क्या यह अयोध्या से उनके मोहभंग का लक्षण है? अगर हां तो सपा विधायक अवधेश प्रसाद के अयोध्या के सांसद निर्वाचित होने से रिक्त मिल्कीपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में भाजपा की रणनीति व रवैये पर इसका असर क्या होगा?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)