नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने शनिवार (3 अगस्त) को कहा कि भारत में राज्यपाल ऐसी भूमिका निभा रहे हैं, जो उन्हें नहीं निभानी चाहिए. जस्टिस नागरत्ना की टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब केरल और तमिलनाडु जैसे राज्य और उनके राज्यपालों के बीच मतभेद आए दिन सामने आ रहे हैं. अधिकार क्षेत्र से जुड़े कई मामले तो सुप्रीम कोर्ट में चल रहे हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बेंगलुरु में ‘होम इन द नेशन: इंडियन विमेंस कॉन्स्टीट्यूशनल इमेजिनेशंस’ विषय पर एनएलएसआईयू पैक्ट कॉन्फ्रेंस में समापन भाषण देते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कहा, ‘…दुर्भाग्य से आज के समय भारत में कुछ राज्यपाल ऐसी भूमिका निभा रहे हैं, जो उन्हें नहीं निभानी चाहिए. उन्हें जहां सक्रिय होना चाहिए, वहां निष्क्रिय नजर आते हैं. सुप्रीम कोर्ट में राज्यपालों के विरुद्ध मामले भारत में राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति की एक दुखद कहानी कहते हैं.’
राज्यपाल की निष्पक्षता के विषय पर वकील और सामाजिक कार्यकर्ता दुर्गाबाई देशमुख का हवाला देते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कहा, ‘राज्यपाल से कुछ कार्यों का निर्वहन किए जाने की अपेक्षा की जाती है. हम संविधान में राज्यपाल की भूमिका इसलिए चाहते हैं ताकि समझ और सद्भाव का तत्व बना रहे. यदि राज्यपाल वास्तव में अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत रहकर कार्य करते हैं तो इससे परस्पर विरोधी समूहों के बीच समझ और सामंजस्य स्थापित होगा. शासन का विचार राज्यपाल को दलगत राजनीति से ऊपर, गुटों से ऊपर रखना है न कि उसे पार्टी मामलों के अधीन करना है.’
सुप्रीम कोर्ट की जज की टिप्पणी ऐसे वक्त में भी आई है जब कर्नाटक के राज्यपाल थावर चंद गहलोत और राज्य में कांग्रेस सरकार के बीच कथित एमयूडीए (मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण) साइट आवंटन घोटाले को लेकर तनातनी चल रही है. घोटाले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती का नाम सामने आया है. गहलोत ने पिछले सप्ताह सिद्धारमैया को कारण बताओ नोटिस जारी किया था. कर्नाटक सरकार ने गुरुवार को एक प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल को नोटिस वापस लेने की सलाह दी थी.
बंधुत्व के आदर्श को हासिल करने की आवश्यकता- नागरत्ना
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि भारतीय संवैधानिकता को मजबूत करने के लिए राष्ट्र को ‘संघवाद, भाईचारे, मौलिक अधिकारों और सैद्धांतिक शासन’ पर जोर देना चाहिए. केंद्र और विपक्ष शासित राज्यों के बीच बढ़ते टकराव के बारे में जस्टिस नागरत्ना ने रेखांकित किया कि राज्यों को अक्षम या अधीनस्थ नहीं माना जाना चाहिए.
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में वर्णित चार आदर्शों में बंधुत्व का सबसे कम अभ्यास हुआ है. बंधुत्व के आदर्श को प्राप्त करने की खोज प्रत्येक नागरिक द्वारा संविधान के अनुच्छेद 51(ए) के तहत उल्लिखित मौलिक कर्तव्यों की स्वीकृति के साथ शुरू होनी चाहिए.
बता दें कि जस्टिस नागरत्ना साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट में जज बनी थीं. वह कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रही हैं. सितंबर 2027 में वह भारत की मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) भी बन सकती हैं.