चीनी निवेश बढ़ाने पर आर्थिक सर्वेक्षण के सुझाव: संभावनाएं और चुनौतियां

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में चीन से आयात बढ़ाने और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने पर जोर दिया गया है. हालांकि, केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि आर्थिक सर्वेक्षण सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं है.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स)

नई दिल्ली: हाल ही में जारी आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में कहा गया है कि चीन से आयात बढ़ाए बिना भारत के लिए वस्तुओं की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में खुद को शामिल करना मुश्किल होगा. यह कहता है कि चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति देने से पश्चिमी देशों में भारत के निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है.

किन क्षेत्रों में चीनी निवेश की आवश्यकता है?

इस विषय पर अधिकारियों का कहना है कि चीन के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रति भारत को संभल कर विचार करना चाहिए. वह इलेक्ट्रिक वाहनों और बैटरी के निर्माण जैसी उच्च तकनीक, जो अन्य देशों में उपलब्ध नहीं हैं, से जुड़े क्षेत्रों में चीनी एफडीआई के आवेदनों पर विचार कर सकता है. चीनी निवेश को उन क्षेत्रों में आकर्षित किया जा सकता है जहां भारत के पास कोई विकल्प नहीं है या जहां चीनी कंपनियों के पास विशेषज्ञता और कौशल उपलब्ध है, या वे क्षेत्र जहां भारत को अपनी विनिर्माण क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता है.

कुछ रोज पहले मुख्य आर्थिक सलाहकार अनंत नागेश्वरन ने भी अपने मीडिया संबोधन में कहा था कि भारत अपनी विनिर्माण क्षमता में सुधार करना चाहता है, इसलिए उसे पूंजीगत वस्तुओं का आयात बढ़ाना होगा और चीन के पूंजीगत वस्तु विनिर्माण क्षेत्र के आधार को देखते हुए हमारे पास उस पर निर्भर रहने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है.

वर्ष 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच टकराव के बाद दोनों देशों के आर्थिक संबंधों में खटास आ गई थी. भारत सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए चीनी निवेश पर सख्त नियम लागू कर दिए थे. इसके बावजूद भी वित्त वर्ष 2024 में चीन, अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए भारत का शीर्ष व्यापारिक साझेदार बनकर उभरा, जो दोनों देशों के बीच भविष्य के लिए बेहतर आर्थिक संबंधों की उम्मीद जगाता है.

भारत का चीन के साथ बढ़ता व्यापारिक घाटा

चीन 2023-24 में 118.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर (11,840 करोड़ अमेरिकी डॉलर) के दोतरफा व्यापार के साथ भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बनकर उभरा, और अमेरिका से आगे निकल गया. चीन को भारत का निर्यात 8.7 प्रतिशत बढ़कर 16.67 बिलियन अमेरिकी डॉलर (1,667 करोड़ अमेरिकी डॉलर)  हो गया, जबकि भारत ने पड़ोसी देश से 101.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आयात किया, जो पिछले वित्तीय वर्ष की अपेक्षा 3.24 प्रतिशत अधिक था. इस तरह भारत का चीन के साथ व्यापारिक घाटा बढ़कर 85 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो कि पिछले वित्तीय वर्ष 2022-23 में 83.2 बिलियन डॉलर था.

केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि वित्त वर्ष 2013-14 से 2017-18 तक और 2020-21 में भी चीन भारत का शीर्ष व्यापारिक साझेदार था. हालांकि, गलवान घाटी में संघर्ष के बाद 2021-22 और 2022-23 में अमेरिका सबसे बड़ा साझेदार बनकर उभरा.

एफडीआई निवेश की बात करें तो चीन, भारत में हुए कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में केवल 0.37 प्रतिशत (2.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) हिस्सेदारी के साथ 22वें स्थान पर है.

भारत ने वित्त वर्ष 2023 में चीन को 4,455 वस्तुओं का निर्यात किया, जबकि 7,481 वस्तुओं का आयात किया. चीन से सर्वाधिक आयात की जाने वालीं प्रमुख वस्तुओं में विद्युत मशीनरी और उपकरणों की हिस्सेदारी सबसे अधिक थी. इसके बाद परमाणु रिएक्टर और उसके पुर्जे, कार्बनिक रसायन, प्लास्टिक और वस्तुएं तथा उर्वरक आदि शामिल रहे.

आर्थिक संबंधों की बहाली में अड़चनें

बीते हफ्ते केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि भारत चीन के एफडीआई पर पुनर्विचार नहीं कर रहा है. उन्होंने कहा कि आर्थिक सर्वेक्षण सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं है और देश में चीनी निवेश को समर्थन देने का कोई विचार नहीं है.

2020 में भारत सरकार ने देश के साथ जमीनी सीमा साझा करने वाले देशों से एफडीआई के लिए अपनी मंजूरी अनिवार्य कर दी थी. भारत के साथ जमीनी सीमा साझा करने वाले देश चीन, बांग्लादेश, पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, म्यांमार और अफगानिस्तान हैं.

गलवान झड़प के बाद चीनी निवेश को लेकर बरती गई सख्ती से चीनी कंपनियों की निवेश करने की मंशा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा था. उल्लेखनीय है कि भारतीय लोगों के बीच चीन नापसंद किए जाने वाले देशों की सूची में शुमार शीर्ष देशों में से एक है. बीते वर्ष प्यू रिसर्च सेंटर के एक सर्वेक्षण में सामने आया था कि दो तिहाई से अधिक (67%) भारतीय चीन के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं.

भारतीय उपमहाद्वीप में चीन की साम्राज्यवादी नीति भी दोनों देशों के बीच एक शीतयुद्ध की स्थिति बनाए रखती है. ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना हो या भारत के पड़ोसी देशों के साथ चीन की बढ़ती नजदीकियां, ये सभी दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक परिदृश्य को जटिल बनाती हैं.

भारतीय उद्योग जगत की चीन से उम्मीद

चीन विनिर्माण क्षेत्र का दिग्गज है और लगभग पूरी दुनिया सोलर पैनल से लेकर रसायनों तक चीन में निर्मित उत्पादों पर निर्भर करती है. महत्वपूर्ण और दुर्लभ खनिजों के उत्पादन और प्रसंस्करण पर भी चीन का लगभग एकाधिकार है, जो भारत के अक्षय ऊर्जा उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है. इलेक्ट्रोनिक्स क्षेत्र में भी चीनी कंपनियां सबसे आगे हैं.  इसी कारण आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि ‘भारतीय विनिर्माण को बढ़ावा देने और भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला से जोड़ने के लिए भारत खुद को चीन की आपूर्ति श्रृंखला से जोड़े.’

कई शीर्ष भारतीय समूहों को चीनी कंपनियों के साथ साझेदारी की आवश्यकता है. अडानी अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में भारी निवेश कर रहे हैं, लेकिन सोलर पैनल के लिए चीन पर ही उनकी निर्भरता है क्योंकि इनका दुनिया भर में सबसे सस्ता निर्माण चीन में ही होता है. रिलायंस भी अक्षय ऊर्जा में निवेश को तैयार है. जेएसडब्ल्यू बैटरी बनाने वाले प्लांट की योजना में है, जिसके लिए उसे भी चीनी भागीदारी की जरूरत होगी.

भारत में कार्यरत विदेशी कंपनियों ने भी सरकार से चीनी कलपुर्जों की जरूरत पर दिया है. डेंटन्स लिंक लीगल के पार्टनर संतोष पाई कहते हैं, ‘पश्चिमी देशों की कंपनियां भारत से कह रही हैं कि यदि आप वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को आकर्षित करना चाहते हैं तो आप चीनी भागीदारी पर अपना रुख स्पष्ट किए बिना हमसे अधिक निवेश की उम्मीद नहीं कर सकते.’

क्यों भारतीय कंपनियां चीनी विशेषज्ञों के लिए वीजा जारी करने का दबाव डाल रही हैं?

कई भारतीय कंपनियों को अपने संयंत्र के सुचारू संचालन के लिए चीन के तकनीकी विशेषज्ञों की जरूरत है. मसलन, अडानी अपने सौर संयंत्रों के लिए चीनी श्रमिकों के लिए वीजा चाहते हैं.

फुटवियर, टेक्सटाइल, इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि उद्योगों में चीनी मशीनों से काम हो रहा है, लेकिन चीनी तकनीकी विशेषज्ञों की मदद के बिना मशीनों की उत्पादकता का सही इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है. इससे निर्यात भी प्रभावित हो रहा है. इसलिए उद्योग संघ चीनी नागरिकों को वीजा देने में रियायत बरतने की मांग कर रहे हैं.

2019 में चीनी नागरिकों को 2,00,000 वीज़ा मिले, लेकिन 2023 में यह संख्या महज 2,000 रह गई.

उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग के सचिव ने भी हाल ही में भारतीय कंपनियों के इस दावे को स्वीकार किया कि चीनी और भारतीय श्रमिकों की उत्पादकता में बड़ा अंतर है, साथ ही चीन के पेशेवर कर्मी अधिक उत्पादक हैं. भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात संवर्धन परिषद के अध्यक्ष भी चीनी विशेषज्ञों के लिए अधिक वीज़ा चाहते हैं.

लेकिन क्या भारत-चीन के सामरिक और कूटनीतिक संबंध सुलझे बगैर, सीमा विवाद का हल निकले बगैर आर्थिक संबंध सुधर सकते हैं? इस प्रश्न का उत्तर आगामी क़िस्त में.