नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर की तरह ही लद्दाख को भी केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील हुए पांच साल हो गए हैं. शुरुआती जश्न के बाद लद्दाख में लगातार असंतोष देखने को मिला है. वहां के लोग और नेता विभिन्न आशंकाओं से घिरे हुए हैं. रविवार (4 जुलाई) को लद्दाख के सांसद मोहम्मद हनीफा ने अंग्रेजी अखबार ‘द हिंदू’ को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश में बदले पांच साल हो गए हैं लेकिन तब से अब तक एक भी राजपत्रित पद के लिए भर्ती पूरी नहीं हुई है.
लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार को हराने वाले निर्दलीय हनीफा ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश में शिक्षित युवा पिछले पांच वर्षों में सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं, क्योंकि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए के तहत प्रदान किए गए संवैधानिक सुरक्षा उपाय अब मौजूद नहीं हैं.
बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा 5 अगस्त, 2019 को संसद द्वारा रद्द कर दिया गया था इसके साथ ही संसद द्वारा पारित जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन विधेयक (2019) से राज्य को दो नए केंद्र शासित प्रदेशों, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, में विभाजित कर दिया गया था.
नौकरी, संस्कृति और ज़मीन की सुरक्षा
लद्दाख में शुरुआती उत्साह के बाद स्थानीय निवासियों ने सड़कों पर उतरकर मांग रखी कि उनकी संस्कृति, पहचान, जमीन और नौकरियों को बाहरी लोगों से बचाया जाए. वर्ष 2020 में दो अलग-अलग क्षेत्रों के दो प्रभावशाली सिविल सोसाइटी समूह लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) और करगिल डेमोक्रेटिक एलायंस (केडीए) राज्य का दर्जा देने के साथ-साथ लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर एक साथ आए.
यह अनुसूची आदिवासी क्षेत्रों की सुरक्षा से संबंधित है. उन्होंने लद्दाख के लिए दो लोकसभा सीटों और एक राज्यसभा सीट के माध्यम से अधिक संसदीय प्रतिनिधित्व और स्थानीय निवासियों के लिए नौकरी में आरक्षण की भी मांग की.
मोहम्मद हनीफा ने कहा, ‘अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद लद्दाख में लोक सेवा आयोग का अस्तित्व समाप्त हो गया. इसके चलते कोई भर्ती नहीं हुई है. ग्रेजुएशन और पोस्टग्रेजुएशन कर चुके युवा निराश हैं. नौकरी में उम्मीदवारों को आयु मानदंड में छूट दी जानी चाहिए. पिछली बार एचपीसी (उच्चाधिकार समिति) ने हमें आश्वासन दिया था कि अरुणाचल प्रदेश की तर्ज पर स्थानीय लोगों को 80 फीसदी आरक्षण दिया जा सकता है. नौकरियों के लिए लद्दाख निवासी प्रमाणपत्र (एलआरसी) अनिवार्य होना चाहिए, लेकिन सरकार की ओर से अब तक कोई स्पष्टता नहीं मिली है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘लद्दाख विश्वविद्यालय ने पिछले साल नौकरियों के लिए विज्ञापन दिया था, जिसमें एलआरसी अनिवार्य नहीं था. अनुसूचित जनजाति कोटा जम्मू-कश्मीर के निवासियों के लिए भी खुला रखा गया था, जबकि जम्मू-कश्मीर में कोटा के तहत नौकरियों में लद्दाख के लोग आवेदन नहीं कर सकते हैं. लोग खुश नहीं हैं. एक मेडिकल कॉलेज और एक इंजीनियरिंग कॉलेज की घोषणा की गई, पार्षदों द्वारा भूमि की पहचान की गई, लेकिन उसे लेकर भी कोई सुगबुगाहट नहीं है.’
बता दें कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय की अध्यक्षता में उच्चाधिकार समिति (एचपीसी) का गठन जनवरी 2023 में किया गया था. इसके अलावा सिविल सोसाइटी समूह के सदस्यों ने 4 मार्च को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी, लेकिन उनका कहा था कि ‘बैठक का कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला.’ उसके बाद से कोई बैठक नहीं हुई है.
‘संस्कृति खतरे में’
हनीफा ने कहा, ‘लद्दाखवासी चाहते हैं कि लद्दाख पर लद्दाखियों का शासन हो. हर क्षेत्र की अपनी अनूठी संस्कृति होती है; लद्दाख की वह संस्कृति खतरे में है. लद्दाख की आबादी लगभग चार लाख है; अगर बाहर से एक लाख लोग भी यहां आकर बस जाते हैं तो हमारी संस्कृति खतरे में पड़ जाएगी.’
हनीफा ने कहा कि केडीए और एलएबी जल्द ही एक बैठक बुलाएंगे, क्योंकि सिविल सोसाइटी समूहों का नेतृत्व सरकार के साथ बातचीत के माध्यम से समाधान तक पहुंचना चाहता है. उन्होंने कहा, ‘हम चाहते हैं कि सरकार के साथ बातचीत बहाल हो. आगे का कोई रास्ता होना चाहिए. इस तरह के आंदोलन लद्दाखियों या देश के लिए अच्छे नहीं हैं.’