जम्मू कश्मीर में 5 साल में आर्थिक वृद्धि गिरी; कर्ज़, बेरोजगारी, आत्महत्या में इज़ाफ़ा- रिपोर्ट

'द फोरम फॉर ह्यूमन राइट्स इन जम्मू एंड कश्मीर'की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि अप्रैल 2015 से मार्च 2019 के बीच जम्मू कश्मीर के नेट स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट (एनएसडीपी) में 13.28% की वार्षिक वृद्धि हुई थी. 2019 में इसके केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद यह वृद्धि घटकर 8.73% रह गई है.

श्रीनगर के एक दुकानदार की तस्वीर. (फोटो साभार: फ्लिकर)

नई दिल्ली: एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा साल 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने और तत्कालीन राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद जम्मू और कश्मीर की अर्थव्यवस्था पिछड़ गई है.

‘द फोरम फॉर ह्यूमन राइट्स इन जम्मू एंड कश्मीर’ की वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया है कि अप्रैल 2015 और मार्च 2019 के बीच जम्मू-कश्मीर के नेट स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट (एनएसडीपी) में 13.28% की वार्षिक वृद्धि हुई थी. 2019 में जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद यह वृद्धि घटकर 8.73% हो गई है.

एनएसडीपी एक राज्य के आर्थिक स्वास्थ्य का एक प्रमुख संकेतक है. ‘द फोरम फॉर ह्यूमन राइट्स इन जम्मू एंड कश्मीर’ में कहा गया है कि ‘अप्रैल 2015 और मार्च 2019 के बीच प्रति व्यक्ति एनएसडीपी वृद्धि दर 12.31% थी, लेकिन अप्रैल 2019 से मार्च 2024 के बीच यह 8.41% रह गई.’ जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था अभी तक अपने पुराने स्तर (2019 के पहले) पर नहीं पहुंच पाई है.

जम्मू-कश्मीर पर बढ़ा कर्ज़

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का का कर्ज 2022-23 में बढ़कर 1,12,797 करोड़ रुपये हो गया है. भाजपा के केंद्र में आने के एक दशक में जम्मू-कश्मीर की देनदारियां तीन गुना हो गई हैं. हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि जब तक भाजपा केंद्र में है, जम्मू-कश्मीर के लिए धन की कमी नहीं होगी.

फोरम के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी राष्ट्रीय औसत से अधिक है. अप्रैल 2023 से मार्च 2024 के बीच सभी उम्र के युवाओं में बेरोजगारी का राष्ट्रीय औसत 6.6% था. लेकिन, इसी अवधि में जम्मू-कश्मीर में यह आंकड़ा 10.7% था. रिपोर्ट में कहा गया है कि आत्महत्या की दर 2020 में 2.10 प्रति 1,00,000 से बढ़कर 2023-2024 में 2.40 हो गई है.

‘द फोरम फॉर ह्यूमन राइट्स इन जम्मू एंड कश्मीर’ की रिपोर्ट को पूर्व केंद्रीय गृह सचिव गोपाल पिल्लई और पूर्व कश्मीर वार्ताकार राधा कुमार के नेतृत्व में प्रमुख नागरिकों के एक अनौपचारिक मंच द्वारा तैयार किया गया है. इस मंच की स्थापना 2019 में जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों की स्थिति की निगरानी के लिए की गई थी, जब राज्य से उसका विशेष दर्जा छीन लिया गया था.

फोरम ने कहा कि जम्मू-कश्मीर 2019 में केंद्र सरकार के अधीन जाने से पहले आर्थिक रूप से अच्छा कर रहा था, जबकि उस अवधि में 2016-2017 (बुरहान वानी आंदोलन के बाद का माहौल) और 2019 (अनुच्छेद 370 की शक्ति खत्म करने) जैसे ‘नुकसान के वर्ष’ भी थे.

विधानसभा चुनाव को और टाल सकती है केंद्र

जम्मू-कश्मीर में मौजूदा राजनीतिक अनिश्चितता के बीच, रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसी आशंका है कि केंद्र सरकार जम्मू में आतंकवादी हमलों में वृद्धि का इस्तेमाल विधानसभा चुनाव के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 30 सितंबर की समय सीमा को बढ़ाने के लिए कर सकती है.

फोरम ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस तरह का कोई भी कदम ठीक नहीं होगा, इससे अलगाव को बढ़ावा मिलेगा. फोरम ने ‘सभी उम्मीदवारों को समान अवसर’ प्रदान करने और जम्मू-कश्मीर में तत्काल विधानसभा चुनाव के लिए ‘स्वतंत्र चुनाव पर्यवेक्षक’ के गठन की सिफारिश की है.

रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई गई है कि निर्वाचित सरकार को कमजोर करने के लिए विधानसभा चुनाव से पहले ही उपराज्यपाल की शक्ति बढ़ाई गई है. बता दें कि इस 12 जुलाई को केंद्र सरकार ने एक कार्यकारी अधिसूचना के माध्यम से जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल की शक्तियों का दायरा बढ़ा दिया है, जिसके बाद से उपराज्यपाल ही ऑल इंडिया सर्विस कैडर, जम्मू-कश्मीर पुलिस और केंद्र शासित प्रदेश में वरिष्ठ नौकरशाही के अलावा अन्य महत्वपूर्ण विभागों के कामकाज में अंतिम निर्णय लेंगे.

इस बदलाव पर रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अब तक यह माना जाता था कि जम्मू कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल करने का मतलब पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करना था. नए नियमों से पता चलता है कि केंद्र सरकार इसके बजाय दिल्ली की तरह हाइब्रिड शासन पर विचार कर रही है.’

रिपोर्ट में सरकार से जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने की समय सीमा बताने का आग्रह करते हुए पूछा है, ‘क्या नए नियमों को संवैधानिक संशोधन के बजाय एक साधारण क़ानून द्वारा जारी किया जा सकता है?’

केंद्र की नीति से कश्मीरी किसानों को नुकसान

फोरम ने यह भी कहा कि अखरोट और सेब पर आयात शुल्क में केंद्रीय वित्त मंत्रालय की 20% कटौती ने कश्मीरी किसानों को बुरी तरह प्रभावित किया. कश्मीरी किसान चीन, तुर्की और अमेरिका से कम कीमत वाले अखरोट की किस्मों के साथ मुकाबला करने में जूझ रहे हैं.

मंत्रालय द्वारा अमेरिकी सेब पर आयात शुल्क को 70% से घटाकर 50% करने से सेब उत्पादकों के लिए एक और झटका लगा है. ईरानी केसर के कर-मुक्त आयात के कारण कश्मीरी केसर को भी नुकसान हुआ है, जिससे कश्मीरी केसर उत्पादन में बड़ी कमी आई है.

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