मध्य प्रदेश: 43 बाघों की मौत को एसआईटी ने अधिकारियों की उदासीनता, लापरवाही का नतीजा बताया

वर्ष 2021 से 2023 के बीच मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व और शहडोल वन मंडल में 43 बाघों की मौत की जांच कर रहे विशेष जांच दल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उच्च अधिकारियों और वन रेंज अधिकारियों ने अपने कर्तव्यों के निर्वहन में रूचि नहीं दिखाई, 17 मामलों में विस्तृत जांच के बिना ही बाघों की मौत को आपसी लड़ाई का नतीजा बता दिया.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: विकिपीडिया)

नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व (बीटीआर) और शहडोल वन मंडल (एसएफसी) में 2021 से 2023 के बीच हुईं 43 बाघों की मौत की जांच कर रहे विशेष जांच दल (एसआईटी) ने अपनी रिपोर्ट में संभावित शिकार के मामलों में अपर्याप्त जांच, पोस्टमॉर्टम के दौरान चूक, और चिकित्सीय लापरवाही के कारण मौतों की बात कही है.

इस दौरान, बीटीआर में 34 और एसएफसी में 9 बाघों की मौत हुई थी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य टाइगर स्ट्राइक फोर्स के प्रभारी रितेश सरोठिया की अध्यक्षता वाली एसआईटी ने 14 मई को कार्यवाहक प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) और 15 जुलाई को प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख (पीसीसीएफ-एचओएफएफ) को अपनी रिपोर्ट सौंपी.

रिपोर्ट के अनुसार, बाघों की मौत के कम से कम 10 मामलों में अपर्याप्त जांच की गई. रिपोर्ट में कहा गया है कि उच्च अधिकारियों और वन रेंज अधिकारियों द्वारा अपने कर्तव्यों के निर्वहन में रूचि नहीं दिखाई गई, जिसके परिणामस्वरूप ऐसे पांच मामलों में से केवल दो में ही गिरफ़्तारी हुई जिनमें मौत के अप्राकृतिक कारण पाए गए या शरीर के अंग जब्त किए गए.

रिपोर्ट में बाघ के शवों से गायब शरीर के अंगों (34 मामलों में से 10) को बरामद करने में अधिकारियों द्वारा रुचि न दिखाए जाने की बात कही गई है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि कई मामलों में जहां बाघ बिजली के झटके के कारण मृत पाए गए, उनकी जांच में मोबाइल फोरेंसिक, सीडीआर, इलेक्ट्रिक ट्रिप डेटा जैसे विभिन्न महत्वपूर्ण साक्ष्यों का अभाव था.

इसमें यह भी कहा गया है कि 17 मामलों में विस्तृत जांच के बिना बाघों की मौत को आपसी लड़ाई का नतीजा बताने की प्रवृत्ति देखी गई. एसआईटी का गठन राज्य के मुख्य वन्यजीव संरक्षक के आदेश पर दोनों क्षेत्रों में बाघों की बड़ी संख्या में मौतों की जांच के लिए किया गया था.

राज्य में अवैध शिकार के मामलों पर याचिका दायर करने वाले प्रसिद्ध वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दुबे ने अखबार को बताया कि वह इस रिपोर्ट के साथ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे. उन्होंने कहा, ‘अदालत को दिए गए अपने जवाब में राज्य सरकार ने दावा किया है कि अवैध शिकार के मामले नियंत्रण में हैं. लेकिन यह रिपोर्ट उच्च अधिकारियों द्वारा की गई कई अनियमितताओं पर प्रकाश डालती है.’

कार्यवाहक पीसीसीएफ शुभरंजन सेन ने कहा कि विभाग के कामकाज में ‘कुछ कमियां’ हैं. उन्होंने कहा, ‘लेकिन, रिपोर्ट इस तथ्य की ओर भी इशारा करती है कि इन जंगलों में कोई संगठित गिरोह काम नहीं कर रहा है. हम कर्मचारियों की कमी का सामना कर रहे हैं. बीटीआर में, उप निदेशक का पद अभी भी खाली है और अन्य अधिकारी दोहरी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. एनटीसीए (राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण, सर्वोच्च बाघ संरक्षण निकाय) की एक टीम ने हमें सुझाव दिए हैं और हम उन पर काम कर रहे हैं.’

एसआईटी के अनुसार, पशु चिकित्सा अधिकारी/वन्यजीव स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा बाघों के शवों के नमूनों के संग्रह तक का काम नहीं किया गया. बाघों की मौत की कई घटनाओं की केस डायरी और दस्तावेज ढंग से तैयार नहीं किए गए.’

रिपोर्ट में कहा गया है कि पशुपालन विभाग के ऐसे पशु चिकित्सकों द्वारा पोस्टमार्टम किया गया था, जिन्हें ‘जंगली जानवरों का पीएम करने’ का पिछला कोई अनुभव नहीं था.