नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके सहयोगी गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) के बीच दरार देखने को मिल रही है. सोमवार (5 अगस्त) से जीएनएलएफ ने दार्जिलिंग पहाड़ी क्षेत्र के मुददों की अनदेखी को लेकर भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के खिलाफ विरोध की आवाज़ बुलंद करते हुए पहाड़ी क्षेत्र में काले झंडे लगाने शुरू कर दिए हैं.
द टेलीग्राफ की खबर के मुताबिक, जीएनएलएफ की दार्जिलिंग शाखा के अध्यक्ष एमजी सुब्बा ने बताया कि केंद्र सरकार दार्जिलिंग की पहाड़ियों पर रहने वाले समुहों के मुद्दों का समाधान करने में विफल रही है, जिसके चलते अब पहाड़ी के लोग काले झंडे लगाकर अपना विरोध दर्ज करवा रहे हैं.
सुब्बा ने आगे कहा कि अब समय आ गया है कि केंद्र सरकार अपने वादे को पूरा करे. इसके लिए जीएनएलएफ श्रृंखलाबद्ध तरीके से आयोजन करते हुए अपना विरोध जारी रखेगा.
बता दें कि भाजपा ने अपने 2019 के लोकसभा चुनावों के घोषणापत्र में दार्जिलिंग के पहाड़ी क्षेत्र के लिए स्थायी राजनीतिक समाधान और 11 गोरखा समुदायों को आदिवासी समुदाय का दर्जा देने का वादा किया था.
हालांकि, तब पार्टी ने कोई स्थायी राजनीतिक समाधान परिभाषित नहीं किया था, लेकिन पहाड़ियों में अधिकांश लोग इसकी व्याख्या गोरखालैंड राज्य के तौर पर करते हैं.
दार्जिलिंग लोकसभा सीट 2009 से भाजपा जीत रही है. हालांकि, जीएनएलएफ 2019 से ही भाजपा का समर्थन कर रहा है.
दार्जिलिंग विधायक नीरज जिंबा ने सोमवार को दार्जिलिंग पहाड़ी क्षेत्र को बंगाल से ‘अलग’ करने की आवश्यकता पर बात की थी. ध्यान रहे कि जिंबा एक जीएनएलएफ नेता हैं, जिन्होंने भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा था.
हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों के दौरान जीएनएलएफ और जिंबा ने भाजपा उम्मीदवार राजू बिस्ता के लिए सक्रिय रूप से प्रचार किया था.
जीएनएलएफ नेता सुब्बा ने कहा, ‘राजू बिस्ता ने गिरगिट की तरह अपना रंग बदल लिया है. हमने इस उम्मीद के साथ राजू बिस्ता का समर्थन किया था कि वह एक पुल के रूप में काम करेंगे और हमारे मुद्दों को उठाएंगे, लेकिन अब वह हमारे मुद्दों पर काम करने के बजाय अपनी पार्टी के विस्तार में अधिक रुचि रखते हैं.
इस संबंध ने बिस्ता ने कहा कि उनके पास किसी दूसरी पार्टी की गतिविधि पर टिप्पणी करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है.
गौरतलब है कि बीते साढ़े पांच वर्षों के दौरान बिस्ता ने संसद में पीपीएस और आदिवासी दर्जे का मुद्दा बार-बार उठाया है, लेकिन ये बात और है कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने इस पर ध्यान कभी नहीं दिया.