विनेश फोगाट राष्ट्रीय धरोहर हैं, उनका जीवन महाकाव्य

दिल्ली के जंतर मंतर पर बिताई भीषण गर्मियों की रातों से लेकर पेरिस के स्वर्ण मेडल मुकाबले तक की उनकी यात्रा राष्ट्रीय इतिहास का दमकता पन्ना है. उनकी कथा हमारा सामूहिक स्वप्न है. उनकी इस यात्रा के साक्षी बरसों बाद अपनी आगामी पीढ़ियों को बताया करेंगे कि वे विनेश फोगाट के समकालीन थे.

पहलवान विनेश फोगाट. (फोटो साभार: फेसबुक/@phogat.vinesh)

नई दिल्ली: यह खेल के मंच पर राजनीतिक विजय है. पेरिस का स्टेडियम उस रणभूमि का रूपक है जिसे विनेश फोगाट भारत में अधूरा छोड़ आई थीं. भारत की लड़ाई पेरिस में जीती जानी थी. इसलिए भले ही इसका मलाल रहेगा कि विनेश फोगाट को स्वर्ण पदक के मैच से पहले अयोग्य घोषित कर दिया गया, लेकिन यह उनकी विराट जिजीविषा और हिमालय-सी उपलब्धि को रत्ती भर कमतर नहीं करता.

विनेश फोगाट को किसी को कुछ और साबित करने की जरूरत नहीं है, न ओलंपिक संघ को- और अपने देश को तो एकदम नहीं.

दिल्ली के जंतर मंतर पर बिताई भीषण गर्मियों की रातों से लेकर पेरिस के स्वर्ण मेडल मुकाबले तक की उनकी यात्रा राष्ट्रीय इतिहास का दमकता पन्ना है. उनकी कथा हमारा सामूहिक स्वप्न है. उनका हासिल हमारा राजनीतिक आलंबन है. उनकी यात्रा के साक्षी बरसों बाद अपनी आगामी पीढ़ियों को गर्व से बताया करेंगे कि वे विनेश फोगाट के समकालीन थे.

विनेश फोगाट का जीवन राष्ट्रीय महाकाव्य है.

खेल के मैदान पर विजय के पीछे अक्सर कोई बड़ा घाव टीस मारता है. जब हंगरी की वाटर पोलो टीम 1956 के ओलंपिक में सोवियत संघ का मुकाबला करने उतरी, उसके भीतर वह जख्म एकदम हरा था जब रूसी टैंकों ने कुछ ही महीने पहले बुदापेस्त पर चढ़ाई कर दी थी.

जब 1969 में चेकोस्लोवाकिया की टीम आइस हॉकी विश्व चैंपियनशिप के मैच में सोवियत संघ के सामने आई, उसके खिलाड़ी यह अपमान नहीं भूले थे कि रूसी सेना ने प्राग पर हमला कर दिया था.

इन दोनों ही अवसरों पर कद्दावर सोवियत संघ को उन देशों ने करारी शिकस्त दी थी, जिनकी भूमि पर उसने आधिपत्य जमाया था.

साथ ही याद करें, फुटबॉल के इतिहास दो महानतम गोल उस मैच में हुए थे जब मेराडोना एक कसकते घाव को लिए इंग्लैंड के खिलाफ़ 1982 के विश्व कप मैच में उतरे थे- हाल ही अर्जेंटीना की रणभूमि में इंग्लैंड के हाथों शर्मनाक पराजय हुई थी.

विनेश की यात्रा इसी इतिहास का एक नया अध्याय है.

हरियाणा के बलाली गांव की विनेश पेरिस ओलंपिक के फाइनल में अपने ऐतिहासिक कुश्ती मैच से चूक गई हैं, लेकिन उन्होंने निरंतर कुचले जा रहे राष्ट्र को विश्वास दिला दिया है कि हम सबसे क्रूर शासक को भी परास्त कर सकते हैं.

विनेश फोगाट ओलंपिक में कुश्ती के फाइनल तक पहुंचने वाली भारत की पहली महिला पहलवान हैं. उन्होंने मंगलवार (6 अगस्त) को एक दिन में तीन मुकाबले जीत कर इतिहास रच दिया था.

विनेश ने मंगलवार को सेमीफ़ाइनल में क्यूबा की गुजमैन लोपेज को 5-0 से हराया. इससे पहले विनेश ने क्वार्टर-फाइनल में यूक्रेन की पहलवान ओकसाना लिवाच और प्री क्वार्टर-फाइनल में जापान की युइ सुसाकी को मात दी. विनेश के हाथों युइ सुसाकी की हार सबसे खास है, क्योंकि सुसाकी चार बार की वर्ल्ड चैंपियन, टोक्यो ओलंपिक की गोल्ड मेडलिस्ट और रैंकिंग में नंबर वन खिलाड़ी हैं.

युइ सुसाकी को हराने के बाद विनेश जिस तरह से मैट पर लेट गईं और उनकी आंखों में ख़ुशी के आंसू नज़र आए, ये पूरी दुनिया ने अपनी टीवी स्क्रीन पर देखें. हालांकि, ओलंपिक मैट का ये सफर विनेश के लिए बिल्कुल भी आसान नहीं था. क्योंकि इससे पहले पिछले साल 2023 में उन्होंने अपने देश की सड़कों पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ एक लंबी लड़ाई लड़ी, कई महीने दिन-रात संघर्ष किया.

विनेश ने खेल रत्न’ और ‘अर्जुन पुरस्कार’ दिल्ली की फुटपाथ पर छोड़ दिए थे

ध्यान रहे कि बीते साल भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष रहे बृजभूषण शरण सिंह पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाने वाली महिला पहलवानों में ओलंपिक पदक विजेता साक्षी मलिक के साथ विनेश फोगाट एक प्रमुख चेहरा थीं. उन्होंने पहलवान बजरंग पुनिया के साथ अपने सरकारी सम्मान ‘खेल रत्न’ और ‘अर्जुन पुरस्कार’ दिल्ली में फुटपाथ पर छोड़ दिए थे और पुलिस से इसे प्रधानमंत्री को सौंपने का अनुरोध किया था.

इस संबंध में विनेश फोगाट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम एक ख़ुला खत भी लिखा था जिसमें उन्होंने कहा था कि वह मेडल लौटा देंगी क्योंकि इन पुरस्कारों का अब उनकी ज़िदगी में कोई मतलब नहीं रह गया है. संघर्ष के दौरान पहलवान साक्षी मलिक ने भी खेल से संन्यास लेने की घोषणा की और पहलवान बजरंग पुनिया ने भी उन्हें मिला पद्मश्री पुरस्कार सरकार को लौटा दिया था.

आज, विनेश फोगाट को बधाई देने के साथ ही उनके संघर्ष को याद करने का दिन भी है, क्योंकि प्रदर्शन के दौरान उनकी योग्यता पर कई सवाल उठाए गए, उन्हें सड़कों पर घसीटा गया, पुलिस हिरासत से लेकर धमकियों तक का सामना करना पड़ा. यहां तक की उन्हें अपना पसंदीदा भार वर्ग 53 किलो वर्ग को छोड़कर कम वजन 50 किलो वर्ग चुनौती पेश करने के लिए मजबूर होना पड़ा. वह एक ऐसा समय था, जब ओलंपिक ही नहीं, विनेश का कुश्ती में भी भविष्य अंधकार में दिख रहा था, क्योंकि अगस्त 2023 में उन्हें घुटने की चोट के चलते सर्जरी भी करवानी पड़ी थी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी टूटने का लंबा इंतजार

इससे पूर्व अप्रैल से लेकर मई तक पहलवानों के प्रदर्शन को किसान संगठन, खाप पंचायत, तमाम विपक्षी दल, महिला छात्र संगठनों का समर्थन मिला लेकिन भाजपा के नेता और दक्षिणपंथी समूह लगातार पहलवानों पर सवाल उठा रहे थे. भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष पीटी उषा ने भी ये तक कह दिया था कि ऐसे प्रदर्शनों से देश का नाम खराब होता है.

पहलवानों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी टूटने का लंबा इंतजार किया, लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी. पहलवानों ने इस दौरान इंडिया गेट पर कैंडल मार्च किया, बंगाल साहिब, हनुमान मंदिर, क्नॉट प्लेस तक गए और लोगों को अपनी मांगों के बारे में बताने की कोशिश की.

28 मई 2023, जिस दिन देश की नई संसद का उद्घाटन हुआ, उसी दिन भारत ही नहीं दुनिया के खेल, राजनीति, और महिला आंदोलन के इतिहास में एक काला दिन भी देखा गया. 28 मई को जहां नई संसद के उदघाटन पर बृजभूषण शरण सिंह तस्वीरें खिंचवा रहे थे, वहीं ये महिला पहलवान जंतर मंतर पर घसीटे जा रहे थे. दिल्ली पुलिस सभी पहलवानों और प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर अलग अलग थानों ले गई और शाम होते-होते जंतर मंतर का धरनास्थल पूरी तरह से खाली करवा दिया गया. पहलवानों केस भी दर्ज किए गए थे.

तब, पहलवानों पर इस दमन की निंदा देश नहीं विदेश तक में हुई और विनेश फोगाट ने गिरफ़्तार होकर जाते हुए कहा था, ‘नया देश मुबारक हो!’

शायद आपको याद हो यही समय था, जब तत्कालीन महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने एक साक्षात्कार के दौरान सवाल उठाया था कि बबीता फोगाट प्रदर्शनकारी पहलवानों का समर्थन क्यों नहीं कर रही हैं, जो उनके परिवार की सदस्य हैं. ‘क्या आपको लगता है कि बबीता फोगाट जैसी विश्व प्रसिद्ध पहलवान उन लोगों के साथ बैठेंगी जिन्होंने दूसरों का और खासकर उनके परिवार के सदस्यों का शोषण किया?’

बृजभूषण और उनके समर्थक आंदोलनकारी पहलवानों की क्षमता पर सवाल उठाते रहे

ज्ञात हो कि इस आंदोलन के दौरान बृजभूषण और उनके समर्थक आंदोलनकारी पहलवानों की क्षमता पर सवाल उठाते रहे थे और आरोप लगाते थे कि विनेश, बजरंग पुनिया और साक्षी मलिक प्रमुख टूर्नामेंट में सीधा प्रवेश पाना चाहते थे. हालांकि विनेश की जीत ने उन्हें अब करारा जवाब दे दिया है.

पेरिस ओलंपिक से पहले, डेढ़ साल तक कुश्ती से दूर रहने के बाद इस साल विनेश फोगाट ने फरवरी माह में राष्ट्रीय कुश्ती चैंपियनशिप में 55 किलोग्राम वर्ग में स्वर्ण पदक जीतकर शानदार वापसी की थी. लेकिन बावजूद इसके उन्हें ओलंपिक क्वालीफाई करने के लिेए कड़ी मेहनत कर अपना वजन कम करना पड़ा, क्योंकि उनके पास ओलंपिक जाने का रास्ता केवल 50 किलोग्राम भार वर्ग में था.

इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक साक्षात्कार में विनेश फोगाट ने बताया था कि अंतिम पंघाल के 53 किलोग्राम भार वर्ग में ओलंपिक क्वालीफाई करने के बाद कम भार वर्ग में कोटा हासिल करना ही उनके पास एक मात्र विकल्प था. लेकिन उस समय फोगाट का वजन 56 किलोग्राम था, जिसे कम करना उनके लिए एक बड़ी चुनौती थी.

उन्होंने कहा था, ‘अपना वजन घटाकर 50 किलो करना बड़ा स्वास्थ्य जोखिम था. डॉक्टरों ने मुझे ऐसा नहीं करने की सलाह दी थी क्योंकि उन्हें डर था कि इससे चोट लग सकती है. हालांकि, यह मेरे लिए करो या मरो वाली स्थिति थी. अगर मैं स्वस्थ अवस्था में घर पर बैठकर टीवी पर ओलंपिक देखती तो मुझे बहुत पछतावा होता. इसलिए मैंने जोखिम लेने का फैसला किया.’

बता दें कि 2022 के राष्ट्रमंडल खेलों में विनेश 53 किलोग्राम भार वर्ग में ही खेली थीं, जिसमें उन्होंने स्वर्ण पदक जीता था.