नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (7 अगस्त) को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा अपने फैसले की आलोचना को शर्मनाक और अनावश्यक बताया. हाईकोर्ट की असामान्य रूप से कठोर टिप्पणियों पर स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को टिप्पणियों से दुख हुआ है.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (6 अगस्त) को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एक जज द्वारा जारी एक असामान्य आदेश का स्वत: संज्ञान लिया, जिसमें जज ने शीर्ष अदालत द्वारा पारित एक स्थगन आदेश की आलोचना करते हुए टिप्पणी की थी कि सर्वोच्च न्यायालय स्वयं को वास्तविकता से अधिक ‘सर्वोच्च’ मानता है, तथा उच्च न्यायालयों को वास्तविकता से कम ‘उच्च’ मानता है.
इस टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि न तो सुप्रीम कोर्ट और न ही हाईकोर्ट सर्वोच्च हैं. सर्वोच्च वास्तव में संविधान है.
उन्होंने कहा, ‘पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा अपने आदेश में की गई टिप्पणियां शर्मनाक हैं.’ साथ ही, उन्होंने अनुशासन बनाए रखने की जरूरत पर जोर दिया.
पांच जजों की पीठ ने कहा कि हम पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के जज की टिप्पणियों से दुखी हैं. उनके द्वारा कई चीजों के बारे में ‘अनावश्यक टिप्पणियां’ की गईं.
पांच सदस्यीय पीठ में सीजेआई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस ऋषिकेश रॉय शामिल थे.
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के जज जस्टिस राजबीर सहरावत की एकल पीठ ने उक्त टिप्पणियां 17 जुलाई 2024 के अपने आदेश में की थीं. सहरावत एक मामले में हाईकोर्ट द्वारा शुरू की गई अवमानना कार्यवाही पर रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नाखुश थे.
जस्टिस सहरावत ने टिप्पणी की थी, ‘मनोवैज्ञानिक स्तर पर देखा जाए तो इस तरह के आदेश मुख्य रूप से दो कारकों से प्रेरित होते हैं. पहला, इस तरह के आदेश से उत्पन्न होने वाले परिणाम की जिम्मेदारी लेने से बचने की प्रवृत्ति, इस बहाने के तहत कि अवमानना कार्यवाही पर रोक लगाने का आदेश किसी पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालता है. दूसरा, सर्वोच्च न्यायालय को वास्तव में जितना सर्वोच्च है, उससे अधिक ‘सर्वोच्च’ मानने की प्रवृत्ति और उच्च न्यायालय संवैधानिक रूप से जितना उच्च है, उससे कम ‘उच्च’ मानने की प्रवृत्ति.’