नई दिल्ली: बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के तख्ता पलट के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस देश की अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने को तैयार हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, डेली स्टार ने राष्ट्रपति के निवास और कार्यालय से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से ये जानकारी दी गई है.
डेली स्टार के मुताबिक, मोहम्मद यूनुस को आगे करने का फैसला राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन, आंदोलन के प्रमुख आयोजकों और बांग्लादेश की तीनों सेना प्रमुखों के बीच एक बैठक के बाद लिया गया.
इससे पहले समाचार एजेंसी एएफपी ने बताया था कि यूनुस ने कहा कि वह बांग्लादेश में अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं.
पत्रकार डेविड बर्गमैन के अनुसार, 84 वर्षीय अर्थशास्त्री के एक सहयोगी ने मंगलवार (6 अगस्त) को बताया था कि यूनुस ‘अंतरिम सरकार का प्रमुख बनने के छात्र नेताओं के अनुरोध पर सहमत हो गए हैं.’
सहयोगी ने युनुस के शब्दों में कहा, ‘मैंने छात्र नेताओं से कहा कि मैं ऐसा नहीं करना चाहता था. यह वह नहीं है जो मैं करता हूं, लेकिन आपने जो कुछ किया है उसके बाद मैं अनुरोध को कैसे अस्वीकार कर सकता हूं?’
ज्ञात हो कि यूनुस, जिन्हें अपने माइक्रोफाइनेंसिंग ग्रामीण बैंक के माध्यम से लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने का श्रेय दिया जाता है, को इस साल की शुरुआत में श्रम कानून उल्लंघन मामले में दोषी ठहराया गया था. उनके समर्थकों ने तब कहा था कि उन्हें हसीना द्वारा निशाना बनाया जा रहा है.
इससे पहले मंगलवार को राष्ट्रपति शहाबुद्दीन ने इस साल 7 जनवरी को हसीना की अध्यक्षता में चुनी गई संसद को भंग कर दिया था.
राष्ट्रपति कार्यालय से एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, ‘संसद को भंग करने का निर्णय सशस्त्र बलों के तीनों प्रमुखों, विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं, नागरिक समाज के प्रतिनिधियों और भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन के नेताओं के साथ राष्ट्रपति की चर्चा के बाद लिया गया है.’
मालूम हो कि प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद हसीना एक सैन्य विमान में सवार होकर भारत पहुंचीं थीं. वह कथित तौर पर ब्रिटेन जाना चाहती हैं, लेकिन भारत में उसका प्रवास निर्धारित समय से अधिक होने की संभावना है क्योंकि नियमों के अनुसार ब्रिटेन में शरण के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति का उस क्षेत्र में शारीरिक रूप से उपस्थित रहना जरूरी है.
डेली स्टार की रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एएम डे महबूब उद्दीन खोखोन ने भारत से हसीना और उसकी बहन शेख रेहाना जिनके साथ वह भारत आई थीं, को गिरफ्तार करने और उन्हें वापस बांग्लादेश भेजने की मांग की है.
इस बीच, बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और प्रमुख विपक्षी नेता खालिदा जिया को हसीना के देश छोड़ने के एक दिन बाद जेल से रिहा कर दिया गया.
मालूम हो कि हसीना के प्रधानमंत्री पद से हटने और सोमवार (5 अगस्त) को बांग्लादेश छोड़ने के तुरंत बाद राष्ट्रपति शहाबुद्दीन ने जिया की रिहाई का आदेश दिया था.
राष्ट्रपति की प्रेस टीम ने एक बयान जारी कर कहा कि उन्होंने सर्वसम्मति से बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की अध्यक्ष बेगम खालिदा जिया को तुरंत रिहा करने का फैसला किया है. इसके साथ ही बयान में ये भी कहा गया कि छात्र विरोध प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार किए गए सभी लोगों को रिहा करने का भी निर्णय लिया गया है.
ध्यान रहे कि बांग्लादेश सेना प्रमुख जनरल वकार ने राष्ट्रीय टेलीविजन पर एक प्रसारण के दौरान 5 अगस्त को घोषणा की थी कि हसीना ने इस्तीफा दे दिया है और सेना एक अंतरिम सरकार बनाएगी.
डेली स्टार की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2018 में भ्रष्टाचार के आरोप में 17 साल जेल की सजा सुनाए जाने के बाद जिया, जो अब 78 वर्ष की हैं, खराब स्वास्थ्य के चलते अस्पताल में भर्ती हैं.
हसीना की कट्टर प्रतिद्वंद्वी मानी जाने वाली जिया पर एक अनाथालय ट्रस्ट के दान में दिए गए 250,000 डॉलर का गबन करने के लिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया गया था.
बीएनपी ने कहा है कि ये मामले मनगढ़ंत हैं और इनका उद्देश्य दो बार के पूर्व प्रधानमंत्री को राजनीति से दूर रखना है.
जिया 1991-1996 तक और बाद में 2001-2006 तक बांग्लादेश की प्रधान मंत्री रहीं. जबकि उन्होंने 1996 का आम चुनाव भी जीता था, तब, हसीना की अवामी लीग सहित प्रमुख विपक्षी दलों ने इस चुनाव का बहिष्कार किया था और इसे अनुचित बताया था. परिणामस्वरूप उनकी सरकार कार्यवाहक सरकार स्थापित होने से पहले केवल 12 दिनों तक चली थी.
डेली स्टार की रिपोर्ट के अनुसार, 79 वर्षीय पूर्व प्रधानमंत्री लंबे समय से विभिन्न बीमारियों से जूझ रही हैं, जिनमें लिवर सिरोसिस, गठिया, मधुमेह और किडनी, फेफड़े, हृदय और आंखों से संबंधित समस्याएं शामिल हैं.
उधर , मंगलवार (6 अगस्त) को जारी एक बयान में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि अगर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार बनती है, तो उसे लोगों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी और हसीना के निष्कासन से पहले हुई हिंसा की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए.
एमनेस्टी ने कहा, ‘किसी भी अंतरिम सरकार के लिए कार्य का पहला आदेश लोगों के जीवन के अधिकार, स्वतंत्र भाषण और शांतिपूर्ण सभा के अधिकार की सुरक्षा सुनिश्चित करना और आगे की हिंसा की किसी भी संभावना को कम करने के तरीके ढूंढना होना चाहिए.’
इसमें आगे कहा गया है, ‘पिछले तीन हफ्तों में मानवाधिकारों के उल्लंघन के कारण 300 से अधिक लोगों की मौत हो गई, हजारों घायल हुए और मनमाने ढंग से गिरफ्तार किया गया, इसकी पारदर्शी तरीके से स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की जानी चाहिए. जिम्मेदार पाए गए लोगों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए और हिंसा के पीड़ितों को सरकार से पूरा मुआवजा मिलना चाहिए.
भारतीय राजनयिकों की देश वापसी
इस बीच, बांग्लादेश में सुरक्षा कारणों के चलते वहां से भारतीय दूतावास के कुछ कर्मचारियों और उनके परिवारों ने स्वेच्छा से देश छोड़ दिया है और भारत वापस लौट आए हैं. वहीं, ढाका में भारतीय उच्चायोग अभी भी सक्रिय है और लोग आपात स्थिति में मदद के लिए वहां से संपर्क कर सकते हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, आधिकारिक सूत्रों ने कहा, ‘ढाका में भारतीय उच्चायोग से कम-आवश्यक कर्मचारियों और उनके परिवारों की वापसी स्वैच्छिक आधार पर वाणिज्यिक उड़ानों के माध्यम से हुई है.’
ऐसा बताया जा रहा है कि वे मंगलवार रात से लौटना शुरू हो गए थे. भीड़ द्वारा व्यवधान के कारण कई फ्लाइट रद्द या देरी से चलने होने के बाद ढाका के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे ने मंगलवार को परिचालन फिर से शुरू किया है.
अवामी लीग सरकार के गिरने के बाद बांग्लादेश में व्यापक अराजकतादेखने को मिल रही है, जहां अंतरिम सरकार ने अभी तक प्रशासन पर नियंत्रण नहीं लिया है. अवामी लीग से जुड़े संस्थानों को बड़े पैमाने पर निशाना बनाया गया है.
अपने 15 साल के शासन के दौरान शेख हसीना को भारत सरकार का एक कट्टर सहयोगी माना जाता था, दोनों पक्षों ने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि उनके बीच संबंध पहले से कहीं अधिक गहरे हैं. मंगलवार देर रात घोषणा की गई थी कि नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख नियुक्त किया गया है.
उधर, आधिकारिक सूत्रों ने पुष्टि की है कि सभी भारतीय राजनयिक भारतीय उच्चायोग में ही बने हुए हैं, जो पूरी तरह से काम कर रहा है. ढाका में मुख्य मिशन के अलावा, चटगांव, राजशाही, खुलना और सिलहट में चार सहायक उच्चायोग हैं. इन स्थानों पर भी मौजूदा अनिश्चितता के चलते स्टाफ सदस्यों के परिवार बांग्लादेश छोड़ रहे हैं.
एक दिन पहले, भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संसद में कहा था कि भारत को उम्मीद है कि बांग्लादेश के अधिकारी उसके राजनयिक मिशनों के लिए पर्याप्त सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे.
आधिकारिक सूत्रों ने इस बात पर जोर दिया है कि ढाका में दूतावास पूरी तरह से काम कर रहा है और भारतीय समुदाय से संपर्क करने के लिए स्थापित तीनों हेल्पलाइन सामान्य रूप से काम कर रही हैं.
बता दें कि बांग्लादेश में लगभग 19,000 भारतीय नागरिक हैं, जिनमें 9,000 छात्र शामिल हैं. हालांकि, जुलाई में आरक्षण कोटे को लेकर शुरू हुए आंदोलन के बाद अधिकांश छात्र भारत लौट आए थे.