नई दिल्ली: मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत दर्ज मामलों में दोषसिद्धि दर पर संसद में प्रस्तुत आंकड़ों का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (7 अगस्त) को ईडी से अभियोजन की गुणवत्ता और साक्ष्य की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करने को कहा.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस सप्ताह की शुरुआत में गृह मंत्रालय द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत आंकड़ों का हवाला देते हुए तीन न्यायाधीशों की पीठ में शामिल जस्टिस उज्जल भुइयां ने कहा, ‘…संशोधन के बाद 5,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं और केवल 40 मामलों में ही दोषसिद्धि हुई है.’
जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ जिसमें जस्टिस दीपांकर दत्ता शामिल थे, छत्तीसगढ़ में कोयला परिवहन के एक मामले में गिरफ्तार व्यवसायी सुनील कुमार अग्रवाल की जमानत याचिका को चुनौती देने वाली ईडी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. पीठ ने आरोपी को अंतरिम जमानत देने के अपने 17 मई के आदेश की पुष्टि की.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, यह मामला एक कथित घोटाले से संबंधित है, जिसमें वरिष्ठ नौकरशाहों, व्यापारियों, राजनेताओं और बिचौलियों से जुड़े एक कार्टेल द्वारा छत्तीसगढ़ में परिवहन किए जाने वाले प्रत्येक टन कोयले के लिए 25 रुपये की अवैध उगाही की जा रही थी.
जांच एजेंसी ने अपने दूसरे पूरक आरोपपत्र में आरोप लगाया कि आईएएस अधिकारी रानू साहू, जो घोटाले के दौरान कोरबा जिले की कलेक्टर थीं, ने सूर्यकांत तिवारी और उनके सहयोगियों द्वारा कोयला ट्रांसपोर्टरों और जिला खनिज निधि (डीएमएफ) ठेकों से अवैध उगाही की राशि एकत्र करने में मदद की और उनसे भारी रिश्वत ली.
छत्तीसगढ़ के व्यवसायी अग्रवाल को पिछले साल इस मामले में गिरफ्तार किया गया था.
8 अप्रैल को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने उनकी अंतरिम जमानत याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद उन्होंने अदालत के आदेश को चुनौती देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया. 19 मई को शीर्ष अदालत ने अग्रवाल को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, जस्टिस सूर्यकांत ने दोषसिद्धि दर में सुधार के लिए केवल मौखिक साक्ष्य की नहीं, बल्कि वैज्ञानिक जांच की आवश्यकता पर जोर दिया.
उन्होंने कहा, ‘आपको अभियोजन की गुणवत्ता और साक्ष्य की गुणवत्ता पर वास्तव में ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि उन सभी मामलों में जहां आप संतुष्ट हैं कि कोई प्रथम दृष्टया मामला बनता है, आपको अदालत में मामलों को साबित करने की आवश्यकता है… इस मामले में आप केवल व्यक्तियों द्वारा दिए गए कुछ बयानों पर जोर दे रहे हैं… इस प्रकार के मौखिक साक्ष्य. कल भगवान जाने कि वह व्यक्ति उस पर कायम रहेगा या नहीं… जब वह व्यक्ति गवाही के लिए अदालत में आएगा, तो वह जिरह का सामना कर पाएगा या नहीं…’
इस बीच, सुप्रीम कोर्ट ने 27 जुलाई 2022 के अपने फैसले की समीक्षा की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई स्थगित कर दी, जिसमें समय-समय पर संशोधित पीएमएलए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा गया था, जिसमें मनी लॉन्ड्रिंग अपराधों में गिरफ्तारी, तलाशी, कुर्की और जब्ती के संबंध में ईडी की शक्तियों से निपटने वाले प्रावधान शामिल हैं.
पीठ ने मामले की सुनवाई 28 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी, जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि इसे मंगलवार शाम को ‘अचानक सूचीबद्ध’ किया गया था और हमें इस पर विचार करने की आवश्यकता है.’
नवंबर 2017 में जस्टिस रोहिंटन नरीमन और संजय किशन कौल की पीठ ने निकेश ताराचंद शाह बनाम भारत संघ मामले में पीएमएलए के तहत जमानत के ‘ट्विन टेस्ट’ को असंवैधानिक घोषित किया था क्योंकि यह स्पष्ट रूप से मनमाना था.
मालूम हो कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा 6 अगस्त को संसद को दी गई जानकारी के अनुसार, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 2019 से वर्तमान और पूर्व सांसदों, विधायकों, एमएलसी और राजनीतिक नेताओं के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत कुल 132 मनी लॉन्ड्रिंग मामले दर्ज किए हैं, जबकि केवल एक मामले में दोषसिद्धि हुई है.