नई दिल्ली: सरकार ने गुरुवार को राज्यसभा को बताया कि विकास गतिविधियों के कारण पिछले 10 वर्षों में देश में लगभग 1,734 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र नष्ट हो गया है. इसी अवधि के दौरान वनों की कटाई की भरपाई के लिए किए जाने वाले वनरोपण के लिए भूमि का अधिग्रहण भी किया गया है और 2011 की तुलना में 2021 में कुल वन क्षेत्र में लगभग 21,762 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव द्वारा साझा किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि 2014 और 2024 के दौरान गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए वन भूमि का सबसे अधिक उपयोग मध्य प्रदेश से हुआ, इसके बाद ओडिशा, तेलंगाना, गुजरात और अरुणाचल प्रदेश का स्थान रहा.
उन्होंने कहा, ‘जब भी केंद्र गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए वन भूमि के उपयोग की मंजूरी देता है, तो प्रतिपूरक वृक्षारोपण की लागत और भूमि का शुद्ध वर्तमान मूल्य मानदंडों के अनुसार उपयोगकर्ता एजेंसी से वसूला जाता है. इसके अलावा मृदा एवं नमी संरक्षण कार्य, जलग्रहण क्षेत्र उपचार योजना और वन्यजीव प्रबंधन योजना जैसे अतिरिक्त उपाय भी आवश्यकतानुसार निर्धारित किए गए हैं.’
समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, भूपेंद्र यादव ने कहा कि पांच पूर्वोत्तर राज्यों- अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, नगालैंड, मिजोरम और मेघालय – में वन क्षेत्र कम हुआ है, जबकि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, कर्नाटक और झारखंड जैसे राज्यों में वन क्षेत्र में वृद्धि देखी गई है.
आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद नारायण दास गुप्ता ने सवाल किया था कि क्या सरकार ने भूस्खलन संभावित क्षेत्रों की पहचान करने के लिए कोई सर्वेक्षण किया है या कोई तंत्र विकसित किया है ताकि जान-माल के नुकसान को रोका जा सके.
इसका जवाब देते हुए मंत्री ने कहा कि सरकार हर दो साल में वन सर्वेक्षण करती है. हालांकि, घटनाओं के संबंध में आपदा प्रबंधन का विषय है और राज्य सरकारें इस पर गौर करती हैं.
यादव ने कहा कि अगर मंत्रालय किसी एजेंसी को कोई परियोजना निष्पादित करने की अनुमति देता है, तो यह सुनिश्चित करता है कि उस क्षेत्र की मिट्टी और नमी सुरक्षित रहे. इसके अलावा, यह पहाड़ी क्षेत्रों में वन्यजीवों के लिए मार्ग भी सुनिश्चित करता है, ताकि उनके आवागमन के दौरान किसी भी बाधा का सामना न करना पड़े.
कांग्रेस की रंजीत रंजन ने दावा किया कि 1,000 मीटर से ऊपर के क्षेत्रों में वन क्षेत्र कम हो रहा है, इसके बावजूद सरकार इन क्षेत्रों के लिए परियोजनाओं को मंजूरी दे रही है. रंजन ने उत्तराखंड में भागीरथी चारधाम परियोजना का मुद्दा भी उठाया और कहा कि सरकार ‘वन क्षेत्रों को खत्म कर रही है’.
इस पर जवाब देते हुए मंत्री यादव ने कहा कि एक विषय को दो तरह से प्रस्तुत किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि सरकार अंतिम छोर पर खड़े लोगों के जीवन को बदलने के लिए काम कर रही है. उन्होंने कहा, ‘जिन पांच राज्यों में वन क्षेत्र में कमी आई है, उनमें उत्तराखंड का नाम भी नहीं है. पूर्वोत्तर राज्यों में वन क्षेत्र में कमी आई है और यह सीमित क्षेत्रों तक सीमित है.’
यादव ने कहा कि सरकार का कर्तव्य है कि वह उन राज्यों का विकास करे और वहां सड़क, बिजली और स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराए.
एनसीपी की फौजिया खान ने कहा कि मंत्रालय ने 20-30 लाख पेड़ों को काटने वाली 80 परियोजनाओं को मंजूरी दी है. उन्होंने कहा कि इसका विकल्प फंड प्रबंधन के साथ वनरोपण है. उन्होंने पूछा कि क्या कोई ऐसा डेटा है जो यह बताता हो कि नए पेड़ों का वनीकरण लाखों एकड़ अछूते वन क्षेत्र की भरपाई की है.
मंत्री ने कहा कि पेरिस समझौते के अनुसार, सरकार अपने कुल हरित क्षेत्र को 33 प्रतिशत तक बढ़ाएगी. इसे बढ़ाना होगा और इसके लिए सरकार के पास वृक्ष आवरण बढ़ाने की योजनाएं हैं. सरकार तटीय क्षेत्रों में वृक्ष आवरण बढ़ाने की भी कोशिश कर रही है. इसके अलावा, सरकार मॉन्ट्रियल बायोडायवर्सिटी सीओपी में 30 बाय 30 विजन की दिशा में भी काम कर रही है.