नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (सीएए) के तहत भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने वाले नियमों के एक प्रावधान में संशोधन किया है.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, नागरिकता संशोधन नियम के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से आए धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए अपने माता-पिता, दादा-दादी या उनसे भी पीछे की पीढ़ी की राष्ट्रीयता दस्तावेज़ को नागरिकता साबित करने के लिए दिखाना होता है. वे वीजा के बजाय स्थानीय निकाय के निर्वाचित सदस्य द्वारा जारी प्रमाण पत्र भी दिखा सकते हैं.
सीएए के तहत नागरिकता का आवेदन करने वाले आवेदकों को यह प्रमाणित करना होता है कि वे विदेशी हैं और इसके लिए सरकार की ओर से नौ जरूरी दस्तावेज़ों की सूची भी जारी की गई है.
हालांकि, अब इस अधिनियम की अनुसूची 1ए के तहत आवेदक के राष्ट्रीयता दस्तावेज़ की परिभाषा को विस्तारित कर दिया गया है. संशोधन के अनुसार, अब आवेदक भारत के केंद्र या राज्य सरकार या किसी अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण द्वारा जारी किए गए कोई भी दस्तावेज़ दिखा सकते हैं.
इस आदेश में दस्तावेजों की सूची के साथ ‘आदि’ (etc) को जोड़ा गया है, जो दस्तावेजों में कोई कमी होने पर सीएए आवेदनों पर कार्रवाई कर रहे सरकारी अधिकारियों को नागरिकता देने के संबंधी फैसले पर विवेकाधिकार देगा.
ज्ञात हो कि सीएए नियम स्थानीय पुजारियों या स्थानीय रूप से प्रतिष्ठित सामुदायिक संस्थान को भी आवेदक को प्रमाणित करने वाले अनिवार्य प्रमाण पत्र जारी करने की अनुमति देता है.
मालूम हो कि सीएए 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में प्रवेश करने वाले तीन देशों के छह गैर-मुस्लिम समुदायों को नागरिकता की सुविधा देता है.
अखबार के मुताबिक, जनगणना निदेशालय, डाक विभाग, रेलवे, राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र और इंटेलिजेंस ब्यूरो से संबंधित केंद्र सरकार के अधिकारियों को गृह मंत्रालय द्वारा सूचित किया गया है कि सीएए एक सुविधाजनक कानून है और आवेदनों पर कार्रवाई करते समय इसकी भावना को समझें.
गृह मंत्रालय के विदेशी प्रभाग द्वारा जनगणना संचालन के निदेशक और अन्य विभागों को भेजे गए 8 जुलाई को एक आदेश में कहा गया है, ‘यह स्पष्ट किया जाता है कि अनुसूची 1ए की क्रम संख्या 8 के तहत दस्तावेजों में केंद्र सरकार, राज्य सरकार या देश के कोई भी न्यायिक या अर्ध-न्यायिक निकाय द्वारा जारी कोई भी दस्तावेज़ आवेदक की प्रमाणिकता में शामिल हो सकते हैं. उदाहरण के तौर पर भूमि रिकॉर्ड, न्यायिक आदेश आदि भी यह साबित कर सकते हैं कि आवेदक या उनके माता-पिता या दादा-दादी या परदादा अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान के नागरिक थे.
द हिंदू द्वारा प्राप्त पत्र में कहा गया है कि मंत्रालय के पास नागरिकता नियम, 2024 की अनुसूची 1ए की क्रम संख्या 8 के तहत आवेदकों से किस प्रकार के दस्तावेज़ स्वीकार किए जा सकते हैं, इसे स्पष्ट करने को लेकर कई सवाल प्राप्त हुए हैं.
इस पत्र में आगे कहा गया है, ‘सीएए, 2019 के तहत किसी भी नागरिकता आवेदन पर निर्णय लेते समय उपरोक्त स्पष्टीकरण पर ध्यान दिया जा सकता है.’
अखबार ने 6 जुलाई को अपनी रिपोर्ट में यह जानकारी दी थी कि गृह मंत्रालय संभावित लाभार्थियों द्वारा किए गए कई अनुरोधों और चिंताओं के बीच इस प्रावधान में संशोधन करने के लिए तैयार है. इसमें पश्चिम बंगाल के उन लोगों पर खास संज्ञान लिया गया है, जो बिना किसी दस्तावेज के बांग्लादेश से आए थे. 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के बाद बड़ी संख्या में लोगों ने भारत में शरण ली थी. हालांकि, सटीक संख्या का पता नहीं है, लेकिन पश्चिम बंगाल में मतुआ और नामशूद्र समुदायों के लगभग 2.8 करोड़ लोग हैं, जिन्हें सीएए से लाभ होगा.
मालूम हो कि सीएए नियमों की घोषणा आम चुनावों से कुछ दिन पहले 11 मार्च को अधिसूचित की गई थी. हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को इसका अपेक्षित लाभ नहीं मिल सका, क्योंकि इसके नियमों को लेकर जनता के मन में भ्रम था.
अनुसूची 1ए पाकिस्तान से आए हिंदू प्रवासियों के लिए कोई समस्या नहीं है, क्योंकि अधिकांश लोग पासपोर्ट और वीजा जैसे वैध दस्तावेजों पर भारत में प्रवेश करते हैं.